रमेश और उमेश दो भाई आपस मे बहुत प्यार से रहते थे। रमेश बड़ा और उमेश छोटा भाई था।
उमेश बचपन से ही पोलियो की वजह से चलने फिरने मे असमर्थ हो गया था। दोनों साथ साथ स्कूल जाते थे।
बहुत आराम से दिन बीत रहे थे।
उमेश थोड़ा कमजोर था इसलिये मम्मी पापा उसपर ज्यादा ध्यान देते थे । उसकी जरूरतें तुरत पूरी की जाती थी पर रमेश की बाद में। इससे रमेश के मन मे थोड़ी ईर्ष्या होने लगती थी। हालांकि रमेश अपने भाई उमेश को गोद मे उठाकर स्कूल ले जाता था। इसलिये उमेश के मन मे अपने भाई के लिये बहुत इज्जत और प्यार था।
एक दिन रमेश ने पापा से कहा "पापा मेरे जूते फट गये हैं। दूसरे नये जूते ला दीजिये" । पापा ने कहा" बेटा अभी इसीसे काम चलाओ। जब पैसे होंगे तब नये जूते ला दूँगा"।
रमेश का मन उदास हो गया। उसने मन मे सोचा कि उमेश की तो हर इच्छा तुरत पूरी होती है और मेरे लिये पापा के पास पैसे नहीं हैं। रमेश के मन मे उमेश के प्रति थोड़ी ईर्ष्या होने लगी। वह कभी कभी उमेश को बुरी तरह डांट भी देता था।
हर महीने दोनों भाईयों को जेब खर्च के लिये पैसे मिलते थे। दोनो ही उसे जमा करते थे।
जब महीना बीतने के बाद भी जूते नहीं आये तो रमेश ने अपने जमा किये पैसों से जूता लेने की सोची। पर जूते की कीमत के हिसाब से उसके पास पैसे कम थे। रमेश बहुत निराश हो गया। उसकी हालत उमेश भी देख रहा था।
उमेश के मन मे एक विचार आया कि क्यों न मैं अपने जमा किये पैसे भैया को दे दूँ। उसने रमेश को पैसे देते हुए कहा " भैया आप ये पैसे ले लो। हम दोनों के पैसों से आपके जूते अवश्य आ जायेंगे।" रमेश ने कहा तुम्हें भी तो जूते चाहिये। उमेश बोला मुझे अभी जूतों की उतनी जरूरत नहीं जितनी आपको है।
आप तो पैदल जाते हो। मैं तो आपके साथ जाता हूँ।
यह सुनकर रमेश का मन ग्लानि से भर उठा। मन मे सोचा मेरा भाई मेरे लिये कितना सोचता है, कितना प्यार करता है। मैने उसके साथ कितना बुरा व्यवहार किया। धक्कार है मुझे।
रमेश की आँखों मे आँसू आ गये। उसने उमेश को गले लगा लिया। मन की ग्लानि आँसू बनकर बह निकली।
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
सुंदर बाल कथा। बधाई मंजू श्रीवास्तव जी को...
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल कथा। बधाई मंजू श्रीवास्तव जी को...
जवाब देंहटाएंBahut achchi bal katha likhi hai aapne...
जवाब देंहटाएं,बहुत उम्दा
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