गीली मिट्टी चाक पर रख,
हाथों से आकार है देता।
आग में फिर उसे पकाकर,
सुंदर रंग से है सजाता।
बच्चों वो कुम्हार है कहलाता।
जाड़े गरमी और बरसात,
कठिन परिश्रम करता दिनरात।
बारह मास खलिहान में जाता,
अनाज से घर आॅंगन है भरता,
बच्चों वो किसान है कहलाता।
सड़क किनारे बैठ सुबह-शाम,
सभी लोगों की मदद है करता।
भीख नहीं वह माॅंगा करता,
चप्पल,जूते व बस्ते है सिलता।
बच्चों वो मोची है कहलाता।
नन्हें पौधों व बीजों को,
बागों की क्यारी में डाल।
अपने कोमल हाथें से वह,
देखरेख सदा ही है करता।
बच्चों वो माली है कहलाता।
लोगों के स्वास्थ्य की चिंता कर,
मीठी वाणी से दर्द है हरता।
समय-असमय तत्पर रहकर,
समाज सेवा की भावनारखता।
बच्चो वो डाॅक्टर है कहलाता।
गले में टेप,कान पर कलम
हाथ में कैची होती है उसके।
कपड़ों को आकार देकर,,
सुंदर-सुंदर पोशाक है गढ़ता।
बच्चों वो दर्जी है कहलाता।
बारह मास वह करता काम,
शहर गाॅंव व गलियाॅं तमाम।
सुख-दुःख को थैले में डाल,
संदेश सबके नाम का लाता।
बच्चों वो डाकिया है कहलाता।
अर्चना सिंह जया
गाजियाबाद
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