सुनील एक मेधावी छात्र था। हर कक्षा मे अव्वल आता था
। लेकिन वह अपनी कक्षा मे हमेशा सबसे पीछे वाली सीट पर ही बैठता था।इसका कारण था कि वह गहरे सांवले रंग का था। अपनी हीन भावना को छुपाने के लिये वह सबसे पीछे ही बैठना पसन्द करता था।
कक्षा के सभी छात्र उसे last bencherया कालिया कहकर चिढ़ाया करते थे।पर वह इन सब बातों की तरफ ध्यान नहीं देता था बस अपनी पढ़ाई मे जुटा रहता था।
कक्षा मे बस उसका एक ही सहारा था। कक्षा की class teacher नीरजा सुनील को बहुत प्यार करती थीं। नीरजा जी गणित की शिक्षिका थीं। गणित मे तो सुनील के शत प्रतिशत नम्बर आते थे। नीरजा जी का पूरा सहयोग उसे प्राप्त था
धीरे धीरे समय बीतता चला गया। सुनील अब १२वीं कक्षा मे था। अब वह बोर्ड की परीक्षा की तैयारी मे जुट गया। उसके हौसले बुलंद थे। नीरजा जी का पूरा सहयोग जो मिल रहा था उसे। चारों तरफ से ध्यान हटाकर पढ़ाई और सिर्फ पढाई। उसका लक्ष्य था कि हर हालत मे India मे top करना है।
परीक्षा का दिन नज़दीक आ गया। सुनील के पेपर्स अच्छे ही गये थे। वह बिल्कुल निश्चिन्त था।
आखिर वह दिन भी आ गया जब परीक्षा परिणाम घोषित होना थसे
सुनील सुबह जल्दी उठ गया।
Internet पर परीक्षा परिणाम देखा।
खुशी से उछल पड़ा।
दौड़ता हुआ वह अपनी आंटी( नीरजा) के घर पहुँच गया। दरवाजे की घंटी बजाई। आंटी ने दरवाजा खोला।दरवाजा खुलते ही सुनील नीरजा जी के पैरों से लिपट गया और आँखों से झर झर आँसू बहते जा रहे थे।
नीरजा जी ने उसे उठाया और गले से लगा लिया।
सुनील बोला ' आंटी यदि आपने मेरा हौसला नहीं बढ़ाया होता तो आज मै इस मुकाम पर नहीं पहुँच पाता। मुझमें हीन भावना घर करती जा रही थी।
नीरजा ने कहा "बेटे यह तो तुम्हारी मेहनत थी, लगन थी जो तुम्हें यहाँ तक लाई है।" मैने तो सिर्फ रास्ता दिखाया।
सुनील ने अपने मात पिता को नीरजा जी से मिलवाया। नीरजा जी से मां ने कहा आपने मेरे बेटे की ज़िन्दगी बदल दी। ये तो गुम सुम हो गया था। मेरे बेटे ने हमारा मस्तक गर्व से उँचा कर दिया है।
दूसरे दिन स्कूल के प्रधानाध्यापक जी ने प्रार्थना कार्यक्रम मे ही सुनील को छात्रवृत्ति प्रदान की एवं सभी शिक्षकों ने आशीर्वाद दिये।
नीरजा जी ने छात्रों से कहा बच्चों
जीवन मे सफलता पाने के लिये अच्छी सूरत की जरूरत नहीं होती।
अच्छे गुण, अच्छा व्यवहार व सद्बुद्धि से महान बना जाता है।
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
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