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सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

संपादक की डेस्क से



नन्हे  मुन्ने  बच्चों /पाठकों

"नाना की  पिटारी "के  चार  सफल वर्ष  व्यतीत  होने तथा पाँचवे वर्ष  के  प्रारंभ   पर  आपका  स्वागत  है ।
यह  पत्रिका दिनांक  04/02/2014  से, अर्थात,  गत चार  वर्षों  से   अंतर्जाल पर, छोटे बच्चों के  लिए प्रकाशित हो रही  है  ।  यह पत्रिका   बिल्कुल  निशुल्क है  और  विज्ञापन  रहित है ।  इसे   कोई  भी व्यक्ति  विश्व  में  कहीं  भी,   गूगल/एम एस एन आदि सर्च इंजन  मे हिन्दी अथवा अंग्रेजी  में 'नाना की  पिटारी' लिख कर प्राप्त कर   सकता  है।

गत् चार  वर्षो मे  ' नाना  की पिटारी'  पत्रिका  ने हिन्दी    बालसाहित्य जगत के  साहित्य  में  लेखन और  प्रसारण के  कार्य  में  महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाई  है  ।  कविताओं,   कहानियों,   पहेलियों और   चुटकुलों  के अलावा शामू धारावाहिक लम्बी कहानी,  प्राचीन  विश्व  के  सात अजूबे ,  नवीन  विश्व  के  सात अजूबे, अपने नन्हे मुन्ने पाठकों के  समक्ष प्रस्तुत किया है।  पेरिस का  इफेल टावर  दिखाया  और कभी  बर्लिन की  दीवार तो कभी जैसलमेर के रेगिस्तान  की सैर  कराई ।  इसने   हमारे  महापुरुषों, हमारे पूर्वजों  के  बारे  में भी  समय समय पर   बताया  है।  

 अंग्रेजी भाषा में विदेशी  परी -कथाएं, भारत  में भी बहुत  चाव से पढ़ी जाती  और  पढ़ी जा  रही  हैं ।  उन  कथाओं   का  अंत  प्रायः  विवाह  से होता  है  ।   जिस  आयु वर्ग  के  लिए  यह कहानी  लिखी  गईं  हैं   उस  आयु  वर्ग  के  बच्चों  के  मन में, विशेष  तौर  पर , आज के  युग की  कन्याओं  के मन मे,  विवाह  को ठूंसना उचित बात   नहीं  है ।    बाल मन की  उत्सुकता और उत्कंठा   को  ध्यान  में  रख  कर  इस पत्रिका ने   एक रोचक   बाल चरित्र,   'प्रिन्सेज डॉल' का सृजन  किया था ।  ज्ञान वर्धक,  बाल मनोरंजन  प्रिन्सेज डॉल  की ( फेरीटेल्स) की   बाल कथाओं  की धारावाहिक  सीरीज   प्रकाशित किया गया ।   इस पत्रिका में   अब तक 850 आइटम  प्रकाशित   प्रकाशित  हो  चुके हैं  ।

जैसा  कि  अमूमन बालपन में  दाँतों  के  निकलने  के  समय  कठिनाईयों  होतीं  हैं  वैसी ही  इस  पत्रिका के  प्रकाशन  मे  इन चार वर्षों में  कठिनाईयां  भी  आई  हैं  , मसलन्,  "हिन्दी  ब्लागस् डाट नेट" की  साइट  पर   सर्वर बदले जाने  की  प्रक्रिया  से उत्पन्न  कुछ  तकनीकी  परेशानियों  के कारण  नाना  की पिटारी का  ब्लॉग  उनके  सर्वर  से  अदृश्य हो गया था  ।   जिसकी वजह  से उसकी  मेमोरी  में  पड़े  हमारे अभिलेख गायब हो गए  थे  जिनकी     रिकवरी वे अंत तक नहीं  कर  पाए ।   हमारी पत्रिका  को " हिंदी  ब्लाग  डाट नेट "  के  कारण  बहुत  बड़ा  नुकसान  उठाना पड़ा,।   लेकिन  हम रुके  नहीं  हम अपने  मार्ग  मे पुनः बढ़ते गये   ।  "नाना  की पिटारी "  को  "ब्लागर" के  पटल पर ले जाया गया  जहाँ  से  अब तक   बिना  रुके  हुए पत्रिका  का   प्रकाशन चल रहा है   और लगातार इसके  अंक  पर अंक निर्बाधित रूप  से  निकलते जा रहे हैं  और  पत्रिका  का वर्तमान  स्वरूप   आपके  पास है

पत्रिका  के  प्रकाशन  से  ही  इसके साथ जुड़े  रचनाकारों  का उल्लेख  और धन्यवाद  ज्ञापन  आवश्यक  है  ।   प्रारंभ  में  श्री  अखिलेश  चन्द्र  श्रीवास्तव  श्रीमती  अंजू  गुप्ता  ने  काफी उत्साहित  किया  तदुपरांत  श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव  जी डॉ  प्रदीप शक्ल  जी,  श्री  शादाब  आलम जी ,भाई महेंद्र  देवांगन, अर्पिता  अवस्थी,  सुषमा  मांगलिक    और  कुमारी  प्रिया  देवांगन  प्रियू ,  श्रीमती  अंजू निगम  और  उनकी  माता श्रीमती  मंजू श्रीवास्तव  जी के  नाम विशेष  रूप से   उल्लेखनीय  है  ।   श्रीमती  मधु त्यागी  जी ने  अपनी  तथा एमिटी  इन्टरनेशनल  गुरुग्र्राम  के छात्रों  की रचनाएँ    नाना की पिटारी मे प्रकाशन हेतु  प्रेषित  की ।   आप सभी को  बहुत  धन्यवाद  और आगे  भी  छोटे  बच्चों  के लिए  अपनी  रचनाओं  को  हमे भेजते  रहेगें  का हम निवेदन  करते हैं  ।
 होली के अभिनन्दन के साथ

                                    शरद कुमार  श्रीवास्तव 

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