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मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : बहादुर विमल



विमल बहुत ही सरल व शान्त स्वभाव का छात्र था।दिल मोम की तरह मुलायम जो किसी के दर्द से पिघल जाता।
२६ जनवरी पास ही थी ३,४ दिन की छुट्टी पड रही थी। सबने टूर पर जाने का फैसला‌ किया |
दूसरे।दिन सब तैयार होकर निकल पड़े. सब माल द्वीप पहुँचे |
होटल मे कमरा बुक किया, सब सामान वहां रखकर सब दोस्त घूमने निकल पड़े|
पास के गांव के नज़दीक एक नदी बहती थी,| दो दोस्त शरारत की वजह से नदी मे कूद पड़े कि तैरने का भी आनंद लिया जाय|. बहुत देर तक दोनो दिखाई  नहीं दिये तो विमल को याद आया कि उन दोनो को तो तैरना ही नहीं आता|. विमल ने ने आव देखा न ताव झट से नदी मे कूद पड़ा | वह दोनो काफी आगे निकल चुके थै|
बड़ी मेहनत के बाद विमल उन दोनो को बाहर निकाल कर लाया| लेकिन विमल नदी कै बाहर आते ही बेहोश हो गया| उसके पेट मे काफी पानी भर गया था |तुरंत अस्पताल पहुँचाया गया| पूर्ण स्वस्थ होने के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई|
स्कूल के सभी अध्यापकों व प्रधानाध्यापक जी ने विमल की बहुत तारीफ की|
वह तारीफ के लायक जो था|. अपनी जान की परवाह किये बिना उसने दोस्तों की जान बचाई थी|
प्रधानाध्यपक जी ने उसे वीरता  पुरस्कार के लिये नामित कर केंद्र सरकार को भेज दिया. उसका नाम स्वीकृत हो गया|
२६  जनवरी को वह भी अन्य बच्चैं के साथ  परेड का हिस्सा बना| वह गर्व से फूला नहीं समा रहा था|
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बच्चों तुम भी इसी तरह बहादुर बनो व देश का नाम रोशन करो|


मंजू श्रीवास्तव
हरिद्वार

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