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गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : रामू की लगन




नीलम अपने बेटे रामू के साथ एक छोटे से घर मे रहते थे |   नीलम सब्जी बेचकर अपने घर का खर्चा चलाती थी |
रामू स्कूल जाता था और शाम को स्कूल से वापस आकर मां के काम मे मदद करता था |
रामू कुशाग्र बुद्धि का बालक था |   एक बार जो पढ़ लेता याद हो जाता था |   मां ने भी उसकी पढ़ाई के लिये सब सुविधायें जुटा दी थीं |
     समय बीतता गया |   अब वो समय आ गया जब १२वीं की बोर्ड परीक्षा आरम्भ होने वाली थी |    रामू जी जान से पढाई मे जुटा हुआ था |
      धीरे धीरे वो दिन भी आ गया जब परिणाम घोषित होनेवाला था |
रामू सुबह से ही internet खोल के बैठा था |परिणाम आते ही वह खुशी से उछल पड़ा |९५ प्रतिशत नं आये थे | सबसे पहले उसने मां के पैर छूकर  आशीर्वाद लिया |
       स्कूल मे भी सब अध्यापकों ने उसे ढेरों आशीर्वाद दिये |
      स्कूल की तरफ से उसे छात्रवृत्ति दी गई |
     अब उसका लक्ष्य था IAS बन  कर देश की सेवा करना |
    अतः वह सारी दुनिया से बेखबर होकर अपनी पढ़ाई मे जुट गया |
    मेहनत रंग लाई और उसने बहुत अच्छे नंबरों से परीक्षा उत्तीर्ण की |
      आज वह एक ऑफिसर बन चुका था |
      दूसरे दिन समाचार पत्रों मे बड़े अक्षरों मे लिखा था " एक सब्जी बेचने वाली के बेटे ने IAS परीक्षा उत्तीर्ण करके देश का नाम रोशन किया |"
      रामू की ज़िन्दगी ही बदल गई |

     सबसे पहला काम उसने अपनी मां को वह सारी सुविधायें प्रदान की जिसकी वह हकदार थीं |
     

बच्चों, अपने लक्ष्य की प्राप्ति मे सच्ची लगन का होना बहुत जरूरी है |     सफलता अमीर, गरीब नहीं देखती, जो मेहनत करेगा वही सफल होगा |



                            मंजू श्रीवास्तव, हरिद्वार

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्रेरणादायक कहनी, आदरणीया ंंमन्जू जी!
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