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मंगलवार, 26 जून 2018

मंजू श्रीवास्तव की कहानी जैसा बीज बोओगे, वैसा फल मिलेगा






पिंकू अपने मम्मी, पापा,,दादा,दादी के साथ रहता था | बड़ा होशियार था | पढ़ाई में और बातों मे भी |
दादी काफी बुज़ुर्ग महिला थीं| दादी का बड़ा लाड़ला था | दौड़ दौड़ के उनका छोटा मोटा काम कर देता था |
   एक दिन पिंकू स्कूल जाने के लिये तैयार हो रहा था| मेज पर नाश्ता करने बैठा था | उधर उसकी दादी अपना चश्मा ढूंढती हुई आई| पिंकू बेटे क्या तुमने मेरा चश्मा देखा है
?
उनकी आवाज सुनकर मम्मी पापा भी कमरे मे आये और दादी से पूछा क्या ढूंढ रही हो मां?   दादी ने कहा बेटा ! यहां चश्मा रखा था वही ढूंढ रही हूँ |
          बेटे ने देखा  कि चश्मा वहीं रखा है| मां से बोला ! ये क्या रखा है चश्मा| तुम तो मां बिल्कुल अंधी हो गई हो | सामने की चीज नहीं दिखती, सबको परेशान करती हो |कोई भी चीज ठीक से नहीं रखती हो |
पिंकू यह सब देख रहा था  और सुन भी रहा था |
दूसरे दिन पापा ऑफिस जाने की  जल्दी मे थे और फाइल नहीं मिल रही थी |पिंकू  जरा मेरी फाईल तो देखना  कहां है?
पिंकू ने  पापा के शब्द ही दोहराये |
पापा आप भी बिल्कुल अंधे हो गये हो | सामने की चीज नही दिखाई दे रही है| ये तो रही फाइल |
पापा ने जोर से डांट लगाई, ये क्या तरीका है बोलने का? क्या यही स्कूल मे सिखाया जाता है?
पिंकू ने कहा नहीं आपसे सीखा है |
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बड़े जब अपने बुज़ुर्गों का सम्मान नहीं करेंगे तो बच्चे भी वही सीखेंगे | | अतः  बच्चे, बड़े सभी को अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करना चाहिये |
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                           मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

शरद कुमार श्रीवास्तव :काले मेघ




काले मेघ तू आजा
जल्दी जल बरसाजा
सारी धरती सूखी पडी
जमकर पानी बरसाजा

बादल राजा बादल राजा
तू तो वर्षा रानी का राजा
सब जन बस तुझे  पुकारें
जल्दी वर्षा के  संग आजा

शरद कुमार  श्रीवास्तव 

"यस आई विल" : सुशील शर्मा







मेरी बेटी बहुत निश्चिंत थी उसमें आत्मविश्वास था कि उसका सिलेक्शन होगा लेकिन मेरा टेंशन के मारे बुरा हाल था ए सी में भी पसीना आ रहा था।
"पापा बहुत जबरदस्ती टेंशन मत लो मेरा होगा ये पक्का ह" उसने बड़े आत्मविश्वास से कहा ।

"लेकिन चार सौ बच्चे है तुम से भी रेंक में आगे मुझे तो घबड़ाहट हो रही है।"मेरी आदत थी कि ऐसे अवसर पर मुझ पर नकारत्मकता असर करने लगती है।
"नही पापा आप मत टेंशन लो मेरा सिलेक्शन होगा !"  उसने फिर आत्मविश्वास से मेरा मनोबल बढ़ाया।

उस इंटरव्यू में अभियांत्रिकी के देश भर के विशेषज्ञ बैठे थे वो प्रतिभागी छात्रों को बहुत शालीन किन्तु कठोर तरीके से जांच रहे थे और इंटरव्यू में जम कर खिंचाई हो रही थी।चूंकि मुझे सब्जेक्ट से संबंधित सवाल समझ मे नही आ रहे थे किंतु प्रतिभागियों के चेहरे के तनाव से हर चीज समझ मे आ  रही थी कि क्या हो रहा है।

जब मेरी बेटी की बारी आई तो वह बड़े आत्मविश्वास से टेबिल पर पहुंची मेरी सांसे रुकी हुई थी ब्लड प्रेशर बढ़ गया था।
अभिवादन के साथ उसका साक्षात्कार शुरू हुआ टेंशन के कारण मैं पसीने में सरोबोर था ऐसा लग रहा था कि मेरा इंटरव्यू हो रहा था।
मेरी बेटी ने 10 मिनिट तक तो उनके सवालों के जबाब दिए फिर
अचानक एक सवाल पर उन सबके बीच मे डिस्कशन शुरू हो गया।
साक्षात्कार में बैठे सभी लोग एकमत से उस प्रश्न के उत्तर से सहमत नही दिखे लेकिन मेरी बेटी उस उत्तर पर अडिग रही उसने अपने पक्ष में बहुत दलीलें दी लेकिन साक्षात्कार पैनल उनसे संतुष्ट नही दिखी।
जो मुख्य साक्षात्कार कर्ता थे उन्होंने आखिरी में कहा "आई एम नॉट स्योर यू विल एबल टु  गेट दिस सीट"।
मेरी बेटी ने बहुत शांत स्वर में सिर्फ दो शब्द कहे  "सर आई विल"
मुझे उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आखिर उसने इतने विद्वानों से बहस क्यों कि मैंने उसे बाहर आ कर बहुत डांटा *"तुम आखिर अपने आप को तोप चंद समझती हो क्या जरूरत थी उन विद्वानों से बहस करने की अब हो गया एडमिशन हाथ से खो दी सीट*
मैं बहुत गुस्से में था।
*पापा मैं सही थी इसलिये अपनी बात उन्हें समझाने की कोशिश कर रही थी आपने ही कहा था कि अगर तुम सही हो तो उस पर अडिग रहो और आप टेंशन मत लो मेरा एडमिशन होगा* उसने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
*क्या खाक होगा जब विभागाध्यक्ष ने ही बोल दिया तुम्हे ये सीट नही मिलेगी।* मैंने टूटेप स्वर में कहा।

अगले ही दिन आई आई टी कानपुर से ईमेल आया *"वेलकम टू आई आई टी कानपुर यु आर सिलेक्टेड फ़ॉर एम टेक इन सिग्नल प्रोसेसिंग कोर ब्रांच प्लीज पे द फीस।*


                             सुशील  शर्मा 

शैलेंद्र तिवारी की स्मृति के खजाने से : फाख्ता






19 दिसम्बर 2010 दोपहर 2 बजे मैं अपनी छत पर बैठा आसमान पर उड़ती पतंगों को देख रहा था कि तभी एक पतंग कट गई। पतंग के कटते ही डोर का एक लच्छा बना और आसमान मैं उड़ते हुए एक फाख्ते के पंख में जा फसा।  पहले पंख फिर पैर और गर्दन डोर के लच्छे में फंस गये। 
क्योंकि हवा का बहाव तेज था और पतंग बड़ी तो फाख्ता असहाय सा होकर डोर के साथ उसी दिशा में निःसहाय सा बहने लगा जिस दिशा में उसे पतंग ले जा रही थी। क्योंकि मेरी आंखें पतंग के ऊपर टिकीं थीं तो मैंने तुरंत ही जान लिया कि अब फाख्ता मुसीबत में है और यदि तुरंत ही मदद नहीं की गई तो वह अपने प्राणों से हाथ धो सकता है। लेकिन डोर फाख्ते के वजन से लगातार नीचे की ओर गिर रही थी।
मेरे घर के ठीक सामने एक पार्क है और रविवार की छुटृटी होने के कारण बहुत से बच्चे पार्क में क्रिकेट खेल रहे थे। मैने तुरंत ही चिल्लाकर पार्क में खेलते हुए बच्चों को आवाज दी कि जैसे ही फाख्ता जमीन पर आए तो उसके और पतंग के बीच की डोर को तोड़ दो। और जैसे ही फाख्ता जमीन पर आया वह असहाय सा फड़फड़ा रहा था बच्चे करीब 6 से 10 वर्ष की आयु के रहे होंगे, फड़फड़ाते हुए पक्षी से घबरा रहे थे और उलझी हुई डोर को नहीं तोड़ पा रहे थे। मैं चिल्लाते हुए भी दौड़ता जा रहा था और जल्द ही सीढ़ियां उतर कर पार्क में पहंचा। मेरे पहुंचने से ठीक पहले ही एक बच्चे ने खीचती हुई डोर को तोड़ दिया।
फाख्ता किनारे घास पर निःसहाय सा पड़ा था मैने पास जाकर उसे उठाया तब तक सारे बच्चे मेरे पास आ गये और गौर से देखने लगे। मैने सबसे पहले उसकी गर्दन पर लिपटी हुई डोर से उसको छुड़ाया फिर उसके उड़ने वाले पंखों से उलझी हुई डोर को सुलझाया तथा उस फाख्ते की पॅूछ से उलझी डोर को छुड़ाने की कोशिश करने लगा। इस बीच मुझे उसकी हृदय गति का अनुभव हो रहा था वह काफी डरा हुआ था। बच्चे मुझे बहुत उत्सुक्ता से देख रहे थे। थोडी सी पकड ढीली कर मैं उसके पूॅछ में उलझे धागे को छुड़ाने लगा वह घायल नही हुआ था बल्कि डरा हुआ था और आॅखें बन्द किये हुए था। पकड ढ़ीली करने के कारण उसे आराम महसूस हुआ होने के कारण उसने धीरे-धीरे आॅखे खोली तब तक उसके पूछ का उलझा हुआ अधिकतर धागा निकाला जा चुका था। अचानक एक झटके से उसने उड़ान भरने की कोशिश करी परन्तु पूछ मे धागा फंसा होने के कारण उसकी पूछ के पंख टूटने के कारण वह हाथ से छूट गया और उड़ गया। बच्चे लोग ताली बजाने लगे और और उसकी जान बचने से बहुत खुश हुए। यह उनके लिये एक सुखद अनुभव था।
अगले दिन 20 दिसम्बर 2010 की सुबह मैं रोज की तरह मार्निग वॅाक के लिये तैयार हो रहा था कि अचानक मेरे कान में फाख्ते की आवाज सुनायी पड़ी। आवाज कमरे के दरवाजे के ऊपर की आर से आ रही थी। अन्दर से दिखायी नही दे रहा था। अगर मैं बाहर जाकर देखता तो सम्भवतः वह डर कर उड़ जाता। मैने अपने बेटे को आवाज देकर ऊपर आकर सीढ़ियों से उसे देखने को बोला। वह सीढ़ियों के पास आकर बोला कि पापा इस डव/फाख्ते की तो पूॅछ ही नहीं है’। मैं स्तब्ध था। मैंने पूरी कहानी अपने बेटे को सुनायी तो वह बोला पापा शायद यह आपको थैंक्स कहने आयी है।
उसके कथन से यह अहसास हो गया कि समस्त प्राणी अपने प्रति किये गये प्रेम को पहचानते है। उस दिन के बाद  वह फाख्ता यदा कदा मेरी छत पर आने लगा, छत पर रखा दाना चुगता पानी पीता और धीरे-धीरे उसकी पूॅछ के पंख भी निकल आये और उसने वहीं कहीं अपना बसेरा बना लिया।




                     शैलेंद्र  तिवारी
                    सेक्टर  21 
                    इन्दिरा  नगर
                    लखनऊ

प्रिया देवांगन प्रियू की रचना। पर्यावरण बचायेंगे 








एक एक पेड़ लगायेंगे , 

पर्यावरण बचायेंगे ।

नही फैलायेंगे कूड़ा कर्कट, 

देश को स्वच्छ बनायेंगेे ।

आओ मिलकर पेड़ लगाये,

जीवन में खुशियाँ फैलायें।

शुद्ध वातावरण बनाये ,

बीमारी को दूर भगायें ।

शुद्ध ताजा हवा चलेगा ,

राही को छांव मिलेगा ।

नही भटकेंगे पक्षी सारे

पेड़ों पर घोसला बनायेंगे, 

एक एक पेड़  लगाकर

पर्यावरण बचायेंगे ।




                             प्रिया देवांगन "प्रियू " 

                             पंडरिया  (कबीरधाम )

                             छत्तीसगढ़ 


शनिवार, 16 जून 2018

प्रिया देवांगन की रचना : स्वच्छता अभियान



स्वच्छ भारत अभियान, 

स्वच्छ भारत अभियान ।

गली मोहल्ला  साफ रखो , 

और स्वच्छता अपनाओ ।

घर हो चाहे बाहर हो , 

कचरा मत फैलाओ ।


दुश्मन को दोस्त बनाओ , 

स्वच्छता अपनाओ ।

अपने मन को स्वच्छ रखो और 

 अच्छी सोच अपनाओ।

वातावरण को स्वच्छ रखने से , 

तन मन शुद्ध हो जायेगा।

हर तरफ खुशहाली होगी , 

बीमारी दूर हो जायेगा।

पर्यावरण को बचाना है ,

भारत को स्वच्छ बनाना है ।

स्वच्छ रखने से हर घर में ,

रोज खुशियाँ आयेगी ।

छू न सकेगी बीमारी ,

झट से दूर हो जायेगी।

बीमारी को भगाना है

स्वच्छता अपनाना है।

स्वच्छ भारत अभियान चलाओ ,

जीवन में खुशियाँ फैलाओ ।






                             प्रिया देवांगन "प्रियू"

                            पंडरिया  (कवर्धा )

                          छत्तीसगढ़ 

priyadewangan1997@gmail.com




कृष्ण कुमार वर्मा की बाल कविता : प्यासी चिड़िया








एक चिड़िया आई आँगन में ,
बैठ गयी खाली बर्तन पर ।
लगी बड़ी थी उसको प्यास ,
चू - चू कर रही थी खास ।

फिर बिटिया शिक्षा ने ,
उठायी छोटी सी गिलास ।
निकाली पानी और 
ले गई उसके पास ।

चिड़िया रानी ने प्यास बुझाई ,
बेबी शिक्षा को अपनी दोस्त बनाई ।
अब रोज सवेरे वह उड़ते आती ,
बिटिया को जल्दी सुबह उठाती ।

खूब प्यार से साथ में खिलाती ,
प्यारी चुनचुन कहकर उसे बुलाती ।। 




                              कृष्ण  कुमार  वर्मा 

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा। नियम सबके लिये बराबर





बच्चों आज तुम्हें बापू के जीवन की एक घटना बता रही हूँ |
बापू के आश्रम साबरमती मे जो नियम बनते थे , उसका पालन सभी को करना पड़ता था |  बापू अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे,नियम पालन के पक्के थे |
भोजन के समय दो घंटी बजती थी |  | सभी लोग अपनी अपनी जगह आकर बैठ जाते थे | दूसरी घंटी बजने के बाद  तक जो नहीं आ पाया उसे दूसरी पंक्ति का इंन्तज़ार करना पड़ता था |
एक बार की बात है बापू समय से भोजन कक्ष तक पहुंच नहीं पाये | बहुत जरूरी काम कर रहे थे | कुछ देर बाद जब भोजन कक्ष पहुंचे तब तक भोजन मिलना बन्द हो गया था  | कर्मचारी बापू का खाना कुटिया तक ले जाने की तैयारी कर रहे थे  कि देखा बापू  भोजनालय के बाहर नई पंक्ति के इंतज़ार में जाकर खड़े हो गये |

कर्मचारियों ने बापू से कहा ,आपका खाना आपकी कुटिया मे पहुँचा रहे हैं| आप लाइन मे क्यों खड़े हैं? बापू ने जवाब दिया, नहीं , जो गलती करेगा उसे दंड भी मिलेगा |मैने गलती की है और उसका दंड मुझे स्वीकार है | नियम सबके लिये बराबर हैं | नियम के आगे कोई छोटा बड़ा नहीं होता है |

    यह कहकर बापू  भोजन कक्ष के बाहर लगी पंक्ति मे खड़े हो गये और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे |
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बच्चों ,नियम का उचित  व समय से पालन सभी समस्याओं का समधान है |


                             मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार


सत्य का संधान दो माँ : सुशील शर्मा की रचना





















ज्ञान दो वरदान दो माँ।

सत्य का संधान दो।


कुटिल चालें चल रही हैं।

पाप पाशविक वृतियां।

प्रेम के पौधे उखाड़ें ।

घृणा पोषक शक्तियां।

है तिमिर सब ओर माता,

ज्योति का आधान दो माँ।

ज्ञान दो वरदान दो माँ,

सत्य का संधान दो माँ।


सत्य के सपने सुनहरे।

झूठ विस्तृत हैं घनेरे।

पोटरी में सांप लेकर।

फैले हैं अपने सपेरे।

ज्ञानमय अमृत पिला कर,

अभय का तुम दान दो माँ।

ज्ञान दो वरदान दो माँ,

सत्य का संधान दो माँ।




अवगुणों की खान हूँ मैं।

अहम,झूठी शान हूँ मैं।

लाख मुझ में विषमताएं।

गुणी तुम अज्ञान हूँ मैं।

पुत्र तेरा चरण मैं है,

सदगुणी संज्ञान दो माँ।

ज्ञान दो वरदान दो माँ

सत्य का संधान दो माँ



चिर अहम को तुम हरो माँ।

इस शिशु को तुम धरो माँ।

यह जगत पीड़ा का जंगल।

घाव मन के तुम भरो माँ।

मैं शिशु तुम माँ हो मेरी,

ज्ञान स्तनपान दो माँ।

ज्ञान दो वरदान दो माँ,

सत्य का संधान दो माँ।




                               सुशील  शर्मा 

बुधवार, 6 जून 2018

मंजू श्रीवास्तव की रचना : बेमिसाल रामू






रामू बड़ी देर से 'सोहनलाल मिठाई वाला 'की दुकान की तरफ ललचाई  नज़रों से देखता हुआ दुकान के चक्कर लगा रहा था |
मौका मिलते ही दुकान से दो  कचौरियां लेकर भागा | सोहन लाल ने देखा और दौड़कर रामू को पकड़ लिया | 
रामू मार के डर से थर थर कांपने लगा | सोहनलाल ने कहा मैं तुम्हें मारूंगा नहीं और दुकान के अन्दर ले गया |
सोहनलाल ने पूछा तुमने चोरी क्यों की? मुझसे मांगते मैं तुम्हें दे देता |रामू ने इतना दयालू इन्सान नहीं देखा था| रामू ने सोचा कि मेरे चोरी करने के बाद भी ये इन्सान इतने प्यार से बातें कर रहा है |
       रामू ने सोहनलाल को सब कुछ सच सच बता दिया | रामू ने कहा साहब आप आज दे देते कल क्या करता? सोहनलाल को रामू थोड़ा होशियार लगा |
  सोहनलाल ने रामू से पूछा क्या तुम काम करोगे ? रामू ने कहा , जरूर करूँगा | पर मुझे काम देगा कौन? जहां जाता हूं लोग भगा देते हैं |
        सोहनलाल ने कहा, मैं तुम्हे काम दूँगा और पढ़ाऊँगा भी | पढ़ोगे न ? रामू का चेहरा खिल उठा क्योंकि उसे पढ़ने की बहुत इच्छा थी |
       सोहनलाल ने पूछा एक बात बताओ रामू कि तुम चोरी क्यों करते
हो? रामू ने कहा, क्या करूँ साहब ? घर मे मां बीमार पड़ी है| काम पे जा नहीं पा रही है |  थोड़े बहुत पैसे थे, सब खत्म हो चुके है | पेट की आग सही नही जाती | काम मिलता नहीं इसलिये मजबूरी मे चोरी करनी पड़ती है|
सोहनलाल ने उसी दिन से उसे काम पर लगा लिया और सबेरे के स्कूल मे नाम भी लिखा दिया |
रामू होशियार तो था ही| काम  मन लगाकर करता था और पढ़ाई भी |
रामू का सब ग्राहकों से व्यवहार बहुत अच्छा था | सोहनलाल भी उससे बहुत खुश था |
  दिन बीतते गये| रामू अब १२ वीं कक्षा का छात्र था| बोर्ड की परीक्षा को आरम्भ होने मे बस एक महीना शेष था | रामू,जी जान से परीक्षा की तैयारी मे जुट गया | समय पर परीक्षा हुई| रामू के पर्चे भी अच्छे हुए थे|
इन्तज़ार की घड़ियां समाप्त हुईं|
आखिर वह दिन भी आ गया जब परीक्षा परिणाम घोषित होने वाले थे|
उम्मीद के मुताबिक रामू बहुत अच्छे नंबरों से पास हुआ था | रामू की खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं था|

वह दौड़ता हुआ सोहनलाल के पास गया और उससे लिपट गया|  बोला ,साहब, ये सब आपका आशीर्वाद है
ैयदि आपने मदद नहीं की होती तो मै इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाता |
     उस दिन सोहनलाल ने जितनी मिठाई बनाई थी पूरे मुहल्ले में बांट दी|
,उधर रामू के स्कूल मे भी जश्न मनाया जा रहा था| रामू ने १२ वीं कक्षा  मे top जो किया था |
पुरस्कार स्वरूप उसे छात्रवृत्ति दी गई, जिससे वह आगे की पढ़ाई जारी रख सके |
रामू की तो जिन्दगी ही बदल गई थी
अब उसका लक्ष्य था  IAS Officer बनके देश की सेवा करना | मां को सब सुविधायें देना जिससे अभी तक वो वंचित थीं|
*†********

बच्चों रामू अपनी लगन और  समर्पण भाव  से  पढ़ाई  करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सका |



                             मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार



कृष्ण कुमार वर्मा की कहानी। : सच्ची मेहनत








राहुल और आकाश दो बचपन के सच्चे मित्र थे । साथ मे पढ़ते , खेलते और घूमते । दोनो ने  एक ही साथ माध्यमिक परीक्षा पास कर गांव से 8 किलोमीटर दूर हाईस्कूल में प्रवेश लिया ।  राहुल पढ़ाई में तेज था जबकि आकाश एक औसत छात्र था । 
दोनो साथ - साथ विद्यालय जाते और घर आते । धीरे - धीरे कक्षा में राहुल की दोस्ती और बच्चों  के साथ  भी बढ़ने लगी क्योंकि वह होशियार लड़का था । वहीं आकाश से भी राहुल का रुझान कम होता जा रहा था । इस संदर्भ में आकाश कई बार समझाता था कि साथ बैठकर पढ़ेंगे तो ज्यादा आसानी होगा और मेरी भी दिक्कतें दूर हो जाएगीं । आकाश बहुत ही मेहनती लड़का था भले ही औसत छात्र था । वह प्रतिदिन घर के काम से समय निकाल कर पढ़ाई में ध्यान देता था । प्रतिदिन सुबह से उठकर पढ़ता था । वहीं राहुल की दोस्ती और बच्चों से दिनोदिन बढ़ती जा रही थी और उसे  आकाश को पढ़ाई में मदद करने में कोई रुचि नही रह गयी थी । वह हमेशा आकाश को पढ़ाई में ध्यान देने को कहता था कि वह कमजोर है , अच्छे से पढ़े ताकि बोर्ड परीक्षा पास कर सके । 
राहुल ने कक्षा नवमी तक विद्यालय में टॉप किया था और दसवीं की अर्धवार्षिक परीक्षा में भी सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किया । उसे गणित विषय बहुत अधिक प्रिय था इसलिए उस विषय  पर   ज्यादा ध्यान देता था ।  अर्धवार्षिक परीक्षा के बाद दोनों का एक साथ पढ़ना लिखना लगभग बन्द हो गया था और वे अपनी अपनी तैयारी में ब्यस्त हो गए । राहुल पढ़ाई के साथ साथ घूमने और क्रिकेट खेलने का भी शौकीन था । बीच- बीच मे खेलने चला जाता था । 
आकाश के लिए सबसे बड़ी मुसीबत थी तो वो गणित विषय ही था ।  वह इतना सक्षम भी नही था कि ट्यूशन कर सके । बड़ा परेशान था कि वह कैसे अच्छे अंक प्राप्त कर पायेगा । 
एक दिन शाला में अंग्रेजी विषय के सर ने उसे परेशान देखा तो पूछा ?  उसने सारी समस्या उस सर को बता दिया । तब सर ने उसे समझाया कि बेटा सभी विषय महत्वपूर्ण होते है और सबको बराबर ध्यान से  पढो अगर अच्छे अंक से पास होना चाहते हो तो । क्योंकि सभी विषय के अंक मिलकर पूरा परिणाम निर्धारित करते है । इसलिए सभी विषयो को समय सारणी के आधार पर निर्धारित कर पढ़ाई करो । और गणित तथा अंग्रेजी से सम्बंधित दुविधाओं को लंच के समय मुझसे दूर कर लेना । वर्मा सर का जवाब सुनकर आकाश के मन मे एक नया संचार और आत्मविश्वास भर गया और वह मन लगाकर वह जुट गया । वही राहुल को विश्वास था कि शाला में टॉप तो वही करेगा क्योंकि वह सबसे कठिन विषय गणित का मेघावी छात्र था । 
वार्षिक परीक्षा शुरू हुई और दोनो दोस्तो के पर्चे अच्छे गए । आकाश की मेहनत इस बार शानदार थी क्योंकि उसने अपने कमजोरी को ही अपना ताकत बना लिया था और दृढ़ संकल्पित था कि बोर्ड परीक्षा अच्छे से पास करेगा । 
महीने बाद परिणाम आया और बड़ा परिवर्तनकारी रहा । राहुल ने अच्छे अंक प्राप्त किये । उसे उम्मीद के अनुसार गणित में 95 अंक प्राप्त हुए जबकि सामाजिक विज्ञान की अनदेखी से मात्र 70 अंक ही प्राप्त कर पाया । कुल 600 अंको में 510 अंक प्राप्त किया । लेकिन उस परिणाम से ज्यादा आश्चर्य उसे आकाश के परिणाम से था । आकाश में 600 में 536 अंक लाकर पूरे विद्यालय में टॉप किया था । उसे गणित में 76 अंक प्राप्त हुए थे लेकिन उसने अन्य सभी विषयों में 90 से अधिक अंक प्राप्त किये जिसमे अंग्रेजी विषय मे 96 अंक काफी आश्चर्य करने वाली बात थी ।
पूरे विद्यालय में हलचल हो गई थी कि इस बार टॉपर एक औसत छात्र बना । जब दोनों आपस मे मिले तो राहुल ने बड़े आश्चर्य से पूछा तो उसने वर्मा सर वाली मार्गदर्शन बाली बात उसे पूरी बता दी । यह सुन राहुल को बहुत निराशा हुई कि क्यों उसने मार्गदर्शन नही लिया और एक गणित विषय के अतिआत्मविश्वास के कारण अन्य विषयों पर ध्यान दे नही पाया कि बाकी तो ऐसे ही बन जायेगा ।
राहुल और आकाश दौड़ते वर्मा सर के पास गए और आशीर्वाद लिए और आकाश ने सर से कहा - सर ये सब आपके कारण हुआ है ।
तब सर मुस्कुराये और बोले - नही बेटा ! ये तो तुम्हारी सच्ची मेहनत थी जो तुमने ईमानदारी से की थी । जीवन मे आत्मविश्वास जरूरी है लेकिन अतिआत्मविश्वास से बचना चाहिए और हमेशा अपने से बड़ो का मार्गदर्शन लेते रहने चाहिये ।
अब तक राहुल बहुत कुछ समझ चुका था ।




              कृष्णकुमार वर्मा 
              चंदखुरी फार्म , रायपुर

बुशरा तब्बसुम का बालगीत : मैंने सोचा में हूँ घोड़ा





कल मे खुश था थोड़ा थोड़ा
मैने सोचा मै हूँ घोड़ा
टकबक टकबक खूब चलूँगा
अब तो चारे पर ही पलूँगा


दूध वूध ना पीना पड़ेगा
कोई भी नही मुझसे लड़ेगा ।
लेकिन कोई चढ़ बैठा तो?
मेरे कानो को ऐंठा तो?


पीठ पे चाबुक दे मारेगा
जोश मेरा सारा हारेगा
झट से मैने सपना तोड़ा
मुझको तो नही बनना घोड़ा ।




                         बुशरा तबस्सुम
                         रुड़की , उत्तर प्रदेश

महेन्द्र देवांगन "माटी" की रचना : पेड़ों को मत काटो








एक एक पेड़ लगाओ , धरती को बचाओ ।

मिले ताजा फल फूल,  पर्यावरण शुद्ध बनाओ ।

मत काटो तुम पेड़ को , पुत्र समान ही मानो ।

इनसे ही जीवन जुड़ा है , रिश्ता अपना जानो ।


सोचो क्या होगा अगर,  पेड़ सभी कट जायेंगे ?

कहां मिलेगी शुद्ध हवा, तड़प तड़प मर जायेंगे ।

फल फूल और औषधि तो, पेड़ों से ही मिलते हैं ।

रहते मन प्रसन्न सदा , बागों में दिल खिलते हैं ।


पंछी चहकते पेड़ों पर , घोसला बनाकर रहती हैं।

फल फूल खाते सदा, धूप छाँव सब सहती हैं ।

सबका जीवन इसी से हैं, फिर क्यों इसको काटते हो।

अपना उल्लू सीधा करने, लोगों को तुम बाँटते हो।


करो संकल्प जीवन में प्यारे, एक एक वृक्ष लगायेंगे ।

हरा भरा धरती रखेंगे, जीवन खुशहाल बनायेंगे ।





महेन्द्र देवांगन "माटी"

पंडरिया  (कवर्धा )

छत्तीसगढ़ 

वाटसप नंबर 8602407353



सुशील शर्मा की कहानी : धन्यवाद टुन्नू








बाहर नगर पालिका की कचरे समेटने वाली गाड़ी में स्पीकर से गाना रहा था "गाड़ीवाला आया बहिन कचरा निकाल " 


मेरी  पांच साल की बेटी टुन्नू बोली "पापा ये गाड़ीवाला इस कचरे का क्या करता है ?"


"कुछ नहीं बेटा एक जगह पर जाकर इकठ्ठा फेंक देते हैं "मैंने पेपर पढ़ते हुए कहा। 


पापा मम्मी और बाजू वाली आंटी बाहर सड़क पर कचरे को क्यों फेंकते हैं इससे गंदगी होती है "टुन्नू की बात सुनकर मेरी श्रीमती गुस्से में बोली "अच्छा तू ही मोदी जी की स्वच्छता की दूत है। 


वो सही तो कह रही है सड़क पर कचरा फेंकने से हमारा घर तो स्वच्छ हो जाता है किन्तु पर्यावरण नष्ट और प्रदूषित  होता है "मुझे मानो श्रीमती जी पर आक्रमण का मौका मिल गया था। 


"अच्छा ज्यादा बातें मत करो कभी हाथ में झाड़ू पकड़ी है जो इतना प्रवचन दे रहे हो "एक गिलास पानी खुद लेकर पी नहीं सकते बड़े आये सफाई पर प्रवचन देने वाले "श्रीमती आक्रामक मुद्रा में आ गई थी। 


अरे नहीं मैं तो सामान्य बात कर रहा था मैंने बचाव की मुद्रा में कहा। 


"पापा कल रविवार है क्यों न हम कल अपने बगीचे और घर की सफाई कर पूरे कूड़े को उस कचरा गाड़ी में डालें "टुन्नू ने बहुत उत्साहित होकर कहा। 


"अरे नहीं बेटा कल बहुत काम है मुझे मगसम के लिए आर्टिकल कवितायेँ लिखना हैं "मैंने पतली गली से भागने की कोशिश की। 


"तुमने अपना कमरा और कम्प्यूटर देखा है कितनी धूल छा रही है टुन्नू सही कह रही है कल आप पूरे कमरे के जाले और बगीचे की सफाई करेंगे। मैं मगसम पटल पर सभी से कह दूंगी की आज शर्मा जी मोदी  सफाई दूत हैं कृपया इनको क्षमा करदें "मेरी पत्नी की मुस्कराहट बता रही थी कि मैं फंस चुका था। 


आज सुबह से ही मैं और मेरी बेटी घर की सफाई में व्यस्त हैं सर पर कपड़ा बांधे हाथ में लम्बा झाड़ू बंधा डंडा पकड़े सफाई में व्यस्त हूँ मेरी बेटी टुन्नू मेरी सहायता कर रही है। बाहर मोदी जी का सफाई दूत स्पीकर में चिल्ला रहा है "गाड़ी वाला आया बहिन कचरा निकाल "


मन को अच्छा भी लग रहा है कि आज रविवार को मैं अपनी पत्नी के कामों में हाथ बटा रहा हूँ। साथ में उस पुरुष अभिमान का भी क्षरण हो रहा है जो ये समझता है की ये सफाई बगैरा के काम सिर्फ स्त्रियों के लिए हैं। 

धन्यवाद टुन्नू। 


                             सुशील  शर्मा