पिंकू अपने मम्मी, पापा,,दादा,दादी के साथ रहता था | बड़ा होशियार था | पढ़ाई में और बातों मे भी |
दादी काफी बुज़ुर्ग महिला थीं| दादी का बड़ा लाड़ला था | दौड़ दौड़ के उनका छोटा मोटा काम कर देता था |
एक दिन पिंकू स्कूल जाने के लिये तैयार हो रहा था| मेज पर नाश्ता करने बैठा था | उधर उसकी दादी अपना चश्मा ढूंढती हुई आई| पिंकू बेटे क्या तुमने मेरा चश्मा देखा है
?
उनकी आवाज सुनकर मम्मी पापा भी कमरे मे आये और दादी से पूछा क्या ढूंढ रही हो मां? दादी ने कहा बेटा ! यहां चश्मा रखा था वही ढूंढ रही हूँ |
बेटे ने देखा कि चश्मा वहीं रखा है| मां से बोला ! ये क्या रखा है चश्मा| तुम तो मां बिल्कुल अंधी हो गई हो | सामने की चीज नहीं दिखती, सबको परेशान करती हो |कोई भी चीज ठीक से नहीं रखती हो |
पिंकू यह सब देख रहा था और सुन भी रहा था |
दूसरे दिन पापा ऑफिस जाने की जल्दी मे थे और फाइल नहीं मिल रही थी |पिंकू जरा मेरी फाईल तो देखना कहां है?
पिंकू ने पापा के शब्द ही दोहराये |
पापा आप भी बिल्कुल अंधे हो गये हो | सामने की चीज नही दिखाई दे रही है| ये तो रही फाइल |
पापा ने जोर से डांट लगाई, ये क्या तरीका है बोलने का? क्या यही स्कूल मे सिखाया जाता है?
पिंकू ने कहा नहीं आपसे सीखा है |
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बड़े जब अपने बुज़ुर्गों का सम्मान नहीं करेंगे तो बच्चे भी वही सीखेंगे | | अतः बच्चे, बड़े सभी को अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करना चाहिये |
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मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार