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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

नमन शौर्य को सुशील शर्मा




शौर्य सिक्त वायु सेना को,
शत शत आज नमन है।
इन वीरों के संधानो से,
भारत हुआ चमन है।

देश आज गर्वित है इन पर,
पुलकित मन हमारा है।
आतंकों की टोली को इनने,
घर में घुस कर मारा है।

सुने देश के सारे दुश्मन,
इन मिराज आवाज़ों को।
जो भी हम पर आंख उठाये,
सुनले इन बम बाजों को।

नही किसी का बुरा चाहते,
हम शांति के धारक हैं।
लेकिन जो हमको छेड़ेगा,
हम घातक और मारक हैं।

सुनो आज ये दुनिया वालो,
नया आज ये भारत है।
जो हमसे टकरायेगा,
उसका कत्लोगारत है।

है करार अब मन में मेरे
सीमाएं अब रक्षित हैं।
वीर जवानों के साहस से,
मेरा देश सुरक्षित है।

                         सुशील शर्मा

मछली जल की रानी है : सुशील शर्मा का बालगीत





मछली जल की रानी है,
ये तो बात पुरानी है।
लहराती बल खाती चलती,
पानी में ये खूब उछलती।
नदी समंदर में रहती है ,
नीचे से ऊपर बहती है।
कभी झांकती ऊपर आकर,
वापस लौटे नीचे जाकर।
मछुआरे के जाल में फंस कर ,
ये मर जाती तड़फ तड़फ कर।
इसकी अज़ब कहानी है,
मछली जल की रानी है।




















सुशील शर्मा 

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : रेलगाड़ी




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रेलगाड़ी  रेलगाड़ी 
आई देखो रेलगाड़ी 
नीले लाल डिब्बोवाली
रेलगाड़ी  रेलगाड़ी 

नगर गांव  दौडी जाती
पहाडों पर  चड़ जाती
पूरे देश की सैर कराती
दौडती भागती रेलगाड़ी 

दिल्ली से लखनऊ जाती
नानी घर की सैर कराती
दिल्ली वापस आजाती
रेलगाड़ी देखो रेलगाड़ी 

पापा मम्मी या बाबा नाना
पहले तुम टिकट कटाना
छोटे बच्चों का हाफ रेट है
शिशुओं की फ्री है रेलगाड़ी 

                                 शरद कुमार श्रीवास्तव 

सूरज : प्रिया देवांगन प्रियू की रचना




सूरज 
*********  
देखो देखो आसमान पर , 
सूरज निकल आया  है।
सूरज की किरणों को देखो , 
सब जगहों पर छाया है।

पंछी अपने आवाजो से 
सारे जग  को जगाया है।
फूलों की बगिया को देखो
मन में खुशियाँ लाया है।

चींव चींव करते पंछी सारे
आसमान पर आया है।
देखो देखो आसमान पर , 
सूरज निकल आया  है।

























  प्रिया देवांगन  "प्रियू"
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)

सरस्वती वंदना शरद कुमार श्रीवास्तव






माँ सरस्वती करिये कल्याण
हम सब छोटे बच्चे हैं नादान
हमे शिक्षा का दीजे वरदान
पढनें लिखने मे लगे ध्यान 
जिससे हम बन जायें महान 
माँ सरस्वती करिये कल्याण

शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

मंजू श्रीवास्तव की रचना नमन और तैराकी


नमन और तैराकी
तैराकी प्रतियोगिता के लिये सब बच्चे स्वीमिंग पुल के किनारे तैयार बैठे थे |
नमन भी उस प्रतियोगिता  मे एक प्रतिभागी था|
वह सोच रहा था कि उसने हिस्सा तो ले लिया पर क्या वह पानी मे कूद पायेगा? पानी बहुत गहरा था और उसे पानी से बहुत डर लगता था |
इतने मे एक छोटा लड़का आकर नमन से पूछने लगा , अंकल जी , क्या आप भी रेस मे शामिल हैं? नमन ने उत्तर दिया क्यों मैं पानी मे नहीं कूद सकता क्या?
इस उत्तर से नमन के हौसले मे थोड़ी मजबूती आई | सभी तैराक तैयार थे| सब एक दूसरे को शुभ कामना दे रहे थे | अपनी अपनी जगह पहुंच चुके थे | तभी रेफरी ये सीटी बजाई| सब लोग एक साथ पूल मे कूद गये |
नमन ने भी छलांग लगाई | कूद तो गया पर मन ही मन मे डर रहा था कि उस जैसे निःशक्त शख्स को पूल मे नहीं कूदना चाहिये था |.
फिर उसने चारों तरफ देखा और अपने आस पास कई युवाओं को  तैरते हुए देखकर डर कम होने लगा | दो तीन राउंड लगाने के बाद वह भी और लोगों की तरह  सफल हो गया तैराकी मे |
उसने महसूस किया कि और तैराकों की तरह उसमें क्षमता  नहीं थी लेकिन उसने हौसला नहीं छोड़ा |इस तरह वह सफल हो गया |
    रेस समाप्ति के बाद रेफरी साहब ने नमन  को शाबाशी दी उसकी सफलता पर  |पूल से बाहर आने पर सभी ने तालियां बजाकर उसका स्वागत किया  |
नमन ने कई अशक्त बच्चों मे नई उम्मीदें भर दी थीं |
बच्चों, यदि हौसले बुलंद हों तो कोई भी कार्य कठिन नहीं होता | बस कोशिश जारी रखनी चाहिये , इच्छा शक्ति दृढ़ होनी चाहिये |
*************************"****
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

अंग्रेजी मे शिक्षा का कमाल : शरद कुमार श्रीवास्तव





राघव ने दुखी होकर अपने दोस्तों को बताया कि गाँव से उनकी दादी जीआई हुई हैं। उन्हे न्यूज पेपर पढने का बड़ा शौक है। इसलिये उसके घर मे हिन्दी का न्यूज पेपर आना शुरू हुआ है।  कहानी की किताबे और हिन्दी के अखबार यही पढ़ती रहती।  पेपर का एक एक कोना चाट डालती है तब जाकर उन्हे चैन मिलता है। कृष्ना बोला पर तुम तो पेपर कम पढ़ते हो तुम्हे इससे क्या मतलब है।  हाँ भाई हमे तो अपनी पढ़ाई से ही फुरसत नहीं है हम पेपर पढ़ने के लिये समय ही नहीं मिलता है।  लेकिन आज मैने हिन्दी के पेपर मे एक अजीब समाचार पढ़ा है इसी लिये एडमिनिस्ट्रेशन  के लिये सवाल उठ रहे हैं कि वह ऐसा कैसे कर सकते हैं।  उसने जेब से मुड़े हुए अखबार का टुकड़ा निकाला जिस पर लिखा था " रामपुर मे रामस्वरूप ने चोरी की फलस्वरूप पकड़ा गया" यह कैसी नांइन्साफी है चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाय। राघव के मित्र कृष्ना ने भी बहुत आश्चर्य जताया और राघव की हाँ मे हाँ मिलाई बोला हाँ यार यह तो बड़ी खराब बात है।  उनके एक मित्र जर्नालिस्ट थे न्यूज पेपर मे उनके लेख छपते थे। वे दोनो उसके पास गये उसे भी अखबार का कोना दिखाया। वह मित्र बोला यार कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ किया होगा तभी फलस्वरूप पकड़ा गया है लेकिन तुम्हे इससे क्या लेना देना है। राघव को वाकई कुछ लेना देना नही था
राघव घर लौट कर दादी जी से कहा दादी जी आप यह कैसा अखबार पढ़ती हैं उसमे तो सब उल्टा- सीधा लिखा रहता है। दादी जी ने राघव की तरफ देखा तब वह बोला दादी आपके पेपर मे तो लिखा है रामस्वरूप ने चोरी की फलस्वरूप पकड़ा गया। दादी जी बोली, ठीक ही तो है इसमे गलत बात क्या है ? राघव बोंला, गलत् नहीं है तो क्या है ,चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाय।  नहीं बेटा, रामस्वरूप ने चोरी की इसके कारण  वह पकड़ा गया यह मतलब है।  राघव दादी की बातों को सुन आश्चर्य से उन्हे देखता रहा।   दादी बोली, यह तुम्हारी अंग्रेजी शिक्षा का कमाल है। जिसका तुम लोग बहुत ख्याल रखते हो परन्तु अपनी मात्रभाषा के प्रति बहुत उदासीन हो जाते हो। अभी दो चार दिन पहले तुम्हारा दोस्त चित्त रंजन गुप्ता आया था तुम्हारी छोटी बेटी से बोला कि कह दो सी आर गुप्ता आये है. तुम्हारी बेटी ने तोतली आवाज मे चिल्लांकर तुम्हे बताया था कोई सियार कुत्ता आये हैं तब गुप्ता जी का चेहरा देखने लायक  था ।


शरद कुमार  श्रीवास्तव

शादाब आलम की रचना : ठंड हमे धमकाए







बाहर फैली धुंध, हवाएं
चलें सरर-सर सर
सुन्न पड़े हैं हाथ-पैर, हम-
कांपे थर-थर-थर।
पानी छूने से डर लगता
ठंड हमे धमकाए
फिर भी रिंकू रोज़ नहाकर
ही विद्यालय जाए।



                          शादाब आलम 


जाड़ा भैय्या वापस जाओ : प्रदीप शुक्ल



बहुत हो गया जाड़ा भईया
अब वापस अपने घर जाओ
कुहरे की चादर समेट कर
ठंड यहाँ से दूर भगाओ  

ऊब गए हैं घर में बैठे
मन करता है बाहर खेलूँ
स्वेटर मफलर और ज़ुराबे
इनको मैं अब कब तक झेलूँ

अब तो तुमने हद ही कर दी
बारिश को भी ले आये हो
सूरज अंकल छुट्टी पर हैं
बस इससे तुम इतराये हो

कुछ ही दिन में सूरज अंकल
घर वापस आने वाले हैं
चम चम करती धूप सुनहरी
संग में वो लाने वाले हैं

लेकिन सुन लो जाड़ा भैय्या
मुझ से तुम नाराज़ न होना
दूर चले जाओगे जब तुम
मुझको फिर आयेगा रोना

सूरज अंकल बहुत तेज़ हैं
हम बच्चे उनसे घबराते
सच में बहुत मज़ा आता है
वापस जब तुमको हम पाते

जाड़ा भैय्या अब तुम जाओ
वापस भी तुम जल्दी आना
हर बरसों की तरह साथ में
रंग बिरंगे कपड़े लाना.

डॉ. प्रदीप शुक्ल

मदारी : प्रिया देवांगन प्रियू



बंदर आया बंदर आया।
एक मदारी उसको लाया।।
बंदर को वह बहुत नचाया।
बच्चों ने ताली बजाया।।
नया नया है खेल दिखाया।
बच्चों को वह खूब हँसाया।। 
रस्सी पर चलकर दिखाया।
अपने संग बंदरिया लाया।।
नया नया करतब सिखाया।
बच्चों को है खूब भाया।। 

           प्रिया देवांगन "प्रियू"
           पंडरिया 
          जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)
           Priyadewangan1997@gmail.com

अरी परीक्षा (बाल कविता) : सुशील शर्मा





अरी परीक्षा तू क्यों आई।
देख तुझे भर आईं रुलाई।

     कक्षा में बैठे हम आगे।
     खिड़की से हम कूद के भागे।
      जब पकड़ा टीचर ने हमको,
खूब जोर से पड़ी पिटाई।
अरी परीक्षा तू क्यों आई।

    शिक्षक ने हमको समझाया।
     डांट डांट कर खूब पढ़ाया।
      लेकिन हम माटी के माधो,
खेले तब भी छुपा छुपाई।
अरी परीक्षा तू क्यों आई।

     सर ने इतने प्रश्न लिखाये।
     उनके उत्तर मुझे न आये।
     दिन भर मैंने समझा उनको,
रात रात भर करी रटाई।
अरी परीक्षा तू क्यों आई।

      प्रश्न पत्र जब हाथ मे आया।
         देख उसे ये मन घबराया।
         प्रश्न हुए सब गडम गड्ड,
मुझको आती रही रुलाई।
अरी परीक्षा तू क्यों आई।

      आज ये शिक्षा मैं लेता हूँ।
      पक्का वचन आज देता हूँ।
      छोड़ के ये सारी शैतानी,
करूँ साल भर खूब पढ़ाई।
अरी परीक्षा तू क्यों आई।


                          सुशील शर्मा



बुधवार, 6 फ़रवरी 2019

सब्जियों की पाठशाला :शरद कुमार श्रीवास्तव






चौधरी कटहल सर कक्षा  मे आ गये थे  ।   लेकिन  क्लास  बिल्कुल  सब्जी मंडी  बना  हुआ  था ।  सर बोले शान्त हो  जाओ । परन्तु  कोई  भी  चुप  नहीं  हो  रहा  था  ।  सबसे  ज्यादा  शोर  हरी मिर्च  कर रही  थी  । वह  कह रही थी  कि  सब जगह उसका ही बोलबाला  है  ।  किसी  ने  उसको मुँह  में  डाल  लिया  तो सी सी करता  फिरेगा  , फिर  भी  कोई  भी सब्जी  उसके  बगैर  फीकी  है ।   कटहल सर जी  बोले  कि  इस  क्लास  का मानीटर कौन  है  ।    सब सब्जियाँ  बोले ही   जा रहीं  थीं  कोई  चुप होने  का नाम  नहीं  ले रहा था ।    तब कटहल  सर बोले  कि  चलो सब लोग  बारी बारी से अपने  अपने  बारे मे बताओ फिर  मैं  मानीटर  बनाऊंगा ।
कद्दू  भैया  लुढ़क  कर  बोले  : सर जी  पहले  आप  अपना  परिचय  तो दीजिए ।


   कटहल सर  बोले   मेरा  नाम  कटहल  है  ,  कुछ जगह   लोग  मुझे  पणस  तो कहीं  पर मुझे  गाछ पाठा यानी पेड़  का बकरा भी कहते है।  जो लोग  मांसाहारी  नहीं  है   वे लोग  मुझमे मांस का  स्वाद  ढूढते हैं ।   पका  हुआ  कटहल कहीं  कहीं  मिठाई  की  तरह  खाया  जाता  है  ।  हाँ  एक बात  और है! एक  ही  शक्ल सूरत  का  कटहल  दूसरा  नहीं  मिलता  है ।  यह कम रक्तचाप  के  लिए  बहुत  गुणकारी  होता है ।   फाइबर  भी प्रचुर मात्रा  में  मिलता है । कटहल सर  बोले मैने अपने  बारे  में  बताया  अब तुम लोगों  की  बारी  है ।


इस पर बैंगन  बोला  सर मानीटर  तो  मै बनूंगा  मेरे सिर  पर  पहले से ही ताज  भगवान  ने  दिया  है बैंगन  की  सब्जी  स्वादिष्ट  होती  है  ।   इसमे कैल्शियम  , फास्फोरस  , आइरन  होता है  और इसे खाने  से  अनिद्रा  दूर होती है  । 


 तब परवल बोला  बैंगन  तो  बादी बढ़ाता है  परवल को नियमित  खाने से बहुत  लाभ  मिलता  है  ।   यह दवा  का  मी काम करता है  ।   रोगी को  परवल का सूप अंदरूनी  कमजोरी  को दूर करने परवल  का सूप दिया  जाता है शोर वे दार और सूखी  सब्जी  दोनो बनाई जाती है ।  इसमे खोवा  भर के  बहुत स्वादिष्ट  मिठाई  भी  बनाई  जाती  है ।


अब फूल गोभी  का नम्बर  था । फूल  गोभी बोली  यद्यपि  मै प्रायः  सर्दियों की  सब्जी  हूँ परन्तु  बहुत  गुणकारी  होती  हूँ।  इसे कच्चा  भी  खाया  जाता  है  ।   लेकिन  अधिकतर  सूखी या रसेदार आलू और मटर के  साथ  बनाई जाती  है ।  गोभी  मुसल्लम भी  बड़े चाव से  खाई जाती है ।  गोभी खाने से यद्यपि  गैसें  बनती हैं  परन्तु  समान मात्रा मे गाजर  के  साथ  बनाने पर गैस बनने नहीं  पाती  है ।   तमाम तरह के  विटामिन  और  खनिज लवण  रहने से  फूल गोभी  दिल के लिये और तिल  को दूर करने  में  उपयोगी होती  है ।
पत्ता गोभी  से सर ने पूछा  तब उसने बताया  कि  वह बहुत गुणकारी  है  कैन्सर  तक मे लाभदायक  है  । एन्टी इन्फ्लेमेटरी   है  अल्माइजर को कम करता है  मोतियाबिंद  को रोकता  है। पेप्टिक  अल्सर , मोटापा  कम  करने  में विशेष  सहायक  है  चर्म  की  हिफाजत  करता  है।
सब अपनी  तारीफ  कर  रहे  थे  आलू से  नहीं गय। वह बोल उठा कि  आलू के  बगैर  तो तुम मे से अधिक सब्जियों   का काम  नहीं  चलता  । लगभग हर सब्जी  मे मुझे  डाला जाता है  ।    बच्चे  मुझे  चाव से खाते  हैं ।
करेला  आलू से  बोला  पड़ा  चुप रहो अपनी  नादानी  न दिखाओ आलू ज्यादा  खाने  से डायबीटीज  का खतरा रहता  है  ।   मुझमे  तो आलू नहीं  पड़ता  है ।  मै  कडुवा  जरूर हूँ, लेकिन  औषधीय  गुणों  से  परिपूर्ण  हूँ ।   करेला खाने से  डायबीटीज  नियन्त्रित  रहती  है  गुर्दे  साफ रहते हैं  ।  पेट के  विकार,  कीड़े,  अस्थमा  इत्यादि  मे काफी  लाभदायक है  ।
भिन्डी  बोली  आलू तो मेरी सब्जी  भे नहीं  पड़ता  है । भिंडी एक स्वादिष्ट सब्जी है जो स्वाद और पोषक तत्व दोनों में उच्च हैं। भिंडी विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर का एक अच्छा स्त्रोत हैं। भिंडी में कैल्शियम, पोटेशियम, लोहा, मैग्नीशियम, मैंगनीज और फास्फोरस जैसे मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। भिन्डी कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, नेत्र रोग, कब्ज, एनीमिया, त्वचा रोग और संक्रमण के उपचार में इस्तेमाल किया जाता हैं।

कटहल  सर  ने समय पर ध्यान  दिया  और  कहा  कि  इसी तरह गाजर  खीरा लहसुन  प्याज टमाटर आदि   सभी  सब्जियाँ  गुणकारी  होती  हैं,  गाजर में  मौजूद बीटा -करेटिन रूखी  त्वचा  को  नर्म  बनाता  है  । खीरा तो बहुत लंबे समय से आंखों के आसपास के काले घेरों को दूर करने में उपयोग में लाया जा रहा है ।  लहसुन भी   उम्र  के  असर  को  कम करने में सहायक होता है । प्याज  और टमाटर  के  बगैर  शायद ही कोई  स्वाद  वाली  तरकारी  बनती हो  इसीलिए इनकी कमी कभी कभी  लोगों  को  बहुत खलती है ।   सब सब्जियाँ  अपनी  अपनी  जगह  बहुत लाभकारी  हैं।   इसलिये  बच्चों  को  चाहिये   कि वे  खूब  सब्जी  खायें ।  कटहल सर का पीरियड  समाप्त  हो  गया  और  उन्हें  बिना  मानीटर  चुने हुए  कक्षा  से जाना पड़ा ।।


शरद कुमार श्रीवास्तव 

प्रिया देवांगन प्रियू की रचना : चिड़िया रानी


चिड़िया रानी बड़ी सयानी ,
दिनभर पीती पानी।
दाना लाती अपना खाती,
बच्चों को संग खिलाती ।
चिड़िया रानी चिड़िया रानी ----।।

सुबह सुबह से , 
चींव चींव करके।
सबको सपनों  से जगाती,
चिड़िया रानी चिड़िया रानी ।।

आसमान की सैर करती,
बाग बगीचों में घूमा करती।
रंग बिरंगी फूल देखकर ,
मीठी मीठी गीत सुनाती ।
चिड़िया रानी चिड़िया रानी ।।

बच्चों को उड़ना सिखाती,
घर घर के आंगन को जाती।
चींव चींव कर सबको बुलाती,
चिड़िया रानी चिड़िया रानी ।।

दाना लाती पत्ते लाती,
तिनका तिनका करके।
पेड़ों पर घर बनाती ,
चिड़िया रानी चिड़िया रानी ।।

           प्रिया देवांगन "प्रियू"
           पंडरिया 
           जिला - कबीरधाम  (छत्तीसगढ़)
           Priyadewangan1997@gmail.com

मेरा गाँव : महेन्द्र देवांगन माटी की रचना






मेरा गाँव है बड़ा सुहाना, 
पीपल का है छाँव पुराना।
जिसमें बैठे दादा काका, 
ताऊ भैया और बाबा ।।

तरह तरह की बात बताते, 
नया नया किस्सा सुनाते ।
कभी नही वे लड़ते झगड़ते, 
आपस में सब मिलकर रहते ।।

सुख दुख में सब देते साथ,
देते हैं हाथों में हाथ ।
चारों ओर है खुशियाँ छाई, 
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई ।।

तीज त्योहार मिलकर मनाते,
आपस में हैं गले मिलाते ।
स्वच्छ सुंदर मेरा गाँव, 
चारों ओर हैं पेड़ों की छांव ।।


                       महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) 
                       पंडरिया (कबीरधाम) 
                       जिला -- कबीरधाम 
                       छत्तीसगढ़ 
                       8602407353

                           mahendradewanganmati@gmail.com

सुभाष के रास्ते से आज़ादी के मायने : सुशील शर्मा





23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस एवं प्रभावती के घर जन्मे सुभाष चंद्र बोस का जीवन अत्यंत संघर्ष पूर्ण, शौर्यपूर्ण और प्रेरणादायी है।विवेकानंद की शिक्षाओं का सुभाष पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अपने विशिष्ट व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों की वजह से सुभाष चन्द्र बोस भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उस समय हुआ जब भारत में अहिंसा और असहयोग आन्दोलन अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थें।
बचपन से ही हमारे दिमाग में यह धारणा बैठा दी गयी है कि ‘गाँधीजी की अहिंसात्मक नीतियों से’ हमें आजादी मिली है। इस धारणा को पोंछकर दूसरी धारणा दिमाग में बैठाना कि ‘नेताजी और आजाद हिन्द फौज की सैन्य गतिविधियों के कारण’ हमें आजादी मिली- जरा मुश्किल काम है।
कांग्रेस के अधिवेशन में  नेताजी ने कहा था - “मैं देश से अंग्रेजों को निकालना चाहता हूँ। मैं अहिंसा में विश्वास रखता हूँ किन्तु इस रास्ते पर चलकर स्वतंत्रता काफी देर से मिलने की आशा है। उन्होंने क्रान्तिकारियों को सशक्त बनने को कहा। वे चाहते थे कि अंग्रेज भयभीत होकर भाग खड़े हों। वे देश सेवा के काम पर लग गए। न दिन देखा ना रात। उनकी सफलता देख देशबन्धु ने कहा था- मैं एक बात समझ गया हूँ कि तुम देश के लिए रत्न सिद्ध होगे।
 नेताजी ने अपने रेडियो सम्बोधन में आज़ाद हिन्द फ़ौज़ की वैधता को जाहिर करते हुए कहा था "मैं जानता हूँ कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वाधीनता की माँग कभी स्वीकार नहीं करेगी। मैं इस बात का कायल हो चुका हूँ कि यदि हमें आज़ादी चाहिये तो हमें खून के दरिया से गुजरने को तैयार रहना चाहिये। अगर मुझे उम्मीद होती कि आज़ादी पाने का एक और सुनहरा मौका अपनी जिन्दगी में हमें मिलेगा तो मैं शायद घर छोड़ता ही नहीं। मैंने जो कुछ किया है अपने देश के लिये किया है। विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और भारत की स्वाधीनता के लक्ष्य के निकट पहुँचने के लिये किया है। भारत की स्वाधीनता की आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है। आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिक भारत की भूमि पर सफलतापूर्वक लड़ रहे हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभ कामनायें चाहते हैं।"
21 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने आज़ाद हिन्द की अस्थाई सरकार की घोषणा की। 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर में टाउन हॉल के सामने एक बड़े मैदान में सुभाष चन्द्र बोस ने सैनिक वर्दी में आज़ाद हिन्द फौज के अधिकारियों एवं सैनिकों से भव्य परेड में सलामी ली। अपने  ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने कहा- “आज मेरी ज़िंदगी में सबसे अधिक अभिमान करने का दिन है। क्योंकि आज ईश्वर की कृपा से मुझे संसार के सामने यह घोषणा करने का अवसर मिला है कि हिन्दुस्तान को आज़ाद कराने वाली सेना बन चुकी है। आज़ाद हिन्द फौज वह सेना है जो हिन्दुस्तान को अंग्रेजों के जुल्मों से मुक्त करवाएगी।” भाषण के अन्त में जब उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज के सेनानियों को ‘चलो दिल्ली’ का नारा दिया तो सारा हॉल ‘इंक़लाब ज़िन्दाबाद’, ‘भारत माता की जय’ और ‘आज़ाद हिन्द’ के विजय घोष से गूंज उठा। लगभग 25 माह तक तूफ़ानी दौरे करके, सभाएँ करके भारतीय नागरिकों एवं सैनिकों में उन्होंने अभूतपूर्व आत्मविश्वास, एकता, निष्ठा एवं त्याग जैसे उच्चतम आदर्शों की भावना का संचार किया। स्वयंसेवक बनने के लिए क़तारें लग गईं। लोग स्वेच्छा से उन्हें धन देने लगे। हबीबुर्ररहमान नामक एक मुस्लिम व्यापारी ने उन्हें एक करोड़ की संपत्ति एवं रत्न दान में दिए। उसे इस त्याग के लिए ‘सेवक हिन्द’ की उपाधि दी गई।जोशीले भाषण में उन्होंने अपील की- ‘ईश्वर के नाम पर, पूर्वजों के नाम पर जिन्होंने भारतीयों को एक सूत्र में बांधकर एक राष्ट्र बनाया, उन स्वर्गवासी वीरों के नाम पर जिन्होंने शौर्य एवं आत्मबलिदान की परम्परा बनाई, हम भारतवासियों को देश की स्वतंत्रता के लिए युध्द करने और भारतीय झण्डे के नीचे आने का आहवान करते हैं।’ आज़ाद हिन्द की स्थापना के तुरंत बाद सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर में झाँसी रानी की रेजीमेन्ट का गठन किया। कैप्टन डॉ.लक्ष्मी स्वामीनाथन को इसका संचालक बनाया गया। इस संगठन में महिलाएँ नियमित परेड और राइफ़ल चलाती थीं। कुछ सेविकाएँ, नर्स तथा अन्य कार्य संभालती थीं। 28 अक्टूबर 1943 को जापान के प्रधानमंत्री जनरल तोजो ने पूर्वी एशिया के युध्द में अंग्रेजों से जीता गया अंडमान-निकोबार द्वीप नेताजी की इस अस्थायी सरकार के अधीन कर दिया गया। आज़ाद हिंद सरकार ने इस द्वीप का नाम शहीद एवं स्वराज द्वीप रखा।अडंमान-निकोबार के बाद भारत के पूर्वी द्वार बर्मा से अंग्रेजों को खदेड़कर वहाँ पर आज़ाद हिन्द सरकार का तिरंगा फहराने की महत्वाकांक्षा उनमें ज़ोर पकड़ रही थी। अत: अपना कार्यालय जनवरी 1944 में रंगून में स्थापित कर दिया। बर्मा के सभी भारतवासियों में अपार उत्साह का संचार हुआ।नेताजी के मार्गदर्शन में आज़ाद हिन्द फौज की सेनाएँ मलाया, थाइलैंड, बर्मा के सीमावर्ती क्षेत्रों को पार करती हुई भारत की सीमा तक पहुँच गई। कर्नल रतूड़ी के नेतृत्व में 4 फरवरी 1944 को अराकान युध्द के मोर्चे पर अंग्रेजों से घमासान युध्द करके वहाँ से अंग्रेजी सैनिकों को खदेड़कर 18 मार्च 1944 को विजय का झंडा फहराया तथा भारत भूमि पर अपने विजय का शंखनाद फूँका। मणिपुर के मोरांग पर तिरंगा फहराने के बाद 8 अप्रैल 1944 को कोहिमा का क़िला फ़तह कर लिया तथा इंफाल पर चारों ओर से घेरा डाल दिया।
परन्तु इसके पश्चात् मानसून के भयकंर मौसम के हिसाब से तैयारी न होने के कारण आज़ाद हिंद फौज जो भारत की भूमि पर 150 मील अन्दर तक पहुँच चुकी थी, आगे न बढ़ सकी।उन्होंने घोषणा की कि अब भारत के पास सुनहरा मौका है उसे अपनी मुक्ति के लिये अभियान तेज कर देना चहिये। 8 सितम्बर 1939  को युद्ध के प्रति पार्टी का रुख तय करने के लिये सुभाष को विशेष आमन्त्रित के रूप में काँग्रेस कार्य समिति में बुलाया गया। उन्होंने अपनी राय के साथ यह संकल्प भी दोहराया कि अगर काँग्रेस यह काम नहीं कर सकती है तो फॉरवर्ड ब्लॉक अपने दम पर ब्रिटिश राज के खिलाफ़ युद्ध शुरू कर देगा। जुलाई 1940  मे 'हालवेट स्तम्भ' जो भारत की गुलामी का प्रतीक था, के इर्द-गिर्द सुभाष की यूथ ब्रिगेड के स्वयंसेवक भारी मात्रा में एकत्र हुए और देखते-देखते वह स्तम्भ मिट्टी में मिला दिया। स्वयंसेवक उसकी नींव तक की एक-एक ईंट तक उखाड़ ले गये। यह तो एक प्रतीकात्मक शुरुआत थी। इसके माध्यम से सुभाष ने यह सन्देश दिया कि जैसे उन्होंने यह स्तम्भ धूल में मिला दिया है उसी तरह वे ब्रिटिश साम्राज्य की भी ईंट-से-ईंट बजा देंगे।"आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व-इतिहास में ऐसा कोई भी दृष्टांत नहीं मिलता जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा हो।

आजाद हिन्द फौज के माध्यम से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करने का नेताजी का प्रयास प्रत्यक्ष रूप में सफल नहीं हो सका किन्तु उसका दूरगामी परिणाम हुआ। सन् 1946 में रॉयल अयर फोर्स के विद्रोह इसके तुरंत बाद के नौसेना विद्रोह इसका उदाहरण है। नौसेना विद्रोह के बाद ही ब्रिटेन को विश्वास हो गया कि अब भारतीय सेना के बल पर भारत में शासन नहीं किया जा सकता और भारत को स्वतन्त्र करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा।

महात्मा गांधी और स्वयं के संबंधों पर सुभाषचन्द्र बोस ने लिखा है "महात्मा गाँधी और मेरे बीच हुई समझौता वार्ताओं से यह जाहिर हो गया कि एक तरफ गाँधी धड़ा मेरे नेतृत्व को कतई स्वीकार नहीं करेगा और दूसरी तरफ मैं कठपुतली अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं था। नतीजतन, मेरे लिए अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा। मैंने 29 अप्रैल, 1939 को इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस पार्टी के भीतर एक परिवर्तनकारी व प्रगतिशील समूह के गठन के लिए मैंने तुरंत कदम आगे बढ़ाए ताकि समूचा वाम धड़ा एक बैनर के तले एकजुट हो सके।” 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। जब सुभाष जेल में थे तब गांधीजी  ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने सरदार भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया। भगत सिंह की फाँसी माफ कराने के लिये गांधीजी  ने सरकार से बात तो की परन्तु नरमी के साथ। सुभाष चाहते थे कि इस विषय पर गांधीजी  अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझौता तोड़ दें। लेकिन गांधीजी  अपनी ओर से दिया गया वचन तोड़ने को राजी नहीं थे। अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर अड़ी रही और भगत सिंह व उनके साथियों को फाँसी दे दी गयी। भगत सिंह को न बचा पाने पर सुभाष गांधीजी और कांग्रेस के तरीकों से बहुत नाराज हो गये।
नवम्बर 1945 में दिल्ली के लालकिले में आजाद हिन्द फौज पर चलाये गये मुकदमे ने नेताजी के यश में वर्णनातीत वृद्धि की और वे लोकप्रियता के शिखर पर जा पहुँचे। अंग्रेजों के द्वारा किए गये विधिवत दुष्प्रचार तथा तत्कालीन प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा सुभाष के विरोध के बावजूद सारे देश को झकझोर देनेवाले उस मुकदमे के बाद माताएँ अपने बेटों को ‘सुभाष’ का नाम देने में गर्व का अनुभव करने लगीं। घर–घर में राणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज के जोड़ पर नेताजी का चित्र भी दिखाई देने लगा।
जहाँ स्वतन्त्रता से पूर्व विदेशी शासक नेताजी की सामर्थ्य से घबराते रहे, तो स्वतन्त्रता के उपरान्त देशी सत्ताधीश जनमानस पर उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व के अमिट प्रभाव से घबराते रहे। स्वातंत्र्यवीर सावरकर  ने स्वतन्त्रता के उपरान्त देश के क्रांतिकारियों के एक सम्मेलन का आयोजन किया था और उसमें अध्यक्ष के आसन पर नेताजी के तैलचित्र को आसीन किया था। यह एक क्रान्तिवीर द्वारा दूसरे क्रान्ति वीर को दी गयी अभूतपूर्व सलामी थी
नेताजी ने युवा वर्ग को आजादी की लड़ाई से जोड़ने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। सिंगापुर के रेडियो प्रसारण द्वारा नेताजी के आह्वान, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का ही परिणाम रहा जिसने युवाओं को प्रेरणा दी।
बोस का मानना था कि युवा शक्ति सिर्फ गांधीवादी विचारधारा पर चलकर स्वतंत्रता नहीं पा सकती, इसके लिए प्राणों का बलिदान जरूरी है। यही वजह थी कि उन्होंने 1943 में 'आजाद हिंद फौज' को एक सशक्त स्वतंत्र सेना के रूप में गठित किया और युवाओं को इससे प्रत्यक्ष रूप से जोड़ा।द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान की सहायता से बनी इस फौज में उन्होंने महिलाओं के लिए 'झांसी की रानी' रेजिमेंट बनाकर महिलाओं को आजादी के आंदोलन में शामिल किया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की छवि हमेशा से एक 'विजनरी और मिशनरी' नेता के रूप में रही, जिन्होंने न सिर्फ पूर्णतः स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत का स्वप्न देखा बल्कि उसे बतौर मिशन पूरा किया।उनके नेतृत्व की क्षमता के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि वह ‌आजादी के समय मौजूद होते तो देश का विभाजन न होता और भारत एक संघ राष्ट्र के रूप में कार्य करता।


                         सुशील शर्मा


चिड़िया के चूजे : सुशील शर्मा


नया 


चिड़िया के चूजे हैं पांच।
उनपर आये कभी ना आंच।

चिड़िया दाने लेकर आती।
पांचों को वो खूब चुगाती।

ची ची ची वो जब करते हैं।
मुझको प्यारे वो लगते हैं।

मम्मी उनको लगती ठंडी
सिलवा दो तुम उनको बंडी।

उनको मेरे पास बिठा दो।
एक बस्ता उनको दिलवा दो।

उनका टीचर मैं बन जाऊं।
उनको फिर मैं खूब पढ़ाऊँ।

हर दिन विद्यालय ले जाऊं।
ट्विंकिल ट्विंकिल पाठ पढ़ाऊँ।

लंच में इनको दाने खिलवाऊं।
इनके पीछे रेस लगाऊं।

मित्र नही है कोई मेरा।
चूजों ने है मुझको घेरा।

ये ही मेरे मित्र समान
इनको मैं मानू भगवान।


सुशील शर्मा

संपादक की कलम से





प्रिय मित्रों

"नाना की  पिटारी "के  पाॅच  सफल वर्ष  व्यतीत  होने तथा छठवे वर्ष  के  प्रारंभ होने  पर  आपका  स्वागत  है ।
यह  पत्रिका दिनांक  04/02/2014  से, अर्थात,  गत पाँच  वर्षों  से   अंतर्जाल पर, छोटे बच्चों के  लिए प्रकाशित हो रही  है  ।  यह पत्रिका   बिल्कुल  निशुल्क है  और  विज्ञापन  रहित है ।  इसे   कोई  भी व्यक्ति  विश्व  में  कहीं  भी,   गूगल/एम एस एन आदि सर्च इंजन  मे हिन्दी अथवा अंग्रेजी  में 'नाना की  पिटारी'/ nana ki pitari लिख कर प्राप्त कर   सकता  है।

गत् पाँच वर्षो मे  ' नाना  की पिटारी'  पत्रिका  ने हिन्दी    बालसाहित्य जगत के  साहित्य  में  लेखन और  प्रसारण के  कार्य  में  महत्वपूर्ण  भूमिका  निभाई  है  ।  कविताओं,   कहानियों,   पहेलियों और   चुटकुलों  के अलावा शामू धारावाहिक लम्बी कहानी,  प्राचीन  विश्व  के  सात अजूबे ,  नवीन  विश्व  के  सात अजूबे, अपने नन्हे मुन्ने पाठकों के  समक्ष प्रस्तुत किया है।  पेरिस का  इफेल टावर  दिखाया  और कभी  बर्लिन की  दीवार तो कभी जैसलमेर के रेगिस्तान तथा  यूरोप के सबसे बड़ा Rhine वाटर फाल  की सैर  कराई है ।  इसने   हमारे  महापुरुषों, हमारे पूर्वजों  के  बारे  में भी  समय समय पर   बताया  है।  

 
   बाल मन की  उत्सुकता और उत्कंठा   को  ध्यान  में  रख  कर  इस पत्रिका ने   एक रोचक   बाल चरित्र,   'प्रिन्सेज डॉल' का सृजन  किया था ।  ज्ञान वर्धक,  बाल मनोरंजन  प्रिन्सेज डॉल  की ( फेरीटेल्स) की   बाल कथाओं  की  धारावाहिक  सीरीज को एक माला की तरह पिरो कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया  ।   इस पत्रिका में   अब तक लगभग 1200 आइटम  प्रकाशित   प्रकाशित  हो  चुके हैं  ।

जैसा  कि  अमूमन बचपन में  दाँतों  के  निकलने  के  समय  कठिनाई  होतीं  हैं  वैसी ही  इस  पत्रिका के  प्रकाशन  मे  पहले चार वर्षों में  कठिनाईयां  भी  आई  थी  , मसलन्,  "हिन्दी  ब्लागस् डाट नेट" की  साइट  पर   सर्वर बदले जाने  की  प्रक्रिया  से उत्पन्न  कुछ  तकनीकी  परेशानियों  के कारण ' नाना  की पिटारी' का  ब्लॉग  'हिंदी ब्लॉग डॉट नेट 'के  सर्वर  से  अदृश्य हो गया ।   जिसकी वजह  से उसकी  मेमोरी  में  पड़े  हमारे अभिलेख गायब हो गए  थे  जिनकी     रिकवरी वे अंत तक नहीं  कर  पाए ।   हमारी पत्रिका  को " हिंदी  ब्लाग  डाट नेट "  के  कारण  बहुत  बड़ा  नुकसान  उठाना पड़ा।   लेकिन  हम रुके  नहीं  हम अपने  मार्ग  मे पुनः बढ़ते गये   । हम  "नाना  की पिटारी "  को  "ब्लागर" के  पटल पर ले आये  जहाँ  से  अब तक   बिना  रुके  हुए पत्रिका  का   प्रकाशन चल रहा है  ।  अब हम पत्रिका के प्रकाशन के छठे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।  यह सब आप लोगों के प्यार और सहयोग के कारण ही संभव हो पाया है।

पत्रिका  के  प्रकाशन  से  ही  इसके साथ जुड़े  रचनाकारों  का उल्लेख  और धन्यवाद  ज्ञापन  आवश्यक  है  ।   प्रारंभ  में  श्री  अखिलेश  चन्द्र  श्रीवास्तव  श्रीमती  अंजू  गुप्ता  ने अपने सहयोग से काफी उत्साहित  किया  तदुपरांत  श्री प्रभु दयाल श्रीवास्तव  जी डॉ  प्रदीप शक्ल  जी,  श्री  शादाब  आलम जी ,भाई महेंद्र  देवांगन, अर्पिता  अवस्थी,  सुषमा  मांगलिक    और  कुमारी  प्रिया  देवांगन  प्रियू ,  श्रीमती  अंजू निगम ,श्रीमती  मंजू श्रीवास्तव  जी और श्री कृष्ण कुमार वर्मा जी के  नाम विशेष  रूप से   उल्लेखनीय  है  इन्होंने इस ब्लॉग में अपने लेखन से काफी सहयोग दिया है ।   श्रीमती  मधु त्यागी  जी ने  अपनी  तथा एमिटी  इन्टरनेशनल गुरुग्राम एव  श्रीमती श्वेता दिव्यांक, माउंट ओलंपस स्कूल मालबो टॉउन गुरुग्राम,  के सहयोग से प्रेषित  छात्रों  की रचनाएँ   ' नाना की पिटारी' मे प्रकाशन हेतु  प्रेषित  की थीं।   आप सभी को  बहुत  धन्यवाद  और आशा है कि आगे  भी वे छोटे  बच्चों  के लिए  अपनी  रचनाओं  को  हमे  हमारे email :-  nanakipitari@gmail.com पर भेजते  रहेगें ।

 आपके अभिनन्दन के साथ


                                    शरद कुमार  श्रीवास्तव 

दोहा छन्द : वाणी : सुशील शर्मा




वाणी में माँ शारदा, वाणी विनय का रूप।
वाणी नाद स्वरूप है ,वाणी ब्रह्म  अनूप।

वाणी से ही जानिए,लोगों का व्यवहार।
वाणी से पहचानिए,लोगों का आचार।

वाणी तो अनमोल है,इसको रखिये शुद्ध।
वाणी से ही बन गए,जाने कितने बुद्ध।


शब्द तीर से जब चुभें,रख दें सीना चीर।
शब्द सुमन से जब लगें,हरते सारी पीर।

वाणी संयम से मिटें,सारे कष्ट अपार।
मीठी बोली बोल कर ,जीतो तुम संसार।

कड़वी वाणी शत्रु दे,मीठी वाणी मित्र।
संयत वाणी से सदा,निखरे चाल चरित्र।



                         सुशील शर्मा

प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना : मौसम


कैसा दिन है आया, 
बिन मौसम बरसात है लाया।
ठंडी ठंडी हवा के साथ ,
पानी की बौछारें  लाया।

स्वेटर साल ओढ के सब ,
घर में बैठे हैं दुबके ।
गरम गरम चाट पकौड़े
खा रहे चुपके चुपके ।

गरमा गरम चाय ,
सबके मन को भाया ।
स्वेटर पहने या रैनकोट
अभी तक समझ न आया।

मिट्टी की सौंधी खुशबू 
मन मे है खुशियाँ लाया ।
ठंडी के इस मौसम में 
कैसा दिन है आया ।
























प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया 
जिला - कबीरधाम 

डॉ प्रदीप कुमार शुक्ल की अप्रतिम रचना : गांधी मरा नहीं करते हैं



बच्चों, एक थे मोहनदास
भारत के वह सबसे ख़ास

पैदा हुए काठियावाड़
रास न आते उन्हें जुगाड़

नक़ल कभी वह कर ना पाए
हरदम थर्ड डिवीज़न आये

चले गए बैरिस्टर बनने
लौटे धोती कुर्ता पहने

कुछ दिन बाद गए अफ्रीका
लेकिन वहाँ रंग था फ़ीका

सब भारतवंशी बेचारे
पड़े हुए थे हिम्मत हारे

मोहनदास हो लिए आगे
सारे उनके पीछे भागे

गलत बात का किया विरोध
नहीं मगर चेहरे पर क्रोध

सही बात अपनी मनवाई
लेकिन कहीं न हिंसा आई

सत्य अहिंसा की थी आँधी
मोहनदास बन गए गांधी

यह तो बस छोटा प्रयोग था
आने वाला कठिन योग था

वापस जब वह भारत आये
अंग्रेजों के दिल दहलाए

साथ साथ थी वही अहिंसा
सूत्र एक था, करो न हिंसा

शुरू हुए जमकर आन्दोलन
बजी सरों पर लाठी टनटन

गांधी का घर जेल हो गया
उनका तो यह खेल हो गया

बापू कह कर देश पुकारा
हो स्वतंत्र अब देश हमारा

अंग्रेजों को समझ में आया
अपना डेरा तुरत उठाया

कितने संघर्षों के बाद
भारत देश हुआ आज़ाद

फिर आई थी तीस जनवरी
और हुई कुछ हवा सिरफिरी

बापू बस बोले, हे! राम
भारत की घिर आई शाम

जो पैदा होते, मरते हैं
गांधी मरा नहीं करते हैं

गांधी थे हम सबके हीरो
गांधी हैं हम सबके हीरो.



                  डॉ प्रदीप कुमार शुक्ल