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रविवार, 16 जून 2019

मंजू श्रीवास्तव की बालकथा : सेनापति वाशिंगटन




अमेरिका मे सैनिकों के आवास  के लिये निर्माण कार्य चल रहा था| मेन गेट बनाने के लिये मोटे मोटे लकड़ी के लट्ठ लाये जा रहे थे |
लट्ठ  उठाकर एक गाड़ी पर चढ़ाना था | इस कार्य के लिये काफी मज़दूर काम मे लगे थे | पर उस लट्ठ को उठाने मे सभी विफल रहे|
कुछ दूरी पर मज़दूरों का नायक खड़ा यह सब देख रहा था |
उसी वक्त  अमेरिकी सेनापति घोड़े पर उधर से गुजर रहा था |उसने देखा कि मज़दूर लट्ठ उठाने मे असमर्थ हैं|>वह तुरत घोड़े पर से उतरा और मज़दूरों के साथ जोर लगाया और लट्ठ गाड़ी पर चढ़ा दिया |
सेनापति उस नायक के पास गया और नायक से कहा कि यदि आपने मज़दूरों की थोड़ी मदद कर दी होती तो लट्ठ आसानी से गाड़ी पर चढ़ गया होता |
नायक बोला मै नायक हूँ, मज़दूरों के साथ कैसे काम कर सकता था?
सेनापति ने कहा मुसीबत के वक्त किसी की मदद करने से कोई छोटा या बड़ा नहीं होता|
सेनापति ने वहां से जाते समय  मज़दूरों से कहा आगे कभी कोई जरूरत पड़े तो सेनापति वाशिंगटन को याद करना |
जब नायक को पता लगा कि सेनापति ,राष्ट्रपति वाशिंगटन थे तो वह बहुत शर्मिंदा हुआ और सेनापति से माफी मांगी |
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बच्चों हर इन्सान का कर्तव्य है कि मुसीबत के वक्त हर इन्सान की मदद करनी चाहिये ,चाहे कोई बड़ा हो  या छोटा | मुसीबत छोटा या बड़ा नहीं देखती |






मंजू श्रीवास्तव 
नोएडा 

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