श्रीमती वीना श्रीवास्तव की पुण्यतिथि 27 अगस्त को थी इस उपलक्ष्य में उनकी याद में उनकी एक कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं
मन के छोटे से उपवन मे
फूल खिले हैं रंग बिरंगे
जिन्हें देखकर उठती रहती
मन में मेरे नई तरंगे
इन फूलों पर भँवरे मंडराकर
गुनगुनाकरगीत सुना कर
इनका मीठा रस पी जाकर
इठ्लायेंगे मस्ती में
तितलियां झूमेंगीं मन की बस्ती में
स्वछन्द बिहंगजन फुदकफुदक कर
इस डाली से उस डाली पर जाकर
फूलों पे या पत्तों में छुप जाकर
मधुर-मदिर कल्लोल सुनाकर
चिड़ियाँ,भी मेरा मन हर्षाएँगी,
प्रेम सुधा बरसा जाएँगी
सुरभि प्रवाहित मस्त पवन
जीवन बसंत का सुआगमन
सिंचित करदेगा जीवन पौध को
भर देगा हर्षित अनमोल उमंग अनंत
फूल खिले हैं रंग बिरंगे
जिन्हें देखकर उठती रहती
मन में मेरे नई तरंगे
इन फूलों पर भँवरे मंडराकर
गुनगुनाकरगीत सुना कर
इनका मीठा रस पी जाकर
इठ्लायेंगे मस्ती में
तितलियां झूमेंगीं मन की बस्ती में
स्वछन्द बिहंगजन फुदकफुदक कर
इस डाली से उस डाली पर जाकर
फूलों पे या पत्तों में छुप जाकर
मधुर-मदिर कल्लोल सुनाकर
चिड़ियाँ,भी मेरा मन हर्षाएँगी,
प्रेम सुधा बरसा जाएँगी
सुरभि प्रवाहित मस्त पवन
जीवन बसंत का सुआगमन
सिंचित करदेगा जीवन पौध को
भर देगा हर्षित अनमोल उमंग अनंत
वीणा श्रीवास्तव
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है , नमस्कार
जवाब देंहटाएंBahut sundar...
जवाब देंहटाएंशैलेन्द्र जी सुरभि श्रीवास्तव को बहुत बहुत साधुवाद
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