अभी तक
शामू एक भिखारी का बेटा है और वह अपनी दादी के साथ रहता है । दूसरे बच्चो के साथ वह कचड़ा प्लास्टिक, प्लास्टिक बैग कूड़े से बीनता है । उसका पिता प्रत्येक सप्ताहांत में आता है । एक बार उसका पिता उसको पढने का सपना दिखाता है शामू अपने पिता के साथ स्कूल के लिये गया था । स्कूल के बाहर खड़े गार्ड ने उन्हें रोका और बोला कि अंदर कहाँ जा रहे हो। साफ़ सुथरे अच्छे कपडे पहन कर स्कूल में आना। शामू ने ड़क के नल पर रगड़ रगड़ कपडे धो डाले मना कर दिया। अगले सप्ताह एक नये उत्साह के साथ शामू, बिहारी के लाये जूते कपडे पहन कर अपने पिता के साथ स्कूल गया। गार्ड ने उसे स्कूल के अंदर जाने से फिर रोक दिया। सरकारी स्कूल जाओ। बिहारी क्या जाने सरकारी ,गैर सरकारी स्कूल ? शामू रोने जैसा होने लगा। बिहारी निराश हो कर शामू से बोला चल यहाँ से चल पढना तेरी किस्मत मे नहीं है ।
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शामू अपनी कथरी पर हड़बड़ा कर उठ बैठा। यह देखकर दादी बोली सो जा बड़ी रात है उठ कर क्यों बैठ गया है? वह बोली पास घड़ा है पानी निकाल कर पी ले और सो जा। शामू रोने लगा । वह रो रो कर कहने लगा मुझे किताब चाहिए। मुझे किताब चाहिए। दादी बोली अभी तू सो जा सुबेरे तुझे किताब दूँगी। शामू ने सबेरे उठते ही दादी से किताब की फरमाइश की. दादी ने एक पोटली निकाली और उसे खोल कर एक किताब निकाली। अपने हिसाब से तो दादी ने बहुत जतन से, सुरक्षित रखी थी वह किताब। किताब के पीले पड़े पन्ने लेकिन उस किताब को ऐतिहासिक विरासत बता रहे थे। शामू ने उस किताब को अपनी छाती से काफी देर लगाए रखा फिर उसने दादी से पूछा यह तेरे पास कहाँ से आई। दादी बोली यह तेरे बाप बिहारी के लिए तेरा दादा लाया था । लेकिन बिहारी किताब छोड़ भागता था । इसी से आज भीख मांग रहा है। लेकिन तू तो कुछ पढ़कर कुछ बन तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
थोड़ी देर बाद शामू अपने रोज के काम से बाहर निकल गया। आज रास्ते में उसे चंदू मिल गया। उसके साथ मांगू और हरी भी थे। मांगू बोला, हो आये स्कूल, पढ़ आये। हम जानते हैं लिखना पढ़ना अपनी किस्मत में नहीं है। तू बेकार ही गया था, बेकार की सुनने के लिए । चंदू बोला होगया ना सारा कुछ। तेरा किस्सा अगर खत्म हो गया तो चल काम पर फिर लग जा। इस बार एक चुम्बक लगा डंडा शामू के हाथ में चन्दू ने दिया। बोला अब प्लास्टिक पन्नी के साथ तुम सबको लोहा भी जमा करना है। जमीं पर गिरा लोहे का टुकड़ा इस डंडे से उठा कर झोले में रख कर मुझे देना फिर अपन लोग मिल कर मजा करेंगे। शामू को तो जैसे खेलने का एक अच्छा जुगाड़ मिल गया था उसे घुमाया फिराया और बोला मैं तो बल्ला भांज रहा हूँ फिर उसने कंधे पर रखा और फिर बोला लो अब मैं गार्ड साहब बन गया हूँ गार्ड नहीं पुलिस अंकल बन गया हूँ. मांगू बोला लो अब गुल्ली डंडे का डंडा हो गया। चंदू बोला , नहीं यह तो ना क्रिकेट का बल्ला है और ना सिपाही की बंदूक और यह गुल्ली डंडे वाला डंडा भी नहीं है। इसे बस रोटी रोजी ही समझना तोडना फोड़ना नहीं दुबारा और नहीं मिलेगा। . शामू की क्षणिक खुशियाँ भी धराशाही हो गयी और वह निकल पड़ा प्लास्टिक पन्नी लोहा खोजने के लिए। वह साधारणतः दो लोगों से अधिक बच्चे साथ साथ निकलते थे । उस दिन शामू अकेले ही निकल गया था । वह आपनी बस्ती से बाहर निकल गया था । एक कार मैकेनिक के गैरेज के बाहर पडे कचडे के मलबे से लोहे के टुकड़े बीन रहा था कि गैरेज का मालिक आ गया और उसको पकड़ लिया और बोला चोरी कर रहा था । शामू बोला नही कचड़े में से लोहा बीन रहा था । उस गैरेज के मालिक के इशारे पर उसके लोगों ने उसे पकड़ कर गैरेज के एक कोने में उसे बैठा दिया ।
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शरद कुमार श्रीवास्तव