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बुधवार, 16 अक्टूबर 2019

शरद पूर्णिमा मनायेंगे. :






शरद पूर्णिमा मनायेगे, घर में खीर बनाएंगे।
अमृत बरसेगा खीर में, मिल बांट कर खाएंगे।।

चाँद की रौशनी से , सारा जग जगमगायेगा।
सोलह कला से पूर्ण हुआ ,अमृत वह बरसायेगा।।

जो जो अमृत खायेगा , बीमारी छू न  पायेगा।
शीत बरसेगा धरती पर ,मोती सा बन जायेगा।।

जब  बरसेगा ओस की बूंदें, ठंडी की लहरें होगी।
धुंधला हो जाएगा आसमा , गीत गायेगा कोई जोगी ।।

ताजा ताजा पवन चलेगा , वातावरण शुद्ध हो जायेगा ।
स्वस्थ रहेंगे मनुष्य सारे , हर पल खुशी मनायेगा ।।

रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया  (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़

दीप जलाये. : प्रिया देवांगन "प्रियू"






आओ साथियो दीप जलाये ,
मिलकर हम खुशियां मनाये।

दीपक से रौशनी जगाये ,
अंधियारी को दूर भगाये।

एक एक दीप जलाकर हम
जग में उजाला लाये ।

छोटे बड़े सब मिलकर
दीवाली का त्योहार मनाये ।

मीठे मीठे पकवान बनाकर
मिल बांट कर हम खाये ।

करे शरारत बच्चे मिलकर
फुलझड़ी घर पर जलाये ।

आओ साथियो दीप जलाये
मिलकर हम खुशियां मनाये।।



रचना
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया छत्तीसगढ़

बिल्लीजी नाराज हैं :: प्रभूदयाल श्रीवास्तव







 एक कटोरा 
 भरा दूध का ,
 बिल्ली अभी
 छोड़कर आई |
 बोली उसको  
 नहीं पियूंगी,
 उसमें बिलकुल
 नहीं मलाई |

कल का दूध 
बहुत फीका था ,
शक्कर बिलकुल
नहीं पड़ी थी |
घर की मुखिया
दादी मां से,
इस कारण वह
खूब लड़ी थी |  

दूध ,मलाई 
वाला होगा ,
खूब पड़ी होगी
जब शक्कर|
और मनाएंगी
जब दादी,
दूध पियूंगी तब
उनके घर |






प्रभूदयाल श्रीवास्तव 

राजा और कबूतर. : कृष्ण कुमार वर्मा





एक बार राजा शिकार के लिए जंगल मे गया ।फिर बहुत देर तक घूमने के बाद राजा अपने सैनिकों के साथ आराम करने पेड़ की छाँव पर बैठा । अचानक उनकी नजर पेड़ पर बैठे कबूतर पर गई । राजा ने तुरंत जाल से कबूतर को पकड़ लिया । उसके बाद कबूतर उनसे विनती करने लगा कि हे ! राजा मुझे छोड़ दो , मैं आपके एक दिन जरूर काम आऊंगा । फिर राजा को उसके ऊपर दया आ गई और राजा ने उसे छोड़ दिया ।
एक दिन राजा के महल में एक चोर घुसा  । उसने रानी का बहुमुल्य आभूषण चोरी करके ले गया । और जंगल मे जाकर छुपा दिया ।
राजा ने बहुत खोजबीन किया , लेकिन चोर का पता नहीं चल पाया । राजा बहुत गुस्से में था ।
एक दिन यह बात कबूतर को पता चला , तो वह राजा के पास गया और राजा से कहा - हे राजा ! मैने उस चोर को जंगल मे देखा है , वह कुछ छिपा रहा था ।
राजा उसके बातो को सुनकर तुरन्त सैनिकों के साथ जंगल की ओर चल पड़ा ।
फिर कबूतर ने उस जगह की स्थिति को राजा को दिखाया और फिर सैनिको द्वारा वो आभूषण ढूंढ लिया गया । यह देखकर राजा बहुत खुश हुआ और कबूतर से कहा - कि आज के बाद कभी भी वह चिड़ियों का शिकार नही करेगा । यह सुनकर कबूतर बहुत खुश हुआ ।
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कृष्ण कुमार वर्मा 
रायपुर , छत्तीसगढ़ 
9009091950

मेरा बचपन : अर्चना सिंह जया






कहाँ गया वह?

भोला बचपन।

कागज़ की कश्ती से ही

खुश हो जाया करते थे हम।



मिट्टी के गुड्डे गुड़ियों संग,

सदा खेला करते थे हम

कहाँ गया वह?

भोला बचपन

कागज़ की जहाज़ बना


हवाओं में उड़ाया करते थे।

बच्चों की ही रेल बना,

झूमा गाया करते थे हम।

लूडो, कैरम घर में खेल


कोलाहल करते थे हम।

रंग बिरंगी तितलियों

संग बगिया में भागा करते थे।

कहाँ गया वह?


भोला बचपन

रंगीन पतंगों को उड़ा,

अंबर को छूआ करते थे हम।

छोटी छोटी बातों में ही


बेहद खुश हो जाया करते थे।

सपने कुछ पूरे होते

और कुछ अधूरे ही रहते

फिर भी मुस्कुराया करते थे हम।


कोई लौटा दे वो

मेरा बचपन।

जिसमें सदा ही हर पल

हर हाल में खुश रहते थे हम।






        .....अर्चना सिंह जया

रविवार, 6 अक्टूबर 2019

रचना महेन्द्र देवांगन माटी:: जय अंम्बे म









जय अम्बे जगदंबे माता , लाली चुनरी लाया हूँ ।
भर दे झोली मेरी माता,  शरण आपकी आया हूँ ।।

दुष्टों का संहार करे माँ , अष्ट भुजी कहलाती है ।
कोई तुझे पुकारे दिल से , पल में ही आ जाती है ।।

भक्त जनों की रक्षा खातिर,  धरती में तू आती है ।
सबके संकट हरती माता  , नव नव रूप दिखाती है।।

जो भी आये द्वार तुम्हारे  , खाली हाथ न जाता है ।
पूजे जो भी सच्चे दिल से,  मनवांच्छित फल पाता है ।।




                        महेन्द्र देवांगन माटी
                        पंडरिया छत्तीसगढ़
                        8602407353

कृपा करो हे माता रानी






सब कुछ तो तेरी है माता,  क्या क्या चीज चढाऊँ मैं ।
 कृपा करो ऐसी हे माता,  तेरे ही गुण गाऊँ मैं ।।

मैं अज्ञानी बालक माता , पूजा पाठ न जानूँ मैं ।
केवल मन में श्रद्धा रखकर , दिल से तुझको मानूँ मैं ।।

जब भी आँख खुले हे माता,  तब भी दर्शन पाऊँ मैं ।
 कृपा करो ऐसी हे माता  , तेरे ही गुण गाऊँ मैं ।।

क्या जानूँ मैं मंत्र जाप को , क्या जानूँ चालीसा को ।
क्या जानूँ मैं ध्यान योग को , क्या जानूँ ग्रह दिशा को ।।

माटी का ही दीप जलाकर  , श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ मैं ।
कृपा करो ऐसी हे माता  ,     तेरे ही गुण गाऊँ मैं ।।

                          महेन्द्र देवांगन माटी
                          पंडरिया छत्तीसगढ़

गाँधी जी के बंदर : महेन्द्र देवांगन माटी






गाँधी जी के तीनों बंदर , बहुते धूम मचाते थे ।
उछले कूदे डंगालों पर , सबको नाच दिखाते थे ।।

इस डाली से उस डाली पर , कूद कूद कर जाते थे ।
खट्टे मीठे फलें देखकर,  खूब मजे से खाते थे ।।

बच्चे उसको बहुत सताते , मार गुलेल भगाते थे ।
इधर उधर सब भागा करते, खूब छलांग लगाते थे ।।

बंदर बोले सुन लो बच्चों,  बात ज्ञान की कहता हूँ ।
गाँठ बाँध कर इसे पकड़ लो , कैसे मैं चुप रहता हूँ ।।

करो नहीं तुम कभी बुराई , आपस में मिलकर रहना ।
सत्य मार्ग पर चलते रहना , झूठ कभी ना तुम कहना ।।

बुरा न देखो बुरा न सुनना , बुरा नहीं तुम बोलो जी ।
अडिग रहो तुम सत्य मार्ग पर , आँखें अपनी खोलो जी ।।



महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया कबीरधाम
छत्तीसगढ़
8602407353
mahendradewanganmati@gmail.com

शामू एक लम्बी धारावाहिक कहानी : शरद कुमार श्रीवास्तव







अभी तक
शामू एक भिखारी का बेटा है और वह अपनी दादी के साथ रहता है । दूसरे बच्चो के साथ वह कचड़ा प्लास्टिक, प्लास्टिक बैग कूड़े से बीनता है । उसका पिता प्रत्येक सप्ताहांत में आता है । एक बार उसका पिता उसको पढने का सपना दिखाता है शामू अपने पिता के साथ स्कूल के लिये गया था । स्कूल के बाहर खड़े गार्ड ने उन्हें रोका और बोला कि अंदर कहाँ जा रहे हो। साफ़ सुथरे अच्छे कपडे पहन कर स्कूल में आना। शामू ने ड़क के नल पर रगड़ रगड़ कपडे धो डाले मना कर दिया। अगले सप्ताह एक नये उत्साह के साथ शामू, बिहारी के लाये जूते कपडे पहन कर अपने पिता के साथ स्कूल गया। गार्ड ने उसे स्कूल के अंदर जाने से फिर रोक दिया। सरकारी स्कूल जाओ। बिहारी क्या जाने सरकारी ,गैर सरकारी स्कूल ? शामू रोने जैसा होने लगा। बिहारी निराश हो कर शामू से बोला चल यहाँ से चल पढना तेरी किस्मत मे नहीं है ।

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शामू अपनी कथरी पर हड़बड़ा कर उठ बैठा। यह देखकर दादी बोली सो जा बड़ी रात है उठ कर क्यों बैठ गया है? वह बोली पास घड़ा है पानी निकाल कर पी ले और सो जा। शामू रोने लगा । वह रो रो कर कहने लगा मुझे किताब चाहिए। मुझे किताब चाहिए। दादी बोली अभी तू सो जा सुबेरे तुझे किताब दूँगी। शामू ने सबेरे उठते ही दादी से किताब की फरमाइश की. दादी ने एक पोटली निकाली और उसे खोल कर एक किताब निकाली। अपने हिसाब से तो दादी ने बहुत जतन से, सुरक्षित रखी थी वह किताब। किताब के पीले पड़े पन्ने लेकिन उस किताब को ऐतिहासिक विरासत बता रहे थे। शामू ने उस किताब को अपनी छाती से काफी देर लगाए रखा फिर उसने दादी से पूछा यह तेरे पास कहाँ से आई। दादी बोली यह तेरे बाप बिहारी के लिए तेरा दादा लाया था । लेकिन बिहारी किताब छोड़ भागता था । इसी से आज भीख मांग रहा है। लेकिन तू तो कुछ पढ़कर कुछ बन तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
थोड़ी देर बाद शामू अपने रोज के काम से बाहर निकल गया। आज रास्ते में उसे चंदू मिल गया। उसके साथ मांगू और हरी भी थे। मांगू बोला, हो आये स्कूल, पढ़ आये। हम जानते हैं लिखना पढ़ना अपनी किस्मत में नहीं है। तू बेकार ही गया था, बेकार की सुनने के लिए । चंदू बोला होगया ना सारा कुछ। तेरा किस्सा अगर खत्म हो गया तो चल काम पर फिर लग जा। इस बार एक चुम्बक लगा डंडा शामू के हाथ में चन्दू ने दिया। बोला अब प्लास्टिक पन्नी के साथ तुम सबको लोहा भी जमा करना है। जमीं पर गिरा लोहे का टुकड़ा इस डंडे से उठा कर झोले में रख कर मुझे देना फिर अपन लोग मिल कर मजा करेंगे। शामू को तो जैसे खेलने का एक अच्छा जुगाड़ मिल गया था उसे घुमाया फिराया और बोला मैं तो बल्ला भांज रहा हूँ फिर उसने कंधे पर रखा और फिर बोला लो अब मैं गार्ड साहब बन गया हूँ गार्ड नहीं पुलिस अंकल बन गया हूँ. मांगू बोला लो अब गुल्ली डंडे का डंडा हो गया। चंदू बोला , नहीं यह तो ना क्रिकेट का बल्ला है और ना सिपाही की बंदूक और यह गुल्ली डंडे वाला डंडा भी नहीं है। इसे बस रोटी रोजी ही समझना तोडना फोड़ना नहीं दुबारा और नहीं मिलेगा। . शामू की क्षणिक खुशियाँ भी धराशाही हो गयी और वह निकल पड़ा प्लास्टिक पन्नी लोहा खोजने के लिए। वह साधारणतः दो लोगों से अधिक बच्चे साथ साथ निकलते थे ।  उस दिन शामू  अकेले ही  निकल गया  था ।  वह आपनी बस्ती  से बाहर  निकल  गया  था ।   एक कार मैकेनिक  के  गैरेज के  बाहर पडे कचडे के मलबे से लोहे के टुकड़े बीन रहा था  कि गैरेज का मालिक आ गया और उसको पकड़ लिया और बोला चोरी कर रहा था ।  शामू  बोला  नही  कचड़े में  से लोहा  बीन रहा था ।  उस गैरेज  के  मालिक के इशारे पर उसके लोगों ने उसे पकड़ कर गैरेज के एक  कोने में  उसे बैठा  दिया ।
आगे  पढिये  अगले अंक में




            शरद कुमार श्रीवास्तव 

माई मम्मी इज़ द बेस्ट : संस्कृति श्रीवास्तव




इन दिनो रश्मी को स्कूल मे टिफिन नहीं खाने की आदत सी हो गयी थी मम्मी उसके बैग मे टिफिन रख देती थीं.   उसके स्कूल से वापस आने पर स्कूल बैग  देखने पर जब देखो तब स्कूल से बैग मे टिफिन बाक्स वैसे का वैसा बिना खाये चला आताा था . मम्मी ने बदल बदल कर टिफिन रखना चालू किया जैसे कभी पराठा कभी चिल्ला तो कभी उपमा तो कभी हलुआ और पूडी के साथ आलू भुजिया टिफिन मे रख देती थी लेकिन अब भी उसका टिफिन बाक्स वैसे का वैसे ही वापस आ जाता था । रश्मी के घर के बगल के घर मे पम्मी रहती थी वह भी रश्मी के साथ पढ़ती थी।  दोनो एक साथ खेलती कूदती भी थी . एक ही कैब से साथ स्कूल भी जाती थी. रश्मी और पम्मी की मम्मियाँ भी आपस मे दोस्त थी.
रश्मी की मम्मी रश्मी के स्कूल मे टिफिन नहीं खाने से बहुत दुखी थीं उनसे पम्मी की मम्मी ने जब पूछा तब रश्मी की मम्मी ने बताया कि आजकल रश्मी स्कूल से टिफिन का डिब्बा वैसे का वैसे बिना खाये वापस ले आती है. पम्मी की मम्मी हँसी फिर बोलीं कि जैसे दोनो साथ खेलती हैं वैसे दोनो एक टिफिन बाक्स से ही साथ साथ खाती भी हैं मैं डबल टिफिन रख देती हूँ दोनो एक साथ खा लेती हैं. मै तुम्हे बताने वाली थी पर बता नहीं पायी थी. रश्मी की मम्मी को अच्छा नहीं लगा वह बोलीं लगता है कि रश्मी को मेरा बनाया खाना पसंद नहीं है तुम्हारे हाथो का बनाया पसंद है. पम्मी की मम्मी बोली, नहीं बिलकुल नहीं . पहले पम्मी भी रश्मी के साथ शेयर करती थी तब पम्मी तुम्हारे बनाए टिफिन की बहुत तारीफ करती थी . ये तो बच्चे है उनको जो अच्छा लगने लग जाय. पम्मी की मम्मी फिर बोली कल तुम छुपा कर दोनो बच्चों के लिये टिफिन दे जाना मै पम्मी के टिफिन मे रख दूँगी फिर देखेंगे क्या होता है.
दूसरे दिन प्लान के हिसाब से दोनो बच्चो के लिये छिपाकर टिफिन पम्मी के घर रश्मी की मम्मी दे आई और रश्मी के टिफिन मे भी वही टिफिन रख दिया. रश्मी जब लौट कर आयी तो अपनी माँ से बोली मम्मी आज पम्मी की मम्मी ने इतना अच्छा टिफिन रखा था जिसे खा कर मजा ही आ गया. तुम भी मम्मी उनसे पूछ लो इतना अच्छा टिफिन कैसे बनाया था . माँ खा कर बस मजा आ गया. माँ ने कहा तूने अपना टिफिन फिर नहीं खाया ?  रश्मी की मम्मी ने फिर रश्मी को उस का टिफिन उसे दिखाया और पूछा क्या यही टिफिन था . रश्मी ने एक कौर खाया फिर बोली हाँ मम्मी यही था . क्या आँटी मेरे लिये अलग से टिफिन दे गईं थी.  तब तक पम्मी की मम्मी भी आ गईं वह बोली कि नही रश्मी तुमने जो टिफिन स्कूल मे खाया वह और यह टिफिन दोनो तेरी मम्मी ने बनाया था. रश्मी बोली यह तो खूब रही आप दोनो मिलकर मुझे बुद्धू बना रहे थे. पम्मी की मम्मी के जाने के बाद रश्मी अपनी मम्मी के गले मे लिपट गई बोली माई मम्मी इज द बेस्ट ! फिर मम्मी को दुखी देखकर उनसे बोली मम्मी मुझे माफ कर दो कल से मै तुम़्हारे हाथ का बनाया टिफिन ही खाऊँगी ।।




                         संसकृति श्रीवास्तव
                         कक्षा चार 
                       झान भारती स्कूल 
                        दिल्ली