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बुधवार, 16 अक्टूबर 2019

मेरा बचपन : अर्चना सिंह जया






कहाँ गया वह?

भोला बचपन।

कागज़ की कश्ती से ही

खुश हो जाया करते थे हम।



मिट्टी के गुड्डे गुड़ियों संग,

सदा खेला करते थे हम

कहाँ गया वह?

भोला बचपन

कागज़ की जहाज़ बना


हवाओं में उड़ाया करते थे।

बच्चों की ही रेल बना,

झूमा गाया करते थे हम।

लूडो, कैरम घर में खेल


कोलाहल करते थे हम।

रंग बिरंगी तितलियों

संग बगिया में भागा करते थे।

कहाँ गया वह?


भोला बचपन

रंगीन पतंगों को उड़ा,

अंबर को छूआ करते थे हम।

छोटी छोटी बातों में ही


बेहद खुश हो जाया करते थे।

सपने कुछ पूरे होते

और कुछ अधूरे ही रहते

फिर भी मुस्कुराया करते थे हम।


कोई लौटा दे वो

मेरा बचपन।

जिसमें सदा ही हर पल

हर हाल में खुश रहते थे हम।






        .....अर्चना सिंह जया

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