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सोमवार, 26 अप्रैल 2021

"करतब" (कुण्डलियाँ) स्व महेंद्र देवांगन "माटी" की रचना

 

करतब करती रोज के , देखे सब हैरान ।
चल जाती है डोर पर , नन्ही सी है जान ।।
नन्ही सी है जान , खूब वह नाचा करती ।
चढ़ती ऊँचे बाँस , नहीं वह फिर भी डरती ।।
देते पैसे लोग  , उसी से राशन भरती ।
पैसे खातिर देख , रोज वह करतब करती ।।



महेंद्र देवांगन "माटी"
(प्रेषक - सुपुत्री प्रिया देवांगन "प्रियू")
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Mahendradewanganmati@gmail.com

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