विष्णु पुराण में ध्रुव की कहानी बताई गई है । यह इसप्रकार है ।
महाराजा उत्तानपाद की दो महारानियाँ थी । जिनमे बड़ी रानी का नाम था सुनीति और छोटी रानी का नाम सुरुचि था । छोटी रानी महाराजा उत्तानपाद की बहुत प्रिय थी। ध्रुव बड़ी रानी सुनीति के पुत्र थे । रानी सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। छोटी रानी महाराजा उत्तानपाद को बहुत पसंद थीं इसलिए वो बहुत नकचढ़ी भी थीं । महाराजा उत्तानपाद उनकी सही गलत सब बातों को पसंद करते थे और गलत बातों का कोई प्रतिरोध नहीं करते थे ।
पाँच साल की आयु के बालक ध्रुव, एक बार, जब उनके पिता उत्तानपाद अपने सिंहासन पर विराजमान थे तब वे अपने पिता की गोद में आकर बैठ गए थे। उसी समय छोटी महारानी सुरुचि अपने बेटे उत्तम के साथ वहाँ आई । उत्तम अपने पिता की गोद में बैठने की जिद करने लगा । रानी सुरुचि ने ध्रुव को महाराजा की गोद से उतार और अपने बेटे को महाराजा की गोद में बैठा दिया । नन्हे राजकुमार ध्रुव रोने लगे, तब रानी सुरुचि ने बालक ध्रुव से कहा कि अगर तुम्हें महाराज उत्तानपाद की गोद में बैठने का इतना ही शौक था तब मेरे गर्भ से जन्म लेना चाहिए था। बालक ध्रुव ने इस बात की शिकायत अपनी माँ सुनीति से की । रानी सुनीति ने उसे समझाया कि सुरुचि भी ध्रुव की माँ है। अतः माँ के द्वारा लिये फैसले पर कुछ कहना अनुचित होगा । माता सुनीति ने कहा कि माता से बडे सिर्फ़ भगवान है वे ही तुम्हारी बात सुन सकते हैं । बालक ध्रुव ने भगवान की तपस्या करने के लिये अपना घर छोड़ कर तपस्या करने के लिये वन निकल गए । रास्ते में उन्हें काफी अड़चने आयीं, लेकिन उन्होंने किसी बात की परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य पर चलते रहे । देव ऋषि नारद बालक ध्रुव के सामने प्रगट हुए और उन्होंने तपस्या की कठिनाइयों के बारे मे भी बताया । ध्रुव पर किसी बात का जब असर नहीं पड़ा तब नारद मुनि ने उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन करने का मार्ग सुझाया । ध्रुव की घनघोर तपस्या से सम्पूर्ण ब्रह्मांड हिल गया । ध्रुव ने लगातार छह माह अन्न जल त्याग कर एक स्थान पर बैठकर घनघोर तपस्या की । उनकी तपस्या मे लीन होने की वजह से भगवान विष्णु सामने खड़े थे परन्तु ध्रुव ने अपनी आंखों को बंद रखा उनका ध्यान मन में विराजमान छवि की तरफ एकाग्रचित था । भगवान विष्णु ने जब उनके हृदय पटल से वह छबि लुप्त कर दी तब ध्रुव ने आंखोको खोला और प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन दिए । भगवान विष्णु के दर्शन से ध्रुव इतना भाव विह्वल हो गये थे कि उन्हें तपस्या करने का मूल कारण याद नहीं आ रहा था । भगवान से उन्होंने धन सम्पत्ति मोक्ष कुछ नहीं माँगा । भगवान ने उन्हें ध्रुव पद प्रदान किया और एसे महान भक्त के गौरवपूर्ण व्यक्तित्व के चारों ओर महान सप्तऋषि आज भी चक्कर लगा रहे हैं ।
ध्रुव अपने पूर्ण लीन भक्ति के कारण ध्रुवीकरण ध्रुवीय आदि शब्दों के पूरक बन गये उत्तर में स्थित एक तारा का नाम भी आपके नाम से जाना जाने लगा ।हमारे एक हेलीकॉप्टर का नाम भी ध्रुव रखा गया है ।
शरद कुमार श्रीवास्तव
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