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शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

अर्चना सिंह जया की रचना मेघा आए

 



मेघा आए, मेघा आए।

विरह वेदना को हर जाए। 


अपने संग जल का गागर लाए,

ताल, तलैया व नदियों में,

उमड़-उमड़ कर जल भर जाए।


पशु-पक्षियों और नदियों के,

विकल मन को पुलकित कर जाए।


मेघा आए, मेघा आए।

रिमझिम-रिमझिम की फुहार लाए,

मेंढक-झींगुर के संग सुर मिला।


इंद्रधनुषी सा मन हो जाए,

आनंदित हो मन मयूर झूमे गाए।


बाल मन कश्ती है तैराए,

और जोगनिया को जोग लगाए।



मेघा आए, मेघा आए। 

संग प्रियतम का संदेशा लाए,

मधुरिम बूंदों से नहलाए।


शीतल पवन तन छू जाए, 

बरखा की चंचल बूंदों से,

कोमल मन विचलित हो जाए। 



मेघा आए, मेघा आए।

प्रेम गीत, सावन संगीत 

बालिकाएं झूम झूमकर हैं गाएं।


उम्मीद-राहत की फुहार संग लाए,

खेतिहर के जीवन को हर्षाए। 


काले मेघा, भूरे मेघा 

जब-जब रूप बदल कर छाए,

कोमल बाल मन को है लुभाए।


मेघा आए, मेघा आए।

बरखा रानी के आगमन से ,

वातावरण खुशनुमा हो जाए।


रक्षाबंधन महाशिवरात्रि पर्व, 

श्रावण मास संग अपने लाए।

जीवनदायिनी है वर्षा ऋतु,

धान, मक्का, गन्ना फसल को भाए।


मेघा आए, मेघा आए।

विरह वेदना को हर जाए।


------ अर्चना सिंह जया


इंदिरापुरम 

गाजियाबाद 

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