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सोमवार, 16 अगस्त 2021

बाल रचना/ घास उगाएं! : वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी" की रचना

 


घास न  होती अगर  धरा  पर,

कैसे    बच     पाते    चौपाए,

गैया    नहीं    दिखाई    देती,

घोड़े     मरते    पूंछ   दबाए।


बकरी तड़प-तड़पकर मरती,

भैंसें     मरतीं     पेट   दबाए,

खरहा,गिलहरी  नहीं  दीखते,

मिट जाते बिन  घास  चबाए।


गधा अधमरा  होकर  गिरता,

बिना  घास  में  लोट ।लगाए,

दूध-दही   सपने   हो    जाते,

कैसे    बनती   सेहत    हाए।


अनगिन  ऐसे  जीव   धरापर,

मर जाते बिन झलक दिखाए,

बिना घास यह  कौन बताओ,

रखता  सब   गुब्बार   दबाए।


यह सब  ईश्वर  की  माया  है,

उसने    सारे    जीव   बनाए,

उनकी खातिर हरी  घास  से,

हरे - भरे     मैदान    सजाए।


गोलू, मोलू,  गुड़िया,  अस्मी,

चलो सभी को यह  बतलाएं,

बिना  घास  जीवन  सूना  है,

आओ  मिलकर घास उगाएं।

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             वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

                 मुरादाबाद/उ,प्र,

                 9719275453

                  

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