ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 26 दिसंबर 2021

*सच्ची मेहनत* : विद्यालय स्तर पर अनुभव की एक छोटी सी कहानी : शिल्प -कृष्ण कुमार वर्मा

   




राहुल और आकाश दो बचपन के सच्चे मित्र थे । साथ मे पढ़ते , खेलते और घूमते । दोनो एक ही साथ माध्यमिक परीक्षा पास कर गांव से 8 किलोमीटर दूर हाईस्कूल में प्रवेश लिए ।  राहुल पढ़ाई में तेज था जबकि आकाश एक औसत छात्र था । 

दोनो साथ - साथ विद्यालय जाते और घर आते । धीरे - धीरे कक्षा में राहुल की दोस्ती बढ़ने लगी क्योंकि वह होशियार लड़का था । वही आकाश से भी राहुल का रुझान कम होते जा रहा था । इस संदर्भ में आकाश कई बार समझाता था कि साथ बैठकर पढ़ेंगे तो ज्यादा आसानी होगा और मेरा भी दिक्कत दूर हो जाएगा । आकाश बहुत ही मेहनती लड़का था भले ही औसत छात्र था । वह प्रतिदिन घर के काम से समय निकाल कर पढ़ाई में ध्यान देता था । प्रतिदिन सुबह से उठकर पढ़ता था । वही राहुल की दोस्ती दिनोदिन बढ़ते जा रहा था और उसे आकाश को पढ़ाई में मदद करने में कोई रुचि नही रह गया था । वह हमेशा आकाश को पढ़ाई में ध्यान देने को कहता था कि वह कमजोर है , अच्छे से पढ़े ताकि बोर्ड परीक्षा पास कर सके । 

राहुल ने कक्षा नवमी तक विद्यालय में टॉप किया था और दसवीं की अर्धवार्षिक परीक्षा में भी सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किया । उसे गणित विषय बहुत अधिक प्रिय था इसलिए उसी को ज्यादा ध्यान देता था ।  अर्धवार्षिक परीक्षा के बाद दोनों का एक साथ पढ़ना लिखना लगभग बन्द हो गया था और अपनी अपनी तैयारी में ब्यस्त हो गए । राहुल पढ़ाई के साथ साथ घूमने और क्रिकेट खेलने का भी शौकीन था । बीच- बीच मे खेलने चला जाता था । 

आकाश के लिए सबसे बड़ी मुसीबत थी तो वो गणित विषय ही था । और वह इतना सक्षम भी नही था कि ट्यूशन कर सके । बड़ा परेशान था कि वह कैसे अच्छे अंक प्राप्त कर पायेगा । 

एक दिन शाला में अंग्रेजी विषय के सर ने उसे परेशान देखा तो पूछा ? तब उसने सारी समस्या उस सर को बता दिया । तब सर ने उसे समझाया कि बेटा सभी विषय महत्वपूर्ण होते है और सबको बराबर ध्यान तो अगर अच्छे अंक से पास होना चाहते हो तो । क्योंकि सभी विषय के अंक मिलकर पूरा परिणाम निर्धारित करते है । इसलिए सभी विषयो को समय सारणी के आधार पर निर्धारित कर पढ़ाई करो । और गणित तथा अंग्रेजी से सम्बंधित दुविधाओं को लंच के समय मुझसे दूर कर लेना । वर्मा सर का जवाब सुनकर आकाश के मन मे एक नया संचार और आत्मविश्वास भर गया और वह मन लगाकर वह जुट गया । वही राहुल को विश्वास था कि शाला में टॉप तो वही करेगा क्योंकि वह सबसे कठिन विषय गणित का मेघावी छात्र था । 

वार्षिक परीक्षा शुरू हुई और दोनो दोस्तो के पर्चे अच्छे गए । आकाश की मेहनत इस बार शानदार थी क्योंकि उसने अपने कमजोरी को ही अपना ताकत बना लिया था और दृढ़ संकल्पित था कि बोर्ड परीक्षा अच्छे से पास करेगा । 

महीने बाद परिणाम आया और बड़ा परिवर्तनकारी रहा । राहुल ने अच्छे अंक प्राप्त किये । उसे उम्मीद के अनुसार गणित में 95 अंक प्राप्त हुए जबकि सामाजिक विज्ञान की अनदेखी से मात्र 70 अंक ही प्राप्त कर पाया । कुल 600 अंको में 510 अंक प्राप्त किया । लेकिन उस परिणाम से ज्यादा आश्चर्य उसे आकाश के परिणाम से था । आकाश में 600 में 536 अंक लाकर पूरे विद्यालय में टॉप किया था । उसे गणित में 76 अंक प्राप्त हुए थे लेकिन उसने अन्य सभी विषयों में 90 से अधिक अंक प्राप्त किये जिसमे अंग्रेजी विषय मे 96 अंक काफी आश्चर्य करने वाली बात थी ।

पूरे विद्यालय में हलचल हो गई थी कि इस बार टॉपर एक औसत छात्र बना । जब दोनों आपस मे मिले तो राहुल ने बड़े आश्चर्य से पूछा तो उसने वर्मा सर वाली मार्गदर्शन बाली बात उसे पूरी बता दी । यह सुन राहुल को बहुत निराशा हुई कि क्यों उसने मार्गदर्शन नही लिया और एक गणित विषय के अतिआत्मविश्वास के कारण अन्य विषयों पर ध्यान दे नही पाया कि बाकी तो ऐसे ही बन जायेगा ।

राहुल और आकाश दौड़ते वर्मा सर के पास गए और आशीर्वाद लिए और आकाश ने सर से कहा - सर ये सब आपके कारण हुआ है ।

तब सर मुस्कुराये और बोले - नही बेटा ! ये तो तुम्हारी सच्ची मेहनत थी जो तुमने ईमानदारी से की थी । जीवन मे आत्मविश्वास जरूरी है लेकिन अतिआत्मविश्वास से बचना चाहिए और हमेशा अपने से बड़ो का मार्गदर्शन लेते रहने चाहिये ।

अब तक राहुल बहुत कुछ समझ चुका था ।

✍ 

*कृष्ण कुमार वर्मा*

  ब्याख्याता [ LB ]

  शासकीय हाई स्कूल भड़हा , तिल्दा 

  जिला - रायपुर

हम भारतवासी : डाक्टर प्रभास्क पाठक

 


राम अयोध्या,कृष्ण वृंदावन,और सदाशिव काशी,

गंगा,यमुना,सरस्वती,सतलुज,सिंधु के हम वासी।

वेद,बुद्ध,गांधी मेरे जीवन में 

बसते हैं,

ज्ञान-विज्ञान की खरी शिला पर 

दुनिया को रचते हैं।

वसुधैव कुटुम्बकम संदेश हमारा आओ ,मिलजुल कर रहते हैं।

सदा हमारे हाथ कर्मरत

सबका अभिनंदन करते हैं

हम सब हैं भारतवासी,

जो अविनाशी रचते हैं।


डाॅ प्रभास्क  पाठक 

राँची  झारखंड 


मानवता का कल्याण करो : श्रीमती मिथिलेश शर्मा की रचना

 



पथ तो अनेक मिल जायेंगे

कुछ लक्ष्य नया निर्माण करो,

जो बीत गया सो व्यर्थ गया

बस आगत का सम्मान करो.

                                              

जो हैं भूले भटके-पिछड़े

उनको जागृति का सम्बल दो,

ये हीन शक्ति का द्योतक हैं

इनको केवल अवलंबन दो.

इतिहास स्वयं बन जायेगा

कुछ त्याग और बलिदान करो,

पथ तो अनेक मिल जायेंगे

कुछ लक्ष्य नया निर्माण करो.

 

सुख को ही मत समेट लो तुम

दुखों को भी स्वीकार करो,

जो हैं शोषित, शापित, ताड़ित

उनको भी अंगीकार करो.

अज्ञान मिटाकर धरती के

कण-कण से नव उत्थान करो,

मानव हो बस मानव रह कर

मानवता का कल्याण करो.

 

रचना-

श्रीमति मिथिलेश शर्मा

एम.ए., साहित्यरत्न.

भूतपूर्व अध्यापिका, लखनऊ. 

  

  

"संयम" प्रिया देवांगन प्रियू की (लघु कथा)

 



वर्षा बचपन से बहुत होशियार लड़की थी।वह 10वीं कक्षा की छात्रा थी। उसका मन हमेशा पढ़ाई की तरफ ही रहता था। खेलने -कूदने में भी अच्छी थी। अचानक उसकी तबियत खराब हो जाने के कारण वह 1-2 महीने स्कूल नहीं गयी और उसके क्लास के सभी बच्चें उससे आगे हो गए। वर्षा चाहकर भी बिस्तर से उठ नहीं पाती थी। बुखार के कारण वह कमजोर हो चुकी थी।वर्षा को इस बात का डर था कि कहीं वह बोर्ड क्लास में फैल न हो जाय। धीरे - धीरे ठीक होने लगी और स्कूल भी जाने लगी। वर्षा के सारे सहपाठी कहने लगे कि वर्षा तुम तो बहुत पीछे हो गयी हो। तुम इस साल  कैसे पास हो पाओगी। उसके सारे सहपाठियों ने यह बात बार - बार कह कर उसके दिमाग में यही भर दिए थे कि वर्षा अनुत्तीर्ण हो जाएगी। वर्षा घर जा कर जोर - जोर से रोने लगी।
वर्षा ने सोचा कि दूसरे दिन स्कूल जा कर सब को जवाब दूँगी।दूसरे दिन जब वर्षा स्कूल गयी तो फिर एक-दो लोग सुनाने लगे। जैसे ही वर्षा कुछ बोलने वाली थी कि उसके मन में एक आवाज आई,  जवाब देने से बात और बिगड़ जाएगी। क्या पता, अगर मैं सब को जवाब दूँगी और कहीं मेरा अंक कम हो जाये तो सारे सहपाठी मेरा बहुत मजाक उड़ायेंगे।
रिजल्ट आने के बाद ही पता चलेगा---।
वर्षा चुपचाप वहाँ से चली गयी।
वर्षा ने बहुत ही *संयम* से काम लिया और घर में खूब मेहनत करने लगी।वर्षा को क्लास में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। किसी को जवाब नहीं देना पड़ा, सब को उसका जवाब मिल चुका था।

रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

 



 छोटे से पप्पी  बूजो के साथ नन्ही  चुनमुन खेल रही थी ।   सामने  सुयश भैया अपने मित्रों के साथ साइकिल चला रहे थे ।  सुयश भैया के साथ साथ बूजो को जैसे मालूम है कि साइकिलिंग  एक अच्छी बात है उससे एक्सर्साइज  हो जाती है और आनंद  भी आता है।  बूजो सुयश  को साइकिल  चलाता देखकर  खुश हो गया और उसकी साइकिल  के आगे पीछे भागने लगा ।   सुयश  को भी बूजो  के साथ  खेलने मे मजा आ रहा  था ।   

इसी दौड़म-भाग  मे बूजो छुपकर  पास की एक  झाड़ी मे चला गया ।   सुयश  ने सोचा कि लगता है कि बूजो  घर चला गया है अतः वह और चुनमुन  घर चले गए।   इधर झाड़ी मे जाने के बाद थका होने के कारण बूजो को नींद  आ गई ।   सपने मे उसे लगा कि वह उडने वाला एक यूनीकार्न  बन गया है और उसके पंख निकल आए हैं ।

सपने ही घोड़े  की शक्ल का यूनीकार्न  बना  बूजो हवा मे उड़ान भरता हुआ नदी नाले पहाड़ पार  कर  बहुत दूर निकल  आया था ।  सामने विशाल  समुद्र  था  ।   समुद्र  पर उड़ते उसे बहुत  मज़ा आ रहा था।  उसके पंख  जो उसे उड़ान भरने मे मदद  कर  रहे थे ।  अब थकने लगा थे।   वह अब डरने लगा था वह ठीक  से चिल्ला भी नहीं पा रहा था बस कुइंकुई कर रहा था।   नन्ही चुनमुन  उसे फिर  से खोजने पाक मे आई थी  बूजो को कुइंकुई करता देख झट से  झाड़ी  से निकाल  कर  चुनमुन  उसे घर ले आई।    




शरद कुमार श्रीवास्तव 

पहेलियाँ : संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव



1 निम्नलिखित  में  कौन सा  अंक  क्रम  से   बाहर  का  है   और सही  संख्या  क्या  होगी

अ)  2, 6, 19, 54, 162
ब)  19, 11,  16, 10, 13, 8
स) 1, 3, 9, 27, 83
द ) 4, 8, 16, 31, 64


2 एक खेल के  मैदान  में  6  बच्चों  की  औसत  आयु  15 वर्ष  है,  तब किसी  एक बच्चे  की  अधिकतम  आयु कितनी  हो सकती  है  जबकि  न्यूनतम  आयु 12 वर्ष  है ?

3  दो  किलो रुई और दो किलो के  बटखरे में  कौन  भारी है

4  माँ की आयु बेटी से  दुगुनी है  , बेटे की  उम्र  पिता की  आधी  है  ।  माता पिता  की  आयु  का अनुपात  3:4 है  तो बेटे और बेटी की  आयु में  क्या  अनुपात  है ।

5  काला हाथी उड़ता  जाता
    किसी  के वो हाथ न आता 

संकलन  
शरद कुमार श्रीवास्तव 

"सुंदर पुष्प" प्रिया देवांगन "प्रियू" का गीतिका छ॔द



लाल नीले बैगनी सब, आज मन को भा गये।
पुष्प सुंदर लग रहे हैं, बाग में सब छा गये।।
देख के इस पुष्प को जी, राग भौंरे गा रहे।
मंद सी मुस्कान लेकर, बाग में सब आ रहे।।

शीत बरसे मेघ से जब, मोतियाँ बन जा रही।
फूल से खुशबू निकल कर, बाग को महका रही।।
रंग इसका प्रेम का है, ईश को मोहित करे।
हाथ जिसके आय जब वो, प्रेम से मन को भरे।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


चल रे मेरी गाडी चल. ( लखनऊ पर एक बालगीत ) शरद कुमार श्रीवास्तव

 



चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


लखनऊ शहर है बागों की नगरी


बागों की नगरी नवाबों की नगरी


लालबाग, यहां सुन्दर बाग है


डाली बाग, यहां आलम बाग है


चार् बाग, वहीं बादशाह बाग है


गूंगे नवाब, यहाँ लजीज कबाब हैं


दूर से ही मुँह मे आयेगा जल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


पहले  तू चल ऐयर्-पोर्ट अमौसी


मसकट से आयेगीं पीहू की मौसी


मौसी जी आयेगीं मौसा भी आयेंगे


चीकू भैया और आशी  भी आयेगी


बेबी  के लिये, खेलौने भी लायेगीं


सब को लेकर घर आना निकल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


लखनऊ शहर बडे  शराफत की नगरी


रस्मों- रिवाजो के विरासत की नगरी


नजाकत कि नगरी नफासत की नगरी


पहलेआप- आप मे ट्रेन जाए न निकल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


गावों मे खास हो या आम हो शहरी


सबकी पसन्द यहाँ का आम दशहरी


आमो का राजा यहीँ का आम दशहरी


बराबर नहीं इसके और कोई भी फल


चल रे मेरी गाडी चल चल रे मोटर गाडी चल


लखनऊ शहर के चप्पेचप्पे तू दौडी भागी चल


 शरद कुमार श्रीवास्तव

सोमवार, 6 दिसंबर 2021

आत्मविश्वास के धनी राजेन्द्र बाबू : 3 दिसम्बर/जन्म-दिवस के अवसर पर आलेख डाक्टर पशुपति पाण्डेय

 



बिहार के एक विद्यालय में परीक्षा समाप्ति के बाद कक्षाध्यापक महोदय सबको परीक्षाफल सुना रहे थे। उनमें एक प्रतिभाशाली छात्र राजेन्द्र भी था। उसका नाम जब उत्तीर्ण हुए छात्रों की सूची में नहीं आया, तो वह अध्यापक से बोला - गुरुजी, आपने मेरा नाम तो पढ़ा ही नहीं।


अध्यापक ने हँसकर कहा - तुम्हारा नाम नहीं है, इसका साफ अर्थ है तुम इस वर्ष फेल हो गये हो। ऐसे में मैं तुम्हारा नाम कैसे पढ़ता ? अध्यापक को मालूम था कि वह छात्र कई महीने मलेरिया बुखार के कारण बीमार रहा था। इस कारण वह लम्बे समय तक विद्यालय भी नहीं आ पाया था। ऐसे में छात्र का अनुत्तीर्ण हो जाना स्वाभाविक ही था।


लेकिन वह छात्र हिम्मत से बोला - नहीं गुरुजी, कृपया आप सूची को दुबारा देख लें। मेरा नाम इसमें अवश्य होगा।


अध्यापक ने कहा - नहीं राजेन्द्र, तुम्हारा नाम सूची में नहीं है। तुम इस बार उत्तीर्ण नहीं हो सके हो। 


राजेन्द्र ने खड़े होकर ऊँचे स्वर में कहा - ऐसा नहीं हो सकता कि मैं उत्तीर्ण न होऊँ।


अब अध्यापक को भी क्रोध आ गया। वे बोले - बको मत, नीचे बैठ जाओ। अगले वर्ष और परिश्रम करो।


पर राजेन्द्र चुप नहीं हुआ - नहीं गुरुजी, आप अपनी सूची एक बार और जाँच लें। मेरा नाम अवश्य होगा।


अध्यापक ने झुंझलाकर कहा - यदि तुम नीचे नहीं बैठे तो मैं तुम पर जुर्माना कर दूँगा।


पर वह छात्र भी अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं था। अतः अध्यापक ने उस पर एक रु. जुर्माना कर दिया। लेकिन राजेन्द्र बार-बार यही कहता रहा - मैं अनुत्तीर्ण नहीं हो सकता। 


अध्यापक ने अब जुर्माना दो रु. कर दिया। बात बढ़ती गयी। धीरे-धीरे जुर्माने की राशि पाँच रु. तक पहुँच गयी। उन दिनों पाँच रु. की कीमत बहुत थी। सरकारी अध्यापकों के वेतन भी 15-20 रु. से अधिक नहीं होते थे; लेकिन आत्मविश्वास का धनी वह छात्र किसी भी तरह दबने का नाम नहीं ले रहा था। 


तभी एक चपरासी दौड़ता हुआ प्राचार्य जी के पास से कोई कागज लेकर आया। जब वह कागज अध्यापक ने देखा, तो वे चकित रह गये। परीक्षा में सर्वाधिक अंक उस छात्र ने ही पाये थे। उसका अंकपत्र फाइल में सबसे ऊपर रखा था; पर भूल से वह प्राचार्य जी के कमरे में ही रह गया। 


अब तो अध्यापक ने उस छात्र की पीठ थपथपाई। सब छात्रों ने भी ताली बजाकर उसका अभिनन्दन किया। यही बालक आगे चलकर भारत का पहला राष्ट्रपति बना। उनका जन्म ग्राम जीरादेई( जिला छपरा, बिहार) में 3 दिसम्बर, 1884 को श्री महादेव सहाय के घर में हुआ था। छात्र जीवन से ही मेधावी राजेन्द्र बाबू ने कानून की परीक्षा उत्तीर्णकर कुछ समय वकालत की; पर 33 वर्ष की अवस्था में गांधी जी के आह्वान पर वे वकालत छोड़कर देश की स्वतन्त्रता के लिए हो रहे चम्पारण आन्दोलन में कूद पड़े।


सादा जीवन, उच्च विचार के धनी डा. राजेन्द्र प्रसाद को ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। राष्ट्रपति पद से मुक्ति के बाद वे दिल्ली के सरकारी आवास की बजाय पटना में अपने निजी आवास ‘सदाकत आश्रम’ में ही जाकर रहे। 28 फरवरी, 1963 को वहीं उनका देहान्त हुआ। उनके जन्म दिवस तीन दिसम्बर देश में अधिवक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रपति के रूप में वे प्रधानमन्त्री नेहरू जी के विरोध के बाद भी सोमनाथ मन्दिर की पुनर्प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए।



डॉक्टर पशुपति पाण्डेय

सहायक महाप्रबंधक (सेवानिवृत्त )

भारतीय स्टेट बैंक 

लखनऊ 



               🙏

"किसान" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



सुबह-सुबह हर रोज, खेत में मैं हूँ जाता।
करता दिनभर काम, शाम को वापस आता।।
खातू कचरा फेंक, और फिर साफ सफाई।
लेकर फसलें बीज, धान की भी बोवाई।।

अच्छी मिट्टी देख, सभी फसलें मुस्काते।
नये-नये से धान, निकल कर उसमें आते।।
गर्मी सर्दी धूप, पसीना माथ बहाता।
करता मेहनत रोज, बैठ कर तब हूँ खाता।।

नागर बख्खर साथ, हाथ में उसको पकड़ूँ।
साधारण इंसान, किसी से मैं नही  झगड़ूँ।।
पालन पोषण आज, घरों की कर रखवाली।
मैं हूँ एक किसान, और अपना ही माली




प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"शरद आगमन" रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"




शरद आगमन से सभी, थर थर काँपे देह।
कपड़े पहने गर्म है, बढ़ता सब का नेह।।

सूरज निकले देर से, चले पवन भी तेज।
शीत बूँद सजती धरा, लगती जैसे सेज।।

ओस बूँद है छा गयी, जैसे मोती हार।
झूमे नाचे है धरा, करे सभी से प्यार।।

धुंँधला-धुँधला सा दिखे, देखे चारो ओर।
ढ़ँक जाता है मेघ भी, होता है जब भोर।।

हरी-भरी धरती दिखे, गाते पक्षी गीत।
पड़ती किरणें सूर्य की, बढ़ जाता है मीत।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

हमारे बुजुर्ग आलेख शरद कुमार श्रीवास्तव




दादा दादी, नाना नानी परिवार की शान है । अपने प्यार से रिश्तों को सींचने वाले इन बुजुगों का प्रत्येक घर में विशेष स्थान है । अपने बच्चों की खातिर अपना जीवन दाँव पर लगा चुके  बुजुर्ग अब भी परिवार की जरूरत हैं यह बात हममे से बहुत कम लोग ही समझ पाते है।   कहीं जाना आना हो तो इनके भरोसे निश्चिंत होकर जाइये।  काम वाली, प्रेस वाला, सब्जी भाजी, दूध का काम सुचारू रूप से चलता रहता है।. बच्चे स्कूल से लौटने पर उनकी देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित रहती है।  दादी नानी तो घर के काफी काम कर देती हैं अचार चटनी बनाना फल सब्जी काटना प्रायः इनके ही जिम्मे रहता है।  दादा या नाना की घर मे उपस्थिति ही यथेष्ट है ।

दिलचस्प  बात  यह  भी है कि बच्चो से इनकी मित्रता होती है ।    बच्चो के साथ  ये स्वयं भी बच्चे बन जाते हैं।   छोटे बच्चो के स्कूलों मे दादी बाबा, नानी  नाना को बच्चों के साथ  अपने जीवन  काल  के अनुभवों से मिलने वाली सीख  को साझा करने और बच्चों को अच्छी अच्छी बाते बताने के लिए  आमंत्रित  भी किया जाता है


शरद कुमार श्रीवास्तव