शरद आगमन से सभी, थर थर काँपे देह।
कपड़े पहने गर्म है, बढ़ता सब का नेह।।
सूरज निकले देर से, चले पवन भी तेज।
शीत बूँद सजती धरा, लगती जैसे सेज।।
ओस बूँद है छा गयी, जैसे मोती हार।
झूमे नाचे है धरा, करे सभी से प्यार।।
धुंँधला-धुँधला सा दिखे, देखे चारो ओर।
ढ़ँक जाता है मेघ भी, होता है जब भोर।।
हरी-भरी धरती दिखे, गाते पक्षी गीत।
पड़ती किरणें सूर्य की, बढ़ जाता है मीत।।
प्रिया देवांगन "प्रियू"
पंडरिया
जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
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