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शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

गुलाब और काँटें" प्रिया देवांगन "प्रियू" का बालगीत



रहता काँटों संग मैं, मेरा नाम गुलाब।
जिसके हाथों में गया, लगे देखने ख्वाब।।
लगे देखने ख्वाब, प्रेम जोड़े हैं भाते।
करते जब इजहार, सदा मुझको वे लाते।।
खुशियाँ उनकी देख, नहीं कुछ मैं भी कहता।
काँटों का ये दर्द, सहन कर मैं हूँ रहता।।

देते हरदम साथ हैं, मेरे सच्चे यार।
रक्षा करते है सदा, और निभाते प्यार।।
और निभाते प्यार, कभी वे चुभ से जाते।
बैठे बनकर ठाठ, हाथ कोई न लगाते।।
काँटों की है बात, इसे कोई नहिँ लेते।
रखते हैं सम्भाल, साथ वो हरदम देते।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

मिट्ठी की चहचहाहट : शरद कुमार श्रीवास्तव की बालकथा

 



मिट्ठी सुबह ही से चुनमुन को आवाज लगा रही थी दीदी बहुत  भूख लगी है ।  लेकिन  चुनमुन  तो उस दिन अपने पापा की गोद  मे चिपक कर सो रही थी उसे याद नही था कि मिट्ठी के पिंजड़े मे कुछ नाश्ता भी रखना है ।  चुनमुन  रात मे अधिक पढ़ाई-लिखाई के कारण देर  से सोई थी ।  उसकी  मम्मी भी उसे उठा नहीं रहीं थी ।   मिट्ठी की चीख़-पुकार  सुनकर  चुनमुन की मम्मी  पहले समझ नहीं पायीं कि  उसने यह हल्ला गुल्ला क्यों मचा रखा है ।   दरअसल  मिट्ठी के साथ खेलने के कारण  चुनमुन  को ही यह सब पता होता है कि मिट्ठी को कब फल देना है कब मिर्च  और कब रोटी पानी ।  मम्मी ने समझा कि मिट्ठी को शायद धूप  मे बैठना है इसलिए  उसके पिंजड़े  को बालकनी मे रख दिया और  अपने काम मे लग गईं।  

 बालकनी मे मिट्ठी की चहचहाहट बढ़ गई ।   चुनमुन के द्वितीय  तल के फ्लैट  की बालकनी मे बिल्ली या कुत्ते के आने का डर नही था अतः चुनमुन  की मम्मी निश्चिंतता से सुबह  का चाय नाश्ता बना रहीं थी उन्हे मिट्ठी की चहचहाहट  मे कोई खास बात  नही समझ  आ रही थी लेकिन  चुनमुन  को मिट्ठी की चहचहाहट  अजीब  लगी और  वह पापा की गोद छोड़कर  बालकनी मे मिट्ठी के  पिंजड़े के पास आई ।

बालकनी मे आने पर चुनमुन  कै आश्चर्य  का ठिकाना न रहा वहाँ मिट्ठी के पिंजड़े के पास और दो तोते आ गएं हैं और उनका  मधुर राग अलाप चल रहा है।   यह देखकर  चुनमुन  के पापा ने चुनमुन  को समझाया कि जैसे मनुष्य  एक सामाजिक  प्राणी है वैसे सब जीव जन्तु भी सामाजिक  प्राणी है और यह मिट्ठी भी



शरद कुमार श्रीवास्तव 

"पापा की यादें" रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"




नजर ढूंँढती है राहों पर, पापा जल्दी आओ ना।।

हमें छोड़ क्यों चले गये हो, पापा जरा बताओ ना।

बैठे-बैठे रोते रहते, खाना नहीं खिलाता है।
प्यास लगे तब भी मुँह में जी,पानी नहीं पिलाता है।
आकर मुझको अपनी बाहों, झट से गले लगाओ ना।
हमें छोड़ क्यों चले गये हो, पापा जरा बताओ ना।।

जब से इस दुनिया को छोड़े, साथ नहीं कोई देते।
पापा बिन हम कैसे जीते, खबर नहीं कोई लेते।।
रिश्ते क्या ऐसे होते हैं, थोड़ा सा समझाओ ना।
हमें छोड़ क्यों चले गये हो, पापा जरा बताओ ना।।

जब-जब हम राहों पर चलते, अपनी नजर टिकाते हैं।
मदद माँगने जाते हैं तो, आँखे हमें दिखाते हैं।।
हम भी आगे बढ़ सकते हैं, नई सोच अब लाओ ना।
हमें छोड़ क्यों चले गये हो, पापा जरा बताओ ना।।

मोल यहाँ पैसे का होता, करे उधारी अपने ही।
अपने ही पैसे मंँगने को,पड़े भिखारी बनने ही।।
यहाँ सामना कैसे करना, आकर के समझाओ ना।
हमें छोड़ क्यों चले गये हो, पापा जरा बताओ ना।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"छोटी सी जिंदगी" "दोहे"

 

हँसता हुआ  खिला चेहरा




छोटी सी है जिंदगी, भर दो जी मुस्कान।
चार दिनों का है सफर, परेशान इंसान।।

हँस कर जीना सीख लो, करो सभी से प्यार।
सुख-दुख जीवन अंग है, कभी न मानो हार।।

माटी का ये देह हैं, करना नहीं घमंड।
ईश्वर बैठे देखते, तुम्हें मिलेगा दण्ड।।

भेद-भाव को छोड़ कर, रहना सब के साथ।
विपत समय आये सखी, पकड़े रहना हाथ।।

आये खाली हाथ है, कर लो अच्छे काम।
छोटी सी है जिंदगी, सदा कमाओ नाम।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना रेन कुटी

 



         सुबह -सुबह चिड़िया चिल्लाई,
         इसे काटते क्यों हो भाई?
         पेड़ हमारे स्थाई घर,
         यहीं सदा मैं रहती आई|

         इसी पेड़ पर बरसों पहले,
         एक चिड़े से हुई सगाई|
         तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर,
         मैंने दुनियाँ एक सजाई|

         इसी पेड़ की किसी खोह में,
         अंडे बहुत दिये हैं मैंने|
         पाल पोसकर बड़े किये हैं,
         चूजे मैंने यहीं सलोनें|

         यहीं ठंड काटी है मैंनें,
         बिना रजाई या कंबल के|
         यहीं ग्रीष्म में कूदे हैं हम,
         इन डालों पर उछल उछल के|
    
        अगर पेड़ काटोगे तो हम,
        बेघर होकर कहाँ रहेंगे|
        डालों की थिरकन पर पत्तॊं ,
        की कब्बाली कहाँ सुनेंगे|

        अरे लकड़हारे वापस जा,
        दाल यहाँ पर नहीं गलेगी|
        आज हमारी 'रेन कुटी' पर,
        क्रूर कुल्हाड़ी नहीं चलेगी|





        


   

प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

12 शिवम सुन्दरम  नगर         

 छिंदवाड़ा म प्र

बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

प्रिन्सेज डॉल के लड्डू : शरद कुमार श्रीवास्तव

 


 




प्रिन्सेज के स्कूल मे आज मैडम ने बच्चो की एक टिफिन पार्टी रखी थी. यह पांर्टी इसलिये थी ताकि बच्चे मिल जुल कर खायें. शेयर कर के खाने से एक सोशल बनने की प्रकृति जाग्रत होती है. शेयर करने से बच्चे हिल मिल कर रहना सीखेगे . टीचर ने हर बच्चे को अपने- अपने घरों से अलग- अलग किस्म की चींजे लाने को कहा गया है. छह- छह बच्चो को वही- वही चीजें लाने को कहा गया ताकि सामान बरबाद न हो और किन्ही पेरेन्टस् पर अधिक बोझ भी नहीं पडे़. रूपम डॉल को पोहा लेकर जाना था तो शुभम को पीजा ! लेकिन प्रिन्सेज डॉल को तो मिठाई लेकर जाना है . प्रिन्सेज को मिठाई मे लड्डू बहुत पसन्द है . उसे लड्डू पसन्द होने की एक वजह है मोटू पतलू वाले मोटू को समोसे पसंद हैं तो छोटा भीम की तरह प्रिन्सेज को भी लड्डू पसंद हैं . उसकी मम्मी लड्डू घर मे कम लाती है. टीचर जी ने जब डायरी मे लिखकर दिया है तब तो मम्मी को पापा जी से लड्डू लाने को कहना पडा़ .


शाम जैसे ही हुई ,पापा जी आफिस से लौटते हुए लड्डू लेकर आये. उन्हे मालूम था कि उनकी प्यारी बिटिया को लड्डू बहुत पसंद है इसलिये मिठाई का डिब्बा खोल कर पापा जी अपने हाथों से दो लड्डू अपनी दुलारी बेटी को प्लेट मे रखकर दिया . प्रिन्सेज ने जल्दी जल्दी दोनो लड्डू गटक लिये . उसने पापाजी से एक और लड्डू की फरमाइश की तब पापा जी ने उसे एक और लड्डू दे दिया . उस समय तक प्रिन्सेज की मम्मी ऑफिस से नहीं आयी थीं . मम्मी जी जब ऑफिस से घर आईं और थोड़ी देर मे घर मे जब खाना खाना हो गया तब सबके साथ प्रिन्सेज ने लड्डू खाया.


सबेरे मम्मी ने एक टिफिन बॉक्स मे आठ लड्डू रख दिये थे . पाँच लड्डू तों ग्रुप के बच्चें के लिये थे, दो लड्डू मैडम के लिये थे और एक लड्डू एक्स्ट्रा था . वैंन मे लड्डू का ध्यान प्रिन्सेज को बेचैन कर रहा था . उसने सोचा मम्मी ने एक लड्डू एक्स्ट्रा रखा है वह मै किसी को नहीं दूंगी वह उसने सबसे छुपा कर वैन मे ही खा लिया . स्कूल पहुँचने के बाद कुछ देर तक प्रिन्सेज को लड्डू का ध्यान नहीं आया लेकिन जैसे ही शानू ने छुपा कर टाफी का रैपर खोला वैसे ही प्रिन्सेज को अपने लाये लड्डू याद आगये . उसने सोचा एक लड्डू मेरे हिस्से का है वह तो मै खालूँ. जैसे ही उसने वह लड्डू निकाल कर खाना चाहा लड्डू की महक टीचर की नाक मे पड़ी और उन्होने प्रिन्सेज के हाथ से वह लड्डू वापस रखा दिया . क्लास मे कोई चीज खाने के लिये उसे दस मिनट के लिये बेन्च पर खड़ा कर दिया गया.


टीचर ने सब बच्चो को अधिक मिठाई खाने से होने वाले नुकसान के बारे मे पूछा . रिंकी बोली मैम ज्यादा मिठाई खाने से बच्चों के पेट मे दर्द होने लगता है. मैम बोली शाबाश रिंकी बिल्कुल ठीक है मिठाई मे चिकनाई घी तेल अधिक होता है जिसको अंधिक खाने से पेट दर्द करने लगता है. मन्टू बोला  हाँ मैडम , इसी वजह से मोंटे भी हो जाते हैं जिससे ठीक से भाग दौड़ भी नहीं पीतें है. टीचर ने उसे तारीफ भरी नजरों से देखा. गायत्री बोली मैम ज्यादा मिठाई ख़ाने से मेरे भाई के दाँत को कीटाणु खा चुक़ें थे इसी लियें डाक्टर ने मुँह मे इन्जेंक्शन लगाकर प्लास से दाॅत निंकलवाये थे बहुत दर्द हुआ था. प्रिन्सेज के नाना जी को डायबटीज है उसने भी बेन्च पर खड़े खड़े कहा मैम ज्यादा चीनी की चीजे खाने से डायबटीज भी हो जाती है. टीचर ने खुश होकर कहा बच्चो तुम सब लोग अच्छी तरह से जान गये कि अधिक मीठा नहीं खाना चाहिये . तब तक टिफिन की बेल हो गई थी . सब बच्चो ने टिफिन शेयर कर के खुशी मनाई।।




शरद कुमार श्रीवास्तव 



मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

चुटकुले

 


1 रामू भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि एक बहुत बड़ा मकान हो । उस मकान में खूब रुपये पैसे हो। वहाँ बड़ी बड़ी गाड़ियों हों और उस घर में मैं नौकरी करूँ।

2 सरल रोहित को मोटरसाइकिल अब नहीं चलाने दूँगा । सामने नाले में जाते जाते बची।
अमन एक और मौका तो दे सकते हो बन्दे को ।

3 एक भिखारी दूसरे भिखारी से अरे यह नई कमीज़ कितने में ली है ।
भिखारी यह वाली खरीदी नहीं है दूसरी कमीज के साथ फ्री में आयी है । 

4 दरोगा : कल तुमने शराब के नशे में धुत होकर गाड़ी पेड़ मे ठोक दी थी ।
राजू : साहब गलत संगत का नतीजा है बोतल एक थी और साथी तीन और उन लोगों ने नहीं पी । मुझे गाड़ी में छोड़कर सभी चले गए थे ।

5   बेटा  —  पापा मुझे  बाँसुरी  खरीद  दीजिए ।
पापा —  नही बेटा  तुम  दिन भर कान फाडोगे ।
बेटा — नही  पापा  रात मे जब सब सो जाऐंगे  तब बजाऊँगा

  6  चीकू — आशी बताओ मेरे पाकेट  में  कितनी टाफी  हैं  अगर सही  बताया  तो दोनो तुम्हे  दे दूंगा ।
आशी — भैय्या  मुझे  मूर्ख  नहीं  बनाओ  तुम्हारे पास  पांच  टाफी  है

संकलन: शरद कुमार श्रीवास्तव 

वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की रचना/कोयल के अंडे!


 

कोयल  ने  अपने  अंडों  को

कौए     के      घर      छोड़ा,

चतुर  कोकिला  ने  कौए के,

अंडों    को    खुद     फोड़ा।


कौवी   ने   कोयल  के  सारे,

अंडों     को     खुद    पाला,       

कभी  न  सोचा  कोई  अंडा,

गोरा      है      या      काला।


कौआ यह सब देख देखकर,

मन   ही     मन     मुस्काया,

बोला   मेरी   पत्नी  ने  खुद,

ममता       को      अपनाया ।


बच्चे   तो   बच्चे    हैं   चाहें,

अपने    या     कोकिल    के,

उसकी करनी वह  जाने  हम,

रहें   न  क्यों   हिलमिल   के।


कुछ दिन रहकर उड़  जाएंगे,

बच्चे     नील      गगन     में,

जाने फिर  कब  तक  लौटेंगे,

सूने      इस      आंगन     में।


भेद  भाव  करना  जीवन   में,

हमें       नहीं      आता      है,

ऐसा  घ्रणित  काम  धरा  पर,

मानव      को      भाता     है।


अपनी - अपनी बोली  जग में,

अपना - अपना          दुखड़ा,

कोयल कितनी अच्छी लगती,

खोले    जब     भी    मुखड़ा।

       


         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             मुरादाबाद/उ.प्र.

            9719275453

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वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की बाल।रचना : बगला भगत!



बगला  भैया,  कहाँ   जा   रहे

ओढ़         सुनहरी       चादर

भोलेपन  पर   सभी  आपका

दिल    से      करते     आदर।



मछली  बोली भक्त शिरोमणि

मेरी      भी      सुन      लीजे

सबकी    नैया    पार   लगाने

बस     चुनाव   लड़     लीजे।


घर-घर  जाकर  मत  देने  की

विनती        करनी        होगी

उल्लू  दादा   की  चौखट  पर

नाक         रगड़नी       होगी।


श्रमका  फल  मीठा  होता  है

हर      कोई       कहता     है

छीन-झपट   करने  वाला  तो

भूखा       ही      रहता     है।


कंठी-माला   के  निशान  पर

सबकी        छाप       लगेगी

औरआपकी  खोटी  किस्मत

निश्चित        ही     चमकेगी।


मछली  देख  स्वयं  बगले  के

आया     मुख     में      पानी

एक   झपट्टे   में  मछली  की

कर     दी     खत्म   कहानी।


बच्चों, नेक   राय   दुष्टों   को  

कभी      नहीं     भाती     है

सच्चे  लोगों  की असमय  ही

जान     चली     जाती     है।

         


        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            मुरादाबाद/उ.प्र.

            9719275453

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना टिक -टिक घोड़ा


टिक -टिक  घोड़ा, टिक -टिक घोड़ा।


 दिल्ली से  दौड़ा अल्मोड़ा।



अल्मोड़े से भरी उड़ान।


घूमा सारा हिंदुस्तान।



फिर भी थका नहीं ये घोड़ा।


लिया  पुणे से ईंधन थोड़ा।       



दौड़ गया फिर बादल पार।


अंतरिक्ष में पंख पसार।



लिये कई धरती के फेरे।


नदियाँ सागर पर्वत हेरे।



मिले राह में उड़न खटोले।


हाथ हिलाकर टाटा बोले।



घूम घाम कर वापस आया।


दिल्ली में फिर रंग जमाया।




प्रभुदयाल श्रीवास्तव 


"स्वर की देवी" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



स्वर की देवी कोकिला, मीठी सी आवाज।
सात सुरों के ताल से, पहनी सुर का ताज।।
पहनी सुर का, ताज लता जी, जग में छायी।
मधुरस घोली, जन-जन में वो, मन हर्षायी।।
गीत सभी को, प्यारी लगती, सुनते हर घर।
भारत बेटी, जग में आयी, लेकर के स्वर।।

जन-जन के दिल में रही, और बनायी नाम।
हम सब को वह छोड़ के, चली परम वो धाम।।
चली परम वो, धाम यहाँ सब, नीर बहाये।
देख चेहरा, याद लता जी, की जब आये।।
समाचार ये, सुनकर साथी, दहला तन मन।
स्वर की देवी, छोड़ चली अब, अपना जीवन।।






प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

"भिक्षुक " प्रिया देवांगन "प्रियू" की मार्मिक रचना



माँगे भिक्षा दान, द्वार पर सब के जाते।
दे दो मुझको दान, स्वयं झोली फैलाते।।
पहने भगवा रंग, माथ में तिलक लगाते।
रख मंजीरा हाथ, भजन भगवन के गाते।।

रुपिया चाँवल और, भोज भी दे दो माई।
कृपा करेंगे आज, स्वयं मेरे रघुराई।।
हम भगवन के भक्त, सभी के घर पर जाते।
करते सदा गुहार, तभी हम भोजन पाते।।

लीला अजब रचाय, भीख से करे कमाई।
कैसी माया देख, बड़ी लगती दुखदाई।।
सच्चे मन से लोग, दान हम को तुम देना।
प्रेम दया अरु ज्ञान, साथ में तुम भी लेना।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

संपादकीय



हिन्दी मे बालसाहित्य के सृजन और प्रसारण अपने   ब्लॉग   '"नाना  की  पिटारी' "  के   माध्यम  से दिनांक  04/02/2014 से कर रहा हूँ ।  इसे   अंतर्जाल पर छोटे बच्चों के  लिए पत्रिका का  स्वरूप  दिया ।  यह प्रकाशन   निशुल्क और  विज्ञापन  रहित है और मेरे  द्वारा  विगत आठ वर्षों से  प्रकाशित एवं सम्पादित  की जा  रहा  है ।  अब यह पत्रिका नवम वर्ष  मे प्रवेश कर  रही है  ।   इस पत्रिका को कोई  भी व्यक्ति विश्व  में  कहीं  भी,   गूगल  सर्च इंजन  मे हिन्दी अथवा अंग्रेजी  में 'नाना की  पिटारी' लिख कर  पत्रिका अंतर्जाल  पर  प्राप्त  कर  सकता  है।

मैने ' नाना  की पिटारी'  पत्रिका  के माध्यम  से  बालसाहित्य के  लेखन और  प्रसारण  के लिए   बहुत  काम  किया ।  मेरे द्वारा तथा विभिन्न  आदरणीय  लेखको और  कवियों **द्वारा उत्कृष्ठ  बालसाहित्य  जैसे बाल कविताओं, बाल  कथाओं ,   पहेलियों और   चुटकुलों  को आपके समक्ष प्रस्तुत  किया गया है ।  'शामू' धारावाहिक लम्बी कहानी,  प्राचीन  विश्व  के  सात अजूबे ,  नवीन  विश्व  के  सात अजूबे, अपने नन्हे मुन्ने बच्चों  के  समक्ष प्रस्तुत किया है।  पेरिस का  इफेल टावर  दिखाया  और कभी  बर्लिन की  दीवार तो कभी जैसलमेर के रेगिस्तान  की सैर  कराई ।   हमारे  महापुरुषों, हमारे पूर्वजों  के  बारे  में भी  बताया ।  

  बाल मन की  उत्सुकता और उनके  क्रिया    को  ध्यान  में  रख  कर  मैंने  एक  बाल चरित्र  'प्रिन्सेज डॉल' का सृजन  किया  है ।  ज्ञान वर्धक,  बाल मनोरंजन  प्रिन्सेज डॉल  की 21( फेरीटेल्स) की   बाल कथाओं  की सीरीज  एक रोचक  पुस्तक को  दो भागों  में   ताकि  बच्चे  बिना  बोझ समझे स्वयं  उठा कर  पढ़ सके, लिखी और अलग  से पुनः  प्रकाशित कराई   है ।    आपकी इसी पत्रिका से संग्रहित कर अपनी बालकविताओं को एक रंगीन  आकर्षक  पुस्तक  "चीकू आशी पीहू इन्नू के बालगीत "  का रूप  देकर  इसी वर्ष  प्रकाशित  कराया गया।  



शरद कुमार श्रीवास्तव 

**

डाक्टर  प्रदीप शुक्ल, पशुपति पाण्डेय,  सुशील  शर्मा,  श्री शादाब आलम ,वरिष्ठ साहित्यकार  प्रभुदयाल श्रीवास्तव,  महेंद्र सिंह  देवांगन  माटी (स्व) , वीरेन्द्र सिंह  बृजवासी आदि

सुश्री अंजू जैन, प्रिया देवांगन  प्रियू,,श्रीमती सुरभि श्रीवास्तव, श्रीमती मिथिलेश  शर्मा, श्रीमती अर्चना सिंह जया आदि उल्लेखनीय  हैं का मै आभार प्रकट कर  रहा हूँ।







माँ शारदे प्रिया देवांगन "प्रियू" की वंदना

"


वीणा की झंकार, भक्त सुन उठ कर आते।
दोनों हाथों जोड़, माथ को सभी झुकाते।।
श्वेत वस्त्र को देख, शांत मन भी हो जाते।
देती सब को ज्ञान, कलम सब हाथ उठाते।।

बजती जब-जब ताल, चहकते पक्षी सारे।
कलरव करते रोज, सभी लगते हैं प्यारे।।
हरियाली चहुँओर, पुष्प बगिया खिल जाती।
कमल पुष्प पर बैठ, शारदा माँ मुस्काती।।

लेकर पुस्तक वेद, ग्रन्थ भी हमें बताती।
अँधियारी को दूर, ज्ञान की दीप जलाती।।
माँ मैं हूँ नादान, कलम में साथ निभाना।
लेखन हो मजबूत, शिखर में भी पहुँचाना।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

ऋतु बसन्ती" प्रिया देवांगन "प्रियू" की बालकविता

 


ऋतु बसन्त का दौर, देख छायी हरियाली।
करते कोयल शोर, बौर भी लगती डाली।।
पीले पीले रंग, सभी मोहित हैं होते।
सरसों का है फूल, खेत में इसको बोते।।

हरा - भरा चहुँओर, लगे गेहूँ की बाली।
करते पक्षी शोर, बैठती डाली-डाली।।
खुशियाँ चारों ओर, मोरनी पँख फैलाती।
तोता मैना रोज, बाग में वह इठलाती।।

पुष्पों की मुस्कान, सभी के मन को भाती।
करे बसन्ती शोर, हवायें सर सर आती।।
खिलते फूल पलाश, मनो को लगता प्यारा।
होली बनते रंग, खेलते हैं जग सारा।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


बसन्त पंचमी: शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना

 


बसन्त पंचमी त्योहार आया
बच्चो मे यह खुशियाँ लाया
चीबू भैया पहने शर्ट बसंती
माला दी की है फ्रॉक बसंती

सरस्वती पूजा संग ले आया
बसन्त पंचमी का वार आया
कालेज और स्कूलो मे आया
बच्चो मे ये उल्लास ले लाया

बच्चे तो हुलसित घूम रहे हैं
नाच थिरक और झूम रहे है
हाथ मे लिये प्रसाद के दोने
मजे मे घूमे शहर के हर कोने




शरद कुमार श्रीवास्तव 

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

बाल कविता जंगल की बारात : रचना मंजू यादव







मेंढक जी जब बनकर दूल्हा, चले मेंढकी को लाने।
सारे मेंडक बने बाराती,लगे जोर से टर्राने।।
टर्र्,टर्र की आवाजें सुनकर शेर नींद से जाग गया।
देख के शेरू जी का गुस्सा चूहा डरकर भाग गया।।
चतुर सयानी  लोमड़ी मौसी पहुंची शेरू जी के पास।
जंगल में मंगल है शेरू ,चलो चलें हम भी बारात।।
किसकी शादी? कैसीशादी? मुझे निमंत्रण न आया।।
किसकी जुर्रत इस जंगल में   जिसने हमको नहीं बुलाया।।
लोमड़ी थी कुछ चतुर सयानी, बातों में थी सबकी नानी।
ये कैसी जुर्रत कर डाली? जो  फुदकू ने न तुम्हें बुलाया।।


अब जंगल में शेरू राजा जोर,जोर से था गुर्राया।
सुनके दहाड़ शेरू जी की,फुदकू दौड़ा,भागा आया।।
पैर पकड़ कर शेरू जी के जोर से रोया था टर्रा या।।
माफ़ी मांग कर शेरू जी से सारा मामला था सुलझाया।।
जंगल में अब सारे जानवर चले मेंढकी को लाने।
तान दे रहा गधा सुरीली,झिंगुर गाते हैं गाने।।




मंजू यादव 
(एटा) उत्तर प्रदेश 
Manju yadav 925925@ gmail. Com

सरस्वती वंदना का अर्थ डाक्टर पशुपति पाण्डेय





 *या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।*

*या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।*

*या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।*

*सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।*


*भावार्थ*

जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें।


*बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं*


डा. पशुपति पाण्डेय

गोमतीनगर

लखनऊ 


माँ सरस्वती (कुण्डलिया छंद ) डा सुशील शर्मा

 


  

आलोकित मन को करो ,छेड़ो वीणा तार। 

मुखरित ये जीवन करो ,ज्ञान दीप आगार।  

ज्ञान दीप आगार ,श्वेत कमलासन माता। 

हंसवाहनी दिव्य  ,स्वर्ग सुख भाग्य विधाता। 

चरणों में नित शीश ,ज्ञान दो हमें अखंडित। 

मिले सतत उत्कर्ष ,लेखनी हो आलोकित। 

उजियारा हर ओर हो ,ज्ञानपुंज आलोक। 

वीणा वादन से हरो ,जीवन के सब शोक। 

जीवन के सब शोक ,हरो माँ संकट मेरे।   

करुणा सिंधु कृपालु ,दूर हों अंध घनेरे। 

वीणा पाणी मातु ,भजे तुमको जग सारा। 

अंतस ज्ञान प्रदीप्त  ,करो जगमग उजियारा। 



डॉ सुशील शर्मा


खुशियों का त्यौहार" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



पूरे भारत देश में, आया है त्यौहार।
मिलकर सारे बाँटते, आपस में सब प्यार।।
आपस में सब, प्यार बाँट कर, गले लगाते।
देते बधाई, इक दूजे को, मन हर्षाते।।
रैली सारे,बिन बच्चों के, रहे अधूरे।
उड़े तिरंगा, खुशी मनाये, भारत पूरे।।

वीरों को करते नमन, और झुकाते माथ।
सीना ताने जो खड़े, रख बंदूके साथ।।
रख बंदूके, साथ हमेशा, वचन निभाते।
आँख उठा कर, देखे दुश्मन, मार गिराते।।
जान गंँवाते, माटी पर वो, असली हीरो।
रखे सुरक्षा, सदा हमें जो, वो है वीरो।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com