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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचना टिक -टिक घोड़ा


टिक -टिक  घोड़ा, टिक -टिक घोड़ा।


 दिल्ली से  दौड़ा अल्मोड़ा।



अल्मोड़े से भरी उड़ान।


घूमा सारा हिंदुस्तान।



फिर भी थका नहीं ये घोड़ा।


लिया  पुणे से ईंधन थोड़ा।       



दौड़ गया फिर बादल पार।


अंतरिक्ष में पंख पसार।



लिये कई धरती के फेरे।


नदियाँ सागर पर्वत हेरे।



मिले राह में उड़न खटोले।


हाथ हिलाकर टाटा बोले।



घूम घाम कर वापस आया।


दिल्ली में फिर रंग जमाया।




प्रभुदयाल श्रीवास्तव 


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