ब्लॉग आर्काइव

मंगलवार, 26 अप्रैल 2022

"प्यारी दादी" रचना प्रिया देवांगन प्रियू

 


लुटाती प्रेम बच्चों पर, सभी मन मोह लेती है।
हमारे साथ रहती है, सदा आशीष देती है।।
नहीं वो भेद को जाने, गले सब को लगाती है।
कभी वो बैठ छाया में, कहानी भी सुनाती है।।

खिलाती है हमें भोजन, खुशी से झूम जाती है।
भरे वो पेट बच्चों का, हृदय को शांत पाती है।।
जरा सी चोट लग जाये, उठा सीने लगाती है।
रुदन करते कभी हम तो, सदा तौफा दिलाती है।।

हमारे प्रेम पाने को, नयन को चूम लेती है।
कहूँ दादी हमारी वो, हमें वो प्यार देती है।।
करे वो ज्ञान की बातें, हमें बढ़ना सिखाती है।
बढ़े आगे कभी हम तो, सही राहें दिखाती है।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

गरीबी (एक लघुकथा ) : प्रिया देवांगन प्रियू



       विनी और बिट्टू दोनों भाई-बहन मैले-कुचैले कपड़े पहने थे। हाथों में छोटी-छोटी बोरियाँ थीं। वे कचरे बीनने जा रहे थे। कचरे के ढेर में झिल्ली, प्लास्टिक, लोहा आदि बीनते थे; और उन्हें बेचकर कर अपने खाने की व्यवस्था कर लेते थे। कभी कचरे के ढेर से रोटी के टुकड़े वगैरह या खाने को कुछ मिल जाता था, उसी से पेट भर लेते थे।
       बिट्टू बोला- "विनी उठो ! आज सबेरे जल्दी जाएँगे, तो हो सकता है कुछ खाने को मिल जाये। कल रात से हम भूखे हैं।"
       "हाँ भैया, मुझे तो रात को भूख के मारे बिल्कुल भी नींद नहीं आयी।" विनी बोली।
       रास्ते में एक आदमी अपने कुत्ते जैली को लेकर मॉर्निंग वॉक कर रहा था। वह कुत्ते को बिस्किट खिला रहा था। आगे-आगे कुत्ता और पीछे-पीछे आदमी।उसके पीछे थे दोनों भाई-बहन- बिट्टू और विनी। दोनों देख रहे थे; कुत्ता बिस्किट्स को नहीं खा रहा था। वह रास्ते में ही गिरा देता था। गिरि हुई बिस्किट को कभी विनी तुरन्त उठा लेती थी; तो कभी बिट्टू उठा लेता। बिस्किट पाकर दोनों खुश हो जाते थे। "आज भूख थोड़ी शांत हुई भैया।" विनी बोली।
         "हाँ विनी, हम रोज ऐसे ही सबेरे जल्दी आया करेंगे। ऐसे ही खाने को हमें रोज मिल सकता है।" तभी अचानक उस आदमी ने पीछे मुँड़ कर देखा कि जैली की गिरी हुई बिस्किट्स दोनों बच्चों के हाथों में है। उसने तुरंत दोनों को बिस्किट के टुकड़े नीचे फेंकने को कहा। बच्चे डर गए। फिर दोनों ने बड़े मायूस हो कर बिस्किट के टुकड़े नीचे फेंक दिए।
        "यह कुत्तों के खाने की बिस्किट्स है; इंसानो के लिए नहीं।" कहते हुए उस आदमी ने सारे बिस्किट्स जैली को जबरदस्ती खिला दिया।
        एक-दूसरे के चेहरे देख कर विनी और बिट्टू की आँखें भर आईं। दोनों भाई-बहन भारी मन से घर लौट रहे थे।  तभी उस व्यक्ति ने आगे बढ़कर  उन बच्चों को पास खाने की गुमटी पर  उन दोनो बच्चों को  भरपेट  खाना खिलाया ।  आखिर  बच्चों मे ही भगवान  का वास है
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प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

टिंकपिका के जादूगर के सैनिक और नन्ही चुनमुन

 



 चुनमुन ने जबसे "टिंकपिका का जादूगर"  कहानी अपनी माँ से सुना था, तबसे  उसको ऐसा लगता था  जैसे उसे कोई कह रहा है कि जरा सावधान हो जाओ, टिंकपिका के जादूगर  के सैनिक  तुम्हारे आसपास  ही हैं ।  चुनमुन  सब प्रकार से सावधान  रहने की कोशिश  कर रही  थी ।    यह चेतावनी उसे बार  बार फिर  भी मिलती हुई महसूस  होती थी ।  वह किसी अजनबी से बातचीत  नहीं करती है ।   स्कूल  का होमवर्क  तो वह खुद  ही करती है।   बाबा जी से या सुयश भैया से ही कभी कभार  मदद  ले लेती थी,  उसमे नन्ही चुनमुन  को कोई  गलत बात नजर नहीं आती थी ।  आखिरकार  ये लोग  टिंकपिका के जादूगर के सैनिक हैं तो कहाँ है यह बात  चुनमुन  रोज सोंचती रहती थी।

पिछली रात को चुनमुन सोते से जाग गई।   उसके दाँतों मे बहुत दर्द  हुआ।  वह  मम्मी के पास  ही सो रही थी।  उसने अपनी माँ को जगाकर  कहा मम्मी मेरे दाँतों बहुत  दर्द  हो रहा है ।   मम्मी ने उसका मुंह  साफ कराया तथा कुछ दवा देकर  किसी प्रकार  चुनमुन  को सुलाया।   दूसरे दिन उसकी मम्मी,  सुबह  सुबह  दाँत  के डाक्टर  के पास नन्ही चुनमुन  को लेकर गईं ।  नन्ही चुनमुन  को वैसे ही डाक्टर  के नाम  से डर लगता है ।   दाँत  के डाक्टर  के पास  उनके उपकरणो को देखकर चुनमुन  के छक्के छूट गये । 


    डॉक्टर  साहब  ने नन्ही चुनमुन  को एक ऊँची चेयर पर बैठाकर उससे दोस्तों की तरह  बर्ताव  करना शुरू  किया ।   उसका नाम पूछा  फिर  उसके दोस्त लोगो के बारे मे पूछा ।   जब  चुनमुन ने अपने को एडजस्ट  कर लिया,  तब डाक्टर  साहब  ने  उससे पूछा  कि क्या उसे चाकलेट  टाफी मिठाई आदि बहुत पसन्द  है ।   नन्ही चुनमुन  ने कहा जी हाँ  ।   इतना सुनकर  डॉक्टर  बोले तुम्हारे कई दाँतो पर  कीटाणुओं का हमला हो गया है ।   क्या तुम्हे किसी ने सावधान  नही किया था।  चुनमुन  बोली  कोई  मुझे सपने मे सावधान  कर रहा था कि टिंकपिका के जादूगर  के सैनिक  आसपास  है और वे किसी समय हमला कर सकते है पर मुझे दाँतों पर हमले की बात  समझ  मे नही आई थी । डॉक्टर  ने चुनमुन  को  समझाया कि  अधिक  टाफी , मिठाई इत्यादि नहीं खानी चाहिए।   दाँतो को हमेशा साफ रखना चाहिए ।  हर बार  खाने के बाद  अच्छी तरह  से दाँत और  मुह  धोना चाहिए और सुबह-शाम  ब्रश करना चाहिए ताकि फिर  टिंकपिका के जादूगर  के सैनिक  तुम्हे परेशान  नहीं कर सकें ।   नन्ही चुनमुन  ने सिर  हिलाकर डॉक्टर से प्रामिस  किया  कि वह चाकलेट टाफी मिठाई अधिक नही खाएगी और डॉक्टर साहब की बताई सब  बातों का ख्याल रखेगी ।  डाक्टर साहब भी नन्ही चुनमुन  की प्यारी बातें सुनकर  बिना मुस्कराए नहीं रह सके।





शरद कुमार श्रीवास्तव 

नई सीख (बाल कविता) : मंजू यादव

 



मेरे पड़ोसी गोरे लाल,

पके हुए हैं उनके बाल।

डाइ लगाकर काला करते।

बच्चे उनसे बहुत ही डरते।

काला रंग है,कद के छोटे।

निकला पेट ,हैं वो कुछ मोटे।

पेशे से हैं वो हलवाई।

खुद भी खाते दूध,मलाई।।

करते तनिक न वो व्यायाम,

थक कर कहते हाय राम।।

भारी भरकम हुआ शरीर,

लग गए रोग कई गम्भीर।।

पकवानों में करें मिलावट।

रंग मिलाकर करें दिखावट।


हम बच्चों का जी ललचाते,

रोज़ नए पकवान बनाते।


कभी,कभी बाहर का खाए,

घर पर माँ से ही बनवाये।।


ऐसे मिलेगी निरोगी काया,

नहीं पड़ेगी रोगों की छाया।।


 


मंजू यादव

काश कि आसमान से बरसते होते पैसे : अंजू जैन गुप्ता




 










 


अंजू जैन गुप्ता

"बादल" "रोला छंद"

 


धरती करे पुकार, जरा पानी बरसाओ।
बादल सुन लो बात, नहीं तुम अब तरसाओ।।
तड़पे सारे जीव, कहाँ से प्यास बुझाये।
जल जीवन आधार, नीर बिन सब मर जाये।।

सूरज दादा रोज, तेज गरमी फैलाते।
बचता थोड़ा नीर, उठा उसको ले जाते।।
सूखा पन संसार, देख लो इसकी हालत।
बरसाओ अब नीर, पड़ी है धरती लालत।।

बादल की बौछार, सभी जग आस लगाते।
होता मन बेचैन, नहीं जब नीर बहाते।।
ठूँठ पड़े हैं पेड़, जरा हरियाली लाओ।
भर दो इसमें जान, आज तुम इसे बचाओ।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

शनिवार, 16 अप्रैल 2022

चुटकुले अंतर्जाल से संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव

 


1 शिक्षक  छात्र  से : तूने  मेरा  दिमाग  खराब  कर दिया  है । अपने पिता  को  बुलाकर  लाना   मै तेरे  पिता  जी  से  मिलूंगा

छात्र  :  पिता  जी को नहीं  ताऊ को  लाऊंगा दिमाग  के  डाक्टर  ताऊ है पिताजी  नहीं
  
सही पेशकश 

😁😄😃😀😆😁😄

2  नर्सरी स्कूल की कैंटीन में...

 *वहाँ सेब की एक टोकरी है, जिसके ऊपर एक नोटिस लिखा हुआ था:*

 *"एक से ज्यादा मत लो, भगवान देख रहा है।"*

 *दूसरे काउंटर पर चॉकलेट का डिब्बा था,*

 *एक छोटे बच्चे ने जाकर उस पर लिखा।*

 *"जितना चाहो ले लो, भगवान सेब देखने में व्यस्त है।"...*

 *आज की पीढ़ी के साथ कभी भी स्मार्ट एक्ट न करें..!!*

😁😄😃😀😆😁😄

 

3 बच्चा:- आपके कुछ बाल सफेद क्यों हैं पापा...?*

 *पिताजी:- हर बार जब आप मुझे दुखी करते हैं तो मेरा एक बाल सफेद हो जाता है...।*

 *बच्चा:- अब समझा दादाजी के सारे बाल सफेद क्यों हैं...?*

 *नैतिक शिक्षा:- ज़रूरत से ज्यादा स्मार्ट न बनें...।*


😆😁😄😃😀😅

 


4 बच्चा : माँ, गाँधी जी के सर पर बाल क्यों नहीं हैं...?*

 *मम्मी : क्योंकि वो सच ही बोलते थे...।*

 *बच्चा : अब मुझे समझ में आया कि महिलाओं के बाल लंबे क्यों होते हैं...।*


 *जवाब नहीं, इसका।*


😆😁😄😃😀😆😁

 

5  शिक्षक: तुम्हारे पिता कितने साल के हैं?*

 *बच्चा: वह ६ साल के हैं ।*

 *शिक्षक: क्या?  यह कैसे संभव है?*

 *बच्चा: मेरे पैदा होने पर ही वह पिता बने।*

 *वाज़िब तर्क !!👌😳*


 

😛😆😁😄😃😅

"जय श्री राम" रचना प्रिया देवांगन प्रियू



मन से करो आराधना, प्रभु राम सब के साथ हैं।।
हैं सत्य के वे देवता, सिर पर रखे जो हाथ हैं।।
आगे बढ़ाना धर्म को, मन में सभी ये ठान लो।
छाये नहीं अंधेर तब, श्री राम को पहचान लो।।

मानव सुनो ये बात को, शिव राम दूजे प्राण हैं।
रहते सदा वे साथ में, करते सभी के त्राण हैं।।
देखे जहाँ हनुमान जी, मुस्कात जाते पास हैं।
शिव राम में जो डूबते, करते ह्रदय में वास हैं।।

चल कर  सनातन धर्म में, पाना सिया के राम को।
होगा सफल सब काम जी, आगे बढ़ाना नाम को।।
सुंदर बने ये देह जो, सब ईश के वरदान हैं।
करना नहीं तुम पाप जी, लेते क्षणों में जान हैं।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

बैसाखी का पर्व रचना अंजू जैन गुप्ता

 




अंजू जैन गुप्ता

"दुर्गा माता" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



जोत जलत हे जगमग जगमग, गूँजत हे किलकारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।

लाल लाल चूरी पहिरे अउ, लाली महुर रचाये।
लाली चुनरी ओढ़े माता, मुच मुच ले मुस्काये।।
सरग उपर ले दुर्गा दाई, बघवा करे सवारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।

महाकाल अउ राम चंद्र जी, हर दुर्गा स्तुति गावै।
नारद मुनि सँग सबो देवता, माथा अपन नवावै।।
कुष्मांडा अउ गौरी मइया, सब के हवै दुलारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।

कतको धरती संकट आथे, तुरते ओला टारे।
रूप धरे काली माता के, दानव मन ला मारे।।
करे पाप कलयुग मा मानव, ओखर लाये पारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

प्यारी तितली : शरद कुमार श्रीवास्तव







अम्मा देखो तितली प्यारी
कितनी सुंदर न्यारी न्यारी
हरी लाल नीली चटकीली
डिजाइन वाली पीली पीली

फूलों के ही रंग चुराई
फूलों संग खेलने आई
फूलों जैसी सुन्दर प्यारी
उडती फिरती हर फुलवारी



माँ मुझे तितली बनवादो
प्यारी एक फ्राक दिलादो
सजधज के शाला जाऊँगी
तब खूब पढ़लिख जाऊँगी





शरद कुमार श्रीवास्तव

" विद्यालय का उत्साह " अंजू जैन गुप्ता

 


रोली और विहान आज बहुत खुश हैं।रोली पाँचवी कक्षा में पढती है और विहान पहली(1st) कक्षा में पढता है।

आज जब माँ उन्हें सुबह उठाने जाती है ;तो क्या देखती है कि बच्चे तो अपने बिस्तर पर ही नही है उन्हें वहाँ न पाकर माँ घबरा जाती है  और उन्हें हर जगह खोजना आरम्भ  कर देती है।  तभी रोली पीछे से आ माँ को गले लगा लेती है और माँ भी रोली को स्कूल ड्रैस में देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है।

माँ कहती है अरे ! यह क्या रोली तुम तो विद्यालय जाने के लिए  तैयार भी हो गई ,मैं तो तुम्हे उठाने आई थी और विहान कहाँ है ?वह कहीं नज़र नही आ रहा तभी विहान की आवाज आती है माँ- माँ मैं तो यही हूँ  ,देखो आपके सामने।आज तो मैं भी स्वयं ही  तैयार हो गया हूँ। चलो -;चलो माँ पापा को बोलो हमें  जल्दी से विद्यालय छोड़ दे नहीं तो देर  हमें देर हो जाएगी । आज तो हमे स्कूल जाना है।माँ यह देखकर और सुनकर फूली न समाती कि आज दोनो बच्चे विद्यालय जाने के लिए कितने उत्सुक है और उनके कितना उत्साह भरा हुआ है।आखिर आज बच्चे  पूरे दो साल के बाद विद्यालय जाएँगे ।

माँ कहती है कि विहान बेटा अभी तो विद्यालय जाने मे समय है , आओ तब तक मै तुम दोनो को कुछ महत्वपूर्ण बातें बता देती हूँ।

कुछ नियम है जिनका तुम्हे रोज पालन करना है। माँ की बात रोली और विहान कहते है कि, हाँ -हाँ माँ आप बताओ विद्यालय जाने के लिए तो आप  जो भी कहोगी हम सब करेगे ।

माँ कहती है कि बच्चो तुम्हें पता है न कि कोरोना  की वजह से ही सभी विद्यालय बन्द  हो गए थे और सभी की कक्षाएँ भी आनलाइन हो रही थी किन्तु अब जैसे जैसे कोरोना का प्रकोप  कम हो रहा है तो सभी विद्यालय धीरे- धीरे खुलते जा रहे है; किन्तु अभी भी कोरोना पूरी तरह  से समाप्त नही हुआ है इसलिए तुम दोनो को कुछ  नियमो का पालन करना पड़ेगा।जैसे-

* विद्यालय मे हर समय मास्क पहन कर रहना होगा।

* अपने साथ सैनिटाइजर रखना होगा और  जरूरत पड़ने पर हाथों को सैनिटाइज करना होगा।

* कुछ भी खाने से पहले और बाद मे हाथों को अच्छे से धोना होगा।

* एक दूसरे से थोड़ी दूरी बनाए  रखनी होगी।

* अपना टिफिन और पानी किसी से बाँटना  नही होगा।

 * तभी विहान बोल पड़ता है कि माँ आप ही तो कहती थी हमें  ( share)शेयर  करना चाहिए। (sharing )  शेयरिंग करना अच्छी बात है और अब आप ही ऐसा करने से मना कर रहे हो तभी रोली कहती है अरे बुदधु !  तुझे इतना भी नही पता कि कोरोना तो एक दूसरे को छूने से ही फैल जाता है अगर किसी को होगा तो हमे भी हो जाएगा तभी तो माँ हमे शेयरिंग करने के लिए मना कर रही है।

रोली की बात सुनकर माँ कहती है ,हाँ विहान बेटा रोली ठीक ही कह रही है और ऐसा सिर्फ थोड़े समय के लिए ही ऐसा करना है।

कुछ समय बाद जब तुम सब बच्चो को भी वैक्सीन लग जाएगी व  कोरोना का प्रकोप भी पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा तब तुम सब पहले की तरह  शेयरिंग भी कर सकते हो और मस्ती भी।

माँ की बात पूरी होते ही विहान कहता है , हाँ जी मम्मा हम सब बातों का ध्यान  रखेंगे और  सारे नियमों का पालन भी करेंगे। अब जल्दी से पापा को बोलो कि हमे विद्यालय छोड़  आए।विहान की बात सुनकर माँ बोलती है कि अरे मेरे नन्हे-  मुन्ने , प्यारे -प्यारे बच्चो पहले नाश्ता तो कर लो तभी  तो विद्यालय मे पूरे दिन पढ़ने व मस्ती  करने के लिए तुम्हें एनर्जी  मिल पाएगी।

माँ की बात सुनकर दोनो जल्दी से नाश्ता कर लेते है और तुरंत हीअपने पापा के साथ  विधालय के लिए  निकल पड़ते है।



अंजू जैन गुप्ता

गुरूग्राम

बाल रचना/तीतर-बटेर! : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 


एक  दिवस तीतर बटेर  में

बहस   छिड़    गई    भारी

मैं तो  हूँ  बलशाली  तीतर

तू          बटेर        बेचारी।


मुझको  बेचारी मत कहना

मैं     हूँ   सब   पर    भारी

अरे   घमंडी    तीतर   तेरी

मती     गई     क्या   मारी।


तेरी  मादा   को   बंधन  में

रखता      रोज़     शिकारी

उसके  पीछे  दौड़  लगाना

 है           तेरी      लाचारी।


मुझे पालने  वाला  मुझको

रखे     जान     से    प्यारी

धन के लालच में लड़वाता

तुझको     सदा     जुआरी।


चुपके-चुपके  हमें  पकड़ने

आता       यहां     शिकारी

हमें पकाकर  खाते अक्सर

सब    घर    के    नर-नारी।


वैर  भाव  को  भूल  बढ़ाएं

इक     दूजे      से      यारी

बोला  तीतर   यूं  बटेर   से

सुन    ले    बात     हमारी।


(नोट तीतर  का शिकार  अपराध की श्रेणी मे आता है  संपादक)




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        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            9719275453

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"कैसे दूँ बधाई" आज दिनांक 06 /04 को दिवंगत महेंद्र सिंह देवांगन माटी के जन्मदिन पर एक श्रद्धांजलि : रचना प्रिया देवांगन प्रियू

 


साल जन्म दिन आये जब भी, यादें बहुत सताती है।
चित्र देख कर पापा मेरी, आँखे नम हो जाती है।।

विद्यालय से वापस आते, राह ताँकती रहती थी।
जल्दी आओ पापा मेरे, फोन लगा कर कहती थी।।
कहाँ गया अब वो सारा दिन, यादें बहुत रुलाती है।
चित्र देख कर पापा मेरी, आँखे नम हो जाती है।।

केक सजा कर रखती थी मैं, मिलकर साथ मनायेंगे।
हाथ पकड़ कर काटेंगे हम, खुशियाँ भी फैलायेंगे।।
हँसने की आवाज आपकी, सुनने को तरसाती है।
चित्र देख कर पापा मेरी, आँखे नम हो जाती है।।

मिला प्यार जितना तुम से भी, दिल में मैं संजोती हूँ।
नयन बन्द कर मैं भी पापा, सपनों में भी रोती हूँ।।
साथ रहे जब बेटी पापा, घर में खुशियाँ लाती है।
चित्र देख कर पापा मेरी, आँखे नम हो जाती है।।

जन्म बधाई कैसे दूँ मैं, बैठे सोंचा करती हूँ।
नहीं दिखाई देते फिर भी, मन में आँहे भरती हूँ।।
जब-जब कविता लिखती हूँ मैं, याद तुम्हारी आती है।
चित्र देख कर पापा मेरी, आँखे नम हो जाती है।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

आँखें रचना प्रिया देवांगन प्रियू

 


मिलकर रहते हैं नयन, इक दूजे के संग।
हर पल करतें प्यार वो, यही हमारे अंग।।

लगे चोट गर देह को, बहाती आँखें धार।
बिन इसके जीवन नहीं, सूना यह संसार।।

देख किसी इंसान को, जाती है पहचान।
अच्छे साथी का सखी, करती है सम्मान।।

कितनी भी मुश्किल रहे, सहती फिर भी भार।
करती हैं ये सामना, नहीं मानती हार।।

आओ साथी हम सभी, सीखें रहना साथ।
जीवन आये दुख कभी, छोड़ें कभी न हाथ।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

चलो चलें स्कूल! वीरेन्द्र सिंह बृजवासी की रचना



गोलू, मोलू , छोटू,गुड़िया

चलो        चलें      स्कूल

सभी किताबें रखें बैग में

पोंछ      पोंछकर    धूल।


टीचरजी के लिए ले चलें

सुंदर    -   सुंदर      फूल

हाथजोड़कर करें प्रार्थना

नहीं       मारना      रूल।


करी पढ़ाई  लैपटॉप  पर

गए    सभी    कुछ   भूल

टीचरजी मुस्काकर बोलीं

तुम  हो  बिल्कुल    फूल।


गली-गली में  कोरोना के

बिछे      हुए     थे    शूल

फूल रहींथीं सांसें सबकी

मौसम     था    प्रतिकूल।


सुनी तुम्हारी  भी  ईश्वर ने

खोल       दिये        स्कूल

मास्कलगा निश्चित दूरीपर

डालो       सब        स्टूल।




       -------💐--------

         वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

             9719275453

नन्ही चुनमुन का स्कूल का पहला दिन : रचना शरद कुमार श्रीवास्तव





 नन्ही चुनमुन का स्कूल  का पहला दिन

दो वर्ष  के लाॅकडाउन के बाद नन्ही चुनमुन का   स्कूल आज खुला ।   उसके पिछली क्लास  के  कई बच्चे नहीं आए थे ।   इनिका  के पापा दूसरे शहर चले गये थे , अर्नव  दूसरे स्कूल  मे चला गया धा  ।   पुराने दोस्तो मे अनेकों के बारे मे कुछ  पता नहीं है।   चुनमुन के बड़े भाई सुयश भी इसी स्कूल  मे है  लेकिन उनकी कक्षा  गत् मास से ही चल रहीं है और वे स्कूल  की दूसरी बिल्डिंग  मे पढ़ते हैं।

कुछ पुराने दोस्तों के मिलने पर चुनमुन  को बहुत  खुशी हुई ।   स्कूल प्रबंधन  का स्कूल  खोलने का यह आकस्मिक  निर्णय  था अतः कोई विशेष  तैयारी नही थी  टीचर्स  भी कम थीं गत वर्ष की उसकी क्लास  टीचर आयशा मैम की शादी हो गई  थी  नईवाली जैन मैम को कक्षा के बच्चो के बारे मे पता नही था  इसलिए आज उनका  समय  बच्चों  के साथ  बातचीत  करने मे लगा ।   जैन मैम बहुत  प्यारी हैं चुनमुन  को वो और उनको चुनमुन  बहुत  पसन्द  आईं।

चुनमुन ने बताया कि उसके क्लास  का एक बच्चा शाश्वत  पेन्सिल  बाक्स  भूल आया था।  उसने स्कूल  आते समय  बैग चेक  किया था फिर  भी उसने नोटिस  नहीं किया था कि उसमे पेन्सिल  बाक्स है कि नहीं ।  नई मैम ने फिर  क्लास  से शाश्वत  की सहायता के लिए  कहा तो  चुनमुन  ने झटपट  अपने साथ  की अतिरिक्त  पेन उसे लिखने के लिए दे दी।  

मैम  इस बात  से बहुत खुश  हुईं।   चुनमुन  की तत्परता, सहयोग और  लीडरशिप  देखकर  उसे क्लास  का माॅनीटर बना दिया।  चुनमुन  बहुत  खुश  हुई और उसके दिल  मे खुशी  की एक लहर दौड़ गई। 






शरद कुमार श्रीवास्तव