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बुधवार, 6 अप्रैल 2022

बाल रचना/तीतर-बटेर! : वीरेन्द्र सिंह बृजवासी

 


एक  दिवस तीतर बटेर  में

बहस   छिड़    गई    भारी

मैं तो  हूँ  बलशाली  तीतर

तू          बटेर        बेचारी।


मुझको  बेचारी मत कहना

मैं     हूँ   सब   पर    भारी

अरे   घमंडी    तीतर   तेरी

मती     गई     क्या   मारी।


तेरी  मादा   को   बंधन  में

रखता      रोज़     शिकारी

उसके  पीछे  दौड़  लगाना

 है           तेरी      लाचारी।


मुझे पालने  वाला  मुझको

रखे     जान     से    प्यारी

धन के लालच में लड़वाता

तुझको     सदा     जुआरी।


चुपके-चुपके  हमें  पकड़ने

आता       यहां     शिकारी

हमें पकाकर  खाते अक्सर

सब    घर    के    नर-नारी।


वैर  भाव  को  भूल  बढ़ाएं

इक     दूजे      से      यारी

बोला  तीतर   यूं  बटेर   से

सुन    ले    बात     हमारी।


(नोट तीतर  का शिकार  अपराध की श्रेणी मे आता है  संपादक)




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        वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

            9719275453

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