बुधवार, 26 अप्रैल 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना : बन्दर मामा की बारात





बन्दर मामा की शादी

बन्दर मामा पहन सूट वे निकले ले बारात
हाथी घोडा बैन्ड बाजा सब थे उनके साथ
सब बन्दर नाचते गाते बहुत हो गई थी रात
दूल्हन के घर जा पहुँचे भइया लेकर बारात

दूल्हन देख ललचाऐ मामा खम्बा देख न पाये
अपने बूट मे फँसे बिचारे गिरे वहीं छितराय
दूल्हन ने जो देखा मामा को रही जरा चकराय
गालो मे पालिश ,कमर मे टाई, शादी कौन रचाऐ


                                  शरद  कुमार  श्रीवास्तव  

 गुंजिका कौशिक का बालगीत : बेटियाँ




बेटियाँ 

फूलों की तरह खिलती है।
जीवन में अनेक रंग भर देती है।
खुद एहसास नहीं किया मैंने ,
पर पापा कहते है कि बेटियाँ ऐसी ही होती है। 
प्यार भरा तोहफा होती हैं

हमारी जिंदगी की माला का सबसे प्यारा मोती हैं ,
एक नई दुनिया बसा देती है अपने आस पास ,
कहते है बेटियाँ ऐसी ही होती है।  
माँ की खुशियों की तिजोरी होती है।

पापा की राजकुमारी होती है। ,
पूरे परिवार को अपना बना लेती है। ,
बेटी नन्ही परी कहलाती है।
बेटों से प्यारी होती है बेटियाँ 
सबकी दुलारी होती है बेटियाँ ,
दिल में घर बना लेती हैं ,
ऐसी ही होती  है  बेटियाँ।

                        गुंजिका कौशिक
                       कक्षा नौ ( ब)
                       एमिटी इन्टरनेशनल स्कूल
                        गुरुग्राम




अंजू निगम की कहानी :



मौली एक  बहुत प्यारी बच्ची हैं| गोल-मटोल गुड़िया की तरह,जो  उसे देखता खुब स्नेह बरसाता| 
  अपने मम्मी-पापा की इकलौती बिटिया| लाड़-प्यार तो खूब मिलता हैं पर वो निहायत अकेली हैं|
  पापा ही ज्यादातर उसे संभालते| मम्मी तो किसी बहुत ऊँचे पद पर काम करती हैं| घर पर भी रहती तब भी उन्हें मौली से ज्यादा मतलब नहीं रहता बस जरा सा दुलार कर लेती| घर पर मम्मी या तो टी़वी से चिपकी रहती  या मोबॉइल से| पापा ही उसे बहलाते थे |
     अक्सर उसकी देखभाल के लिये दादी, मौसी या नानी आ जाते| वे सब उसे खूब  प्यार करते| पर माँ का प्यार तो फिर भी नहीं मिलता|
    मौली चाहती कि और बच्चोंबगगग की मम्मी की तरह उसकी मम्मी भी उसके लिये मजेदार टिफिन बना कर दे| पर माँ के पास तो टाइम नहीं था| न उसे खाना बनाने का कोई शौक था|
    जब खाना पकाने वाली नहीं आती तो होटल से खाना आ जाता| मौली चुप सी रहने लगी थी| ये बात दादी ने समझ ली थी| उन्होनें मौली की मम्मी को कहा भी| पर उन्हें तो अपनी नौकरी प्यारी थी| उन्होनें यहाँ-वहाँ की बात बनाकर बात को वही  खत्म कर दिया|
   उस दिन मौली का रिर्पोट-कार्ड आया| मौली के मम्मी -पापा को स्कूल बुलाया गया था| मौली पढ़ाई में पिछड़ रही थी| कोई प्रश्न पूछने पर उसका उत्तर भी नहीं देती| अक्सर गुमसुम सी एक जगह बैठी रहती|
  मौली के पापा को मामले की गंभीरता समझ आयी| प्यार से मौली से बात की|
"उसी को नौकरी करने वाली मम्मी क्यों मिली?और सहेलियों की मम्मी की तरह उसकी मम्मी क्यों नहीं बढ़िया टिफिन बना कर उसे दे पाती?" कह कर मौली खूब रोयी|
    उस दिन के बाद से मौली की मम्मी ने मौली पर ध्यान देना शुरु कर दिया| सुबह जल्दी उठ कर वे मौली का टिफिन बनाती| मौली के पापा उनकी मदद करते| क्योकिं मौली की मम्मी को तो ज्यादा कुछ बनाना आता ही नहीं था| धीरे-धीरे वे अच्छा खाना बनाना सीख गयी|
     आज मौली बहूत खुश हैं| बच्चों की मम्मी की कुकिंग प्रतियोगिता में मौली की मम्मी को प्रथम पुरस्कार जो मिला हैं|


                               अंजू निगम
                                इंदौर 

प्रिया देवांगन का बालगीत : गर्मी की छुट्टी





स्कूल की अब हो गई छुट्टी 

धमा चौकड़ी मचा रहे हैं ।

दिन भर नाचे कूदे बच्चे 

मम्मी पापा को सता रहे हैं ।


नहीं सोते दोपहर में भी 

टी वी मोबाइल चला रहे हैं ।

तेज आवाज में गाना बजाकर 

हो हल्ला मचा रहे हैं ।


आइसक्रीम वाले आते ही

दौड़ के सब जा रहे हैं ।

रंग बिरंगे फ्लेवर लेकर 

बड़े मजे से खा रहे हैं ।

 


प्रिया देवांगन "प्रियू" 

गोपीबंद पारा पंडरिया 

जिला -- कबीरधाम  ( छ ग )

Email --priyadewangan1997@gmail.com




( नन्हीं चिंड़िया)

नन्हीं चिंडिया मां से बोली,
मां मुझको भी सिखलाओ,
करूं सैर मैं दुनियां की भी,
दूर गगन में भी उड़ जाऊं,
मां बोली अभी हो तुम नन्हीं ,
पंख जरा तुम उग आने दो,
लाई मैं दाना दूर दूर से ,
चुन चुन दाना तुम खाओ,
नन्हीं चिंडिया मां से बोली,
मां मुझको भी सिखलाओ,.....
उगने लगे जब पंख देखकर,
नन्हीं चिडिंया फिर से बोली,
दाना चुनने चलूं साथ मैं,
साहस भी मैं  दिखलाऊं,
फुदक फुदक लगी झूमने,
लगी खुशी से भी उड़ने,
नन्हें पखों को फैलाकर,
चली सैर गगन की करने,
दाना चुनने लगी है चिड़िया,
मां बोली अब उड़ जाओ,
नन्हीं चिंडिया मां से बोली,
मां मुझको भी सिखलाओ,


                             भुवन बिष्ट
                              रानीखेत (उत्तराखण्ड)



दादा की टोपी
  

       सरर - सरर हवा चली,
       बात थी अनोखी।
       मेले में दादा की,
       उडी नई टोपी।

        चिनियां को साथ लिये,
         दादाजी भागे।
         दौड़ रहे पीछे वे,
         टोपी थी आगे।
         आई हंसी दादी को,
         मुश्किल से रोकी।

         टोपी यह ढीली सी,
         पापा क्यों लाये।
         दादाजी अम्मा पर ,
         जी भर चिल्लाये।
         गलती यह सब की सब,
         पापा पर थोपी।

          दादी को अम्मा को,
          जी भर फटकारा।
          पापा के पास नहीं,
          कोई था चारा।
          कहते हैं घर भर की
         अक्ल बहुत मोटी।


प्रभुदयाल श्रीवास्तव
               12, शिवम सुन्दरम  नगर छिन्दवाड़ा 
                मध्य  प्रदेश 

डॉ प्रभास्क पाठक का बालगीत : गीत बन जाता







सुनी कहानी नानी से 
दादी ने गीत सुनाया,
माँ की लोरी सुनकर ही
आँखों ने नींद चुराया  !
रोज सबेरे दादा जी 
सुंदर श्लोक सुनाते,
खा-पीकर अपने कंधे
नित खलिहान धुमाते !


पशु-पक्षियों,फूलों से 
परिचय होता रोज ,
बादल,बिजली,तारे देखा
करता नूतन खोज !
कभी सोचता पक्षी बन
करूँ हवा की सैर,
कभी सोचता फूल बनूँ
महकूँ जग में बिन वैर !
दादा-दादी ,नाना-नानी
बनते जाते एक कहानी,
मैं बन जाता गीत कहीं तो
चमन रचाता फिर मधुवाणी !

                              डॉ प्रभास्क पाठक 
                              रांची  झारखंड 

ठंडा है मटके का पानी (बाल कविता) सुशील कुमार शर्मा



गरम धूप में शोर मचाएं
मुन्नू टिल्लू रोते आएं
माँ नानी उनको पुचकारे
जोर जोर से हंसती रानी
ठंडा है मटके का पानी

गई परीक्षा गर्मी आई
नानी ने मंगवाई मिठाई।
धमा चौकड़ी करते भाई।
नानी की न कोई सानी
ठंडा है मटके का पानी।

पुस्तक कापी कौन पढ़े अब।
बच्चों के पीछे हैं पड़े सब।
मौका ऐसा किसे मिले कब।
अब तो छुक छुक रेल चलानी।
ठंडा है मटके का पानी।

शहर छोड़ नानी घर आये।
कूद नदी में खूब नहाए।
पत्थर मार आम गिराए।
नानी से सब सुनी कहानी।
ठंडा है मटके का पानी।

नानी का घर स्वर्ग के जैसा
मिलती मस्ती मिलता पैसा
नाना है तो अब डर कैसा।
नानी जैसा न कोई दानी।
ठंडा है मटके का पानी

                       सुशील शर्मा

अर्पिता अवस्थी की रचना :4: लोमड़ी की चतुराई


 

एक जंगल मे गोपू नामक शेर रहता था.
बहुत दिन बीते राज करते करते और बाकी जानवरो को डराते डराते पर अब जब वो बूढ़ा होगया तो कोई उसकी नही सुनता था यहां तक कि छोटे- छोटे खरगोश और चूहे भी नही,  एक दिन गोपू ने सारे जानवरो को सबक सिखाने के लिये  एक तरकीब सोची  उसने दावत का लालच देकर जंगल के सारे लोगो को बुलाया. अच्छा -अच्छा खाने के लालच मे सब उसकी सभा मे पहुंच गये लेकिन लोमड़ी जानती थी जब राजा के पास खाने के लिये नही है तो दावत क्या देगा? जरुर कुछ दाल मे काला है,  लोमड़ी सही थी  दरसअल शेर ने दूसरे जंगल के शेरो को न्यौता दिया था, वहां आये कुछ जानवरो का गोपू ने साथियो की मदद से भक्षण कर लिया.  फिर भी लोमड़ी शेरो की दावत मे पहंच गई और मुस्कुरा कर शेर के सामने आई और बोली "श्रीमान आप  जल्दी से मुझे खा लीजिये" उसकी बात सुन कर गोपू और बाकी शेर चकित रह गये फिर गोपू ने पूछा "सभी भय से कांपते हुऐ प्रार्थना कर रहे है कि मुझे मत खाओ और तू  ऐसा कह रही है, माजरा क्या?" लोमड़ी ने बड़ी विनम्रता से कहा  "श्रीमान दरसअल बहुत से शिकारी बन्दूक लेकर यहीं आरहे है हम सबको पकड़ कर सरकस मे नाच नचाने के लिये, सरकस मे गुलाम बन कर तमाशा करने से अच्छा है कि मै जंगल के र‍ाजा का भोजन बन जाऊ." शिकारियो का नाम सुनते ही सभी शेर अपने - अपने जंगल की तरफ भाग गये. 
बेचारे गोपू का मुंह देखने लायक था जब
लोमड़ी हंस पड़ी क्योकि वहां कोई शिकारी नही आया, जान बचती देख कर सभी जानवर लोमड़ी की बुध्दिमत्ता से  प्रसन्न हुऐ और उसे जंगल की रानी बना दिया 

                     अर्पिता  अवस्थी
                     बर्रा  कानपुर 
                     raressrare@gmail.com

रविवार, 16 अप्रैल 2017

उपासना बेहार की बालकथा: अंगूर मीठे हैं



अंगूर मीठे हैं

एक लोमड़ी थी, जो शहर में अकेले रहती थी। एक दिन उसे अपने परिवार की बहुत याद आयी। उसने सोचा कि बहुत दिनों से उनसे नही मिली है, जाकर मिलना चाहिए। लोमड़ी तुरंत जंगल की ओर चल पड़ी। जंगल के रास्ते में उसे अंगूर से लदा पेड़ दिखायी दिया। अंगूर के पेड़ को देखते ही उसे वो कहावत याद आ गई जो लोमडि़यों के मुर्खता पर बनी थी कि ‘‘अंगूर खट्टे हैं’’। इसी कहावत को लेकर लोमडि़यों की हमेशा खिल्ली उडाई जाती है। तभी से आज तक कोई लोमड़ी यह जान नही सकी कि अंगूर का असली स्वाद कैसा होता है।
उसने सोचा कि ‘ये अच्छा मौका है, मैं अंगूर खा कर उसका स्वाद पता करूँ और हमेशा के लिए इस कहावत का अंत कर दूँ साथ ही लोमड़ी जाति पर लगे इस कलंक को हटा दूँ।’ लेकिन अंगूर तो पेड़ में ऊंचाई पर लगे थे, उसे तोड़ा कैसे जाये? यह बात लोमड़ी के समझ में नही आ रही थी। उसको याद आया कि उसके पूर्वजों ने पेड़ की ऊॅची टहनी पर लगे अंगूर को उछल कर तोड़ने की कई बार कोशिश की थी, अंगूर तो टूटे नही बल्कि उनके दांत जरुर टूट गये। लोमड़ी ने सोचा ‘यह तरीका तो खतरनाक है, इससे तो अपने आप को ही चोट लगती है। मुझे कुछ नया सोचना होगा।’


तभी वहाँ एक गिलहरी आयी, उसे देखते ही लोमड़ी ने सोचा मुझे इसकी मदद लेनी चाहिए, लोमड़ी ने कहा ‘गिलहरी बहन मेरी मदद करो, और मुझे अंगूर तोड़ कर दे दो ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगीं।‘ गिलहरी ने कहा ‘‘लोमड़ी दीदी मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती क्योंकि मेरे बच्चे बहुत देर से भूखे है, मुझे उन्हें खाना खिलाना है.’’ यह कह कर वह तेजी से पेड़ पर बने अपने घर में घूसने लगी। लोमड़ी ने कहा ‘अच्छा बहन तुम तो इस पेड़ में रहती हो तो तुम्हे तो पता होगा कि अंगूर का स्वाद कैसा होता है, मुझे कम से कम उसका स्वाद तो बताती जाओ.’ गिलहरी ने कहा ‘दीदी इसके स्वाद को बताया नही जा सकता, जो खाता है उसे ही पता चलता है।‘ और वह घर के अंदर चली गई।

तभी पेड़ पर एक चिडि़या आ बैठी, लोमड़ी ने प्रेम से कहा ‘चिडि़या बहन अपने नुकीले चोच से अंगूर की एक डाली तोड़ कर मुझे दे दो, ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगीं’। चिडि़या ने कहा ‘मैं छोटी सी जान, मुझसे नही होगा ये कठिन काम।’ और यह कह वह फुर्र हो गई।




लोमड़ी सोचती रही कि क्या किया जाये तभी उसे एक बिल्ली पेड़ की तरफ आती दिखायी दी, जैसे ही बिल्ली पेड़ के थोड़े पास आयी वहाँ लोमड़ी को खड़े देख वह बहुत घबरा गई और सर पर पैर रख कर भागी, लोमड़ी ने उसे भागते देखा तो अपनी आवाज को नरम करते हुए कहा ‘बिल्ली रानी भागो मत, मैं तुम्हें नही खाऊॅगी, मेरी थोड़ी सी मदद कर दो, तुम तो पेड़ में चढ़ सकती हो, मुझे अंगूर तोड़ के दे दो, ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगी’। बिल्ली ने सोचा ‘लोमड़ी है बहुत चालाक, कर रही मीठी मीठी बात, फंसना नहीं मुझे उसके जाल में’, उसने कहा ‘लोमड़ी बहन मेरे पैर में चोट लगी है, मैं पेड़ पर नही चढ़ पाऊॅगी। हाथी दादा इसी तरफ आ रहे हैं आप उनसे मदद मांगे।’ और वह तेजी से भाग गई.


थोडी देर में ही हाथी पेड़ के पास पँहुचा। लोमड़ी ने कहा ‘हाथी दादा आप अपनी सूड से पेड़ की टहनी हिला दो, ताकि मैं अंगूर खाऊंगी, उसका स्वाद जानुगीं और अपने जाति पर लगे कलंक को मिटाऊॅगी’। हाथी दादा बोले ‘मुझे लगी है बहुत प्यास, मैं जा रहा हूँ झील के पास, तुम्हारी मदद के लिए समय नही है मेरे पास।’ यह कह कर हाथी दादा धम धम करते हुऐ वहाँ से चले गये।
लोमड़ी ने सोचा कोई किसी की मदद नहीं करता मुझे अपनी मदद खुद करनी होगी, पर कैसे करे? बहुत देर तक लोमड़ी खडे़ खडे़ अंगूर तोड़ने के उपाय सोचती रही, तभी उसे याद आया कि शहर में उसने एक बार देखा था कि एक बच्चे को ऊॅची दिवार पर चढ़ना था, तो उसने कई सारे पत्थर एक के ऊपर एक रखे और फिर वह पत्थरों के ऊपर चढ़ कर दिवार पर चढ़ गया।

लोमड़ी दीदी का दिमाग चल गया, उसने तुरंत आसपास से बहुत सारे पत्थर इक्टठे किये और उसे एक के ऊपर एक रखा, फिर उन पत्थरों पर चढ़ गयी और टहनी के करीब पहुँच गयी. उसने अपने पंजे को जोर से टहनी पर मारा जिससे बहुत सारे अंगूर नीचे गिर गये। लोमड़ी ने गिरे अंगूर में से एक अंगूर खाया और जोर जोर से चिल्लाने लगी ‘हमारे ऊपर लगा कलंक मिट गया, अंगूर खट्टे नहीं मीठे हैं और हमारी इतनी पीढ़ीयां यही सोचती रही कि अंगूर खट्टे हैं। मैं अपने लोगों को ये मीठे अंगूर खिलाऊॅगी।’ और उसने गिरे हुए सारे अंगूर को एक पोटली में बांधा और अपने घर की ओर बढ़ चली, रास्ते में जो भी मिलता वो उसे एक ही बात कहती ‘हमारे ऊपर लगा कलंक मिट गया, अंगूर खट्टे नहीं मीठे हैं।’

उपासना बेहार
ई मेल –upasana2006@gmail.com 

-- त्रिलोक सिंह ठकुरेला का बालगीत : मुर्गा बोला




मुर्गा बोला
मुर्गा बोला- मुन्ने राजा 
सुबह हो गई, बाहर आजा 
कभी देर तक सोना मत 
कभी आलसी होना मत 
पढ़ो, लिखो, जाओ स्कूल
                 इसमे कभी न करना  भूल 



                       त्रिलोक सिंह ठकुरेला

भुवन बिष्ट की रचना :भारत वन्दना




भारत  वन्दना









नवल प्रभात की किरणों से,
फैली है जग में हरियाली,
मानवता ही फैले जग में,
चहुं दिशा में फैले खुशहाली,
राग द्वेष की बहे न धारा,
हिंसा मुक्त हो जगत हमारा,
फैले धरा में अब हरियाली,
भारत -भू में खुशहाली
                             भुवन बिष्ट
                             रानीखेत

शादाब आलम की रचना : जादूगर जी




जादूगर जी



जादूगर जी जादूगर जी
बस्ता मेरा भारी है
इसे लादकर मुझको, चलने
में होती दुश्वारी है।

मंतर ऐसा मुझे बता दो
पढ़ते ही उड़ जाऊं मैं
पलक झपकते ही बस खुद को
विद्यालय में पाऊं मैं।




                      शादाब आलम

प्रभु दयाल श्रीवास्तव की बालकविता फुल्लू जी




फुल्लूजी



  फुल्लूजी को मिले पांच के,
      पांच विषय में अंडे पांच।
     इसी बात पर दादीजी से,
      उन्हें पड़ गई जमकर डाँट।

      वहीँ बड़ी दीदी ने पाया,
      एक विषय में अंडा एक।
    "और परिश्रम कर ले बिटिया,
      दादी बोली उसको देख।

      दुहरी बातें दादी जी की
      नहीं समझ फुल्लू को आई,
     अंडे ज्यादा मिलने पर भी,
      उसको ही क्यों डाँट लगाईं।


     प्रभुदयाल श्रीवास्तवस
     

चुटकुले





चुटकुले

1 मोहन – राम चन्द्र जी, ईसा मसीह, गुरुनानक और गांधी जी में क्या समानता है?
सोहन – वेरी सिम्पल ये सब छुट्टी के दिन ही पैदा हुए थे । 😁😁😁

2 शौर्य – कल्पना करो कि तुम चौथी मंजिल पर हो और एक चील तुम पर झपटने वाली है । तुम पहले क्या करोगे ।
आयुष – सबसे पहले मैं कल्पना करना बंद कर दूँगा । 😅😅😅😅😅

3 रमेश – यार लन्दन में सभी पढ़े लिखे हैं
महेश्री – वह कैसे?
रमेश – वहाँ मजदूर भी अंग्रेजी में बात करते हैं  😇😇😇😇😇

4 राकेश – कोई टीचर ठीक से नहीं बताता है बायो के सर कहते हैं कि सेल के माने कोशिका, हिस्ट्री के सर सेल माने जेल , फिजिक्स के सर सेल के माने बैट्री होती है ।
मुकेश – जबकि सबको पता है कि सेल माने मोबाइल होता है । है ना? 😭😭😭😭😭
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1 राजू – नमन मै कभी झूट नही बोलता हूँ.
नमन – अभी तुम कल ही रामू के आने पर कह रहे थे
कि उससे कह दो कि तुम कहीं बाहर गये हो
राजू – मै झूट नहीं बोलता हूँ लेकिन तुम्हे बोलने की
मनाही नहीं है.

                                  संकलन : शरद कुमार  श्रीवास्तव

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव की रचना : प्रिन्सेज डॉल,  फूल और प्यारी तितली :



प्रिन्सेज डॉल,  फूल और प्यारी तितली

बसंत  का मौसम  था ।   प्रिन्सेज के  बगीचे मे खूब सुन्दर प्यारे प्यारे  फूल खिले हुये थे ।  डाॅल,  स्कूल  जाने से पहले  अपने  बगीचे में  जरूर  जाती थी । फूलों  को हँसता  देख कर  उसको बहुत  अच्छा  लगता  था ।    उसे गुलाब बहुत पसंद  है ।  वह देखने  में  सुंदर  तो है ही उसकी खुश्बू भी   प्रिन्सेज डॉल को  बहुत  पसंद  है  ।  वैसे उसको दूसरे  फूल  भी पसन्द  हैं ।  डाहलिया, गुलदावदी , पैन्जी,  पाॅपी आदि  फूल तो जाड़े के  फूल हैं  जो  प्रिन्सेज डॉल को  पसन्द  है ।    बेले के  फूल तो गर्मियों मे आते हैं   जिसकी  मोहक खुश्बू और सफेद प्यारा  रंग  भी  उसे पसंद  है  ।   परन्तु  गुलाब  के  फूल की  बात   ही  कुछ  और  है  ।   हर  मौसम  में गुलाब  हँसते खिलखिलाते बहुत  प्यारे   नजर आते हैं ।



उस दिन प्रिन्सेज को  बगीचे  में   प्यारी सी  तितलियाँ  भी  दिखाई  दीं  ।    प्रिन्सेज  को  बड़ा  मज़ा  आ गया  ।  वह एक  तितली  के  पीछे  दौड़ी जो  गुलाब  के  फूल  के  ऊपर बैठी थी और  उससे बातें  कर  रही  थी  ।   प्रिन्सेज डॉल को आता देख  कर  वह झट से  उड़ गई । डाॅल उसके  पीछे दौड़  रही थी लेकिन  उसको वह पकड़  नहीं  पा रही  थी ।    इतने मे पीछे  से  किसी  ने आवाज़  लगाई   तो उसने देखा  कि  गुलाब के  फूल  से  से आवाज  आ रही थी ।     गुलाब के  फूल  की  उदासी भी साफ दिखाई  दे  रही  थी  ।     उसकी  दो  चार  पंखुड़ियाँ  झड़ गई  थी   और  गुलाब  का फूल  उससे  कह रहा था कि   काफी दिनों  के  बाद  उसकी  तितली  बहन उसके पास  आई थी और तुम  ने उसे उड़ा दिया ।   उसी  समय  डॉल के  कान के  पास  ही  तितली  निकली ।   वह भी  कह रही थी  कि  मै   इतने दिनों  के  बाद अपनी बहन  से मिलने  आई थी  और तुम मुझे  पकड़ने के  लिये  दौड़  पडीं  यह तो अच्छी  बात नही  है  ।   प्रिन्सेज डॉल बोली  मैं  क्या  करूँ  मुझे  तितलियाँ  बहुत  पसंद  हैं  ।   इस पर तितली  बोली लेकिन  पकडने से तो मेरे पंख टूट जायेगें  और मै मर जाऊँगी ।   प्रकृति ने सुन्दर  चीजें  बनाई है सिर्फ  देखने के  लिए  उन्हें  तोड कर बर्बाद  करने  के  लिए  नहीं  ।   प्रिन्सेज को याद  आया कि  जब जादूगर  👺 ने उसे  पकड़  लिया  था तब उसे कितना बुरा लगा  था और वह अपनी मम्मी  के  लिए  कितना  रोई थी ।  उसने तुरन्त  उसे तितली  से माफी  मांगी और कहा कि  तुम हमेशा इसी तरह फूलों  से  मिलने  आया  करना ।   हम बच्चे तुम्हें  विश्वास  दिलाते हैं  कि  हम सिर्फ  तुम्हें  देखेंगे  और तुमको पडेगा नहीं ।   इतने में  स्कूल  की वैन का हार्न बजा और प्रिन्सेज डॉल स्कूल  चली गई ।

                                शरद कुमार  श्रीवास्तव