ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 26 अगस्त 2018

महेन्द्र देवांगन की रचना : संभल कर चलना




कांटों से भरा है राह राही, संभल संभल कर चलना ।

पग पग में है सतरंगी जाल, बिछाये बैठी छलना ।

अगर पाना है लक्ष्य तो , आगे ही बढ़ते जाना ।

राह कठिन जरुर है , इससे न घबराना ।

चाल तेरी मंद न हो , काली रात से न डरना ।

प्रभात जरुर होगा राही , अंधियारे से लड़ते रहना ।

उदास होकर के तू अपना , गाण्डीव न रख देना ।

कौरव के छल में आकर , समझौता न कर लेना ।

आलस अत्याचार अहं के , जाल में न फंस जाना ।

कर्मठता उत्साह शांति से , ज्ञान की ज्योति जलाना ।

प्यास बुझा दो जन जन की , बनकर निर्झर झरना ।

रहम करो सभी पर , दुखियों का घाव भरना ।





                      महेन्द्र देवांगन "माटी"

                      पंडरिया  (कवर्धा )

                      छत्तीसगढ़ 

                     8602407353

                        mahendradewanganmati@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें