सविता अपने इकलौते बेटे रवि के साथ एक किराये के घर मे रह रही थ | आर्थिक स्थिती अच्छी न होने के कारण सिलाई करके गुजारा करती थी |
रवि बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि का किशोर था |स्कूल मे भी सबका चहेता था |
लेकिन इधर कुछ दिनों से रवि स्कूल देर से पहुँच रहा था | स्कूल से बराबर शिकायतें आ रहीं थी |
मां भी परेशान थी | मां ने रवि के सहपाठी को बुलवाया और उससे सब बात मालूम पड़ी | रवि के सहपाठी अतुल ने बताया कि रवि सवेरे ५ बजे ही सब्जी मण्डी जाकर सब्जियाँ खरीदकर बाजार मे बेचता है | जो पैसे मिलते हैं वह जमा करता जाता है | उसके बाद स्कूल जाता है|
स्कूल के अध्यापक गण ने भी रवि के इस कार्य की सराहना की और स्कूल देर से आने की सज़ा माफ कर दी |
इतनी बातें हो ही रहीं थीं
कि रवि हाथ मे एक बड़ा सा पैकेट लिये हुए कमरे मे दाखिल हुआ | सामने अतुल को देखकर थोड़ा सकपकाया लेकिन फिर आगे बढ़कर मां के पैर छूकर वो पैकेट
मां को दिया |
मां ने पूछा ये क्या है ? रवि बोला ये आपके लिये साड़ी| आपकी साड़ी बहुत पुरानी हो गई थी| इसलिये मै ले आया | मां बहुत भावुक हो उठीं| बेटे को गले से लगाकर आशीर्वाद की झड़ी लगा दी|
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बच्चों मां बाप की सेवा से बढ.कर
दूसरी सेवा नहीं है|
मंजू श्रीवास्तव , हरिद्वार द्वारा रचित बच्चों की कहानी
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