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सोमवार, 6 अगस्त 2018

गुरु पूर्णिमा : बालकथा : सुशील शर्मा






गुरु पूर्णिमा
(लघु कथा)
सुशील शर्मा

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मैं आज जब कक्षा में पहुंचा तो विषयानुसार कक्षा के सभी बच्चों ने गुरु पूर्णिमा के पूजन की तैयारी कर रखी थी।
मैंने कक्षा में प्रवेश करते ही सभी बच्चों ने एक स्वर में कहा *गुरुदेव आपके श्री चरणों में प्रणाम*
हालांकि प्रतिदिन बच्चे नमस्ते करते थे स्वाभाविक रूप से आज गुरु पूर्णिमा के दिन मुझे कुछ नया देना चाहते थे।
मैंने उनके अभिवादन का उत्तर उन्हें आशीर्वाद देकर दिया और बैठने का इशारा किया सभी बच्चे बैठ गए।तभी मेरी नजर उस जगह पर गई जहाँ सोमेश बैठता था वह पोलियो ग्रस्त बच्चा था और उसकी सीट बिल्कुल रैंप के पास दरवाजे के पीछे थी।
मैंने कक्षा में पूछा सोमेश कहाँ है ।
*सर वो आज नही आया उसकी माँ की तबियत ठीक नही है।*
कक्षा के कैप्टन अरविंद ने जबाब दिया।
मैं तुरंत अपनी सीट से उठा और बाहर जाने लगा।
*सर वो आज गुरु पूर्णिमा है हम सब आपकी पूजन करना चाह रहे हैं।*
सुरेंद्र ने मुझे कक्षा से बाहर जाते हुए देख कर कहा।
बगैर कोई जबाब दिए मैंने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और सोमेश के घर की ओर चल पड़ा।
सोमेश के घर जाकर मैंने देखा कि सोमेश की माँ पलंग पर पड़ी कराह रही थी और सोमेश बेचारा उनके पलंग के पास निरीह सा नीचे बैठा था।
मुझे देख कर उसकी आँखों में आंसू आ गए।
मैंने जाकर उसके कंधे पर हाथ रखा वो फफक कर रो पड़ा ।
*सर मम्मी को मलेरिया है मेरे पापा नही है मुझसे उन्हें अस्पताल ले जाते नही बन रहा है मैं अपंग हूँ भगवान ने मुझे ऐसा क्यों बनाया है सर मैं क्या करूँ।*
*सोमेश मत रो बेटा मैं हूँ न मैं तुम्हारी मम्मी को अस्पताल ले जाऊंगा तुम चिंता मत करो।*
मैंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा।
उसी बीच बाहर शोर की आवाज़ आई मैंने देखा कि पूरी कक्षा सोमेश के घर के बाहर खड़ी है।
*सर हम लोग ऑटो ले आये हैं हम सब माँ को अस्पताल ले जाएंगे।*
अरविंद ने सोमेश के पास जाकर उसे गले लगाया।
उन सभी ने मिल कर सोमेश की मम्मी को उठा कर ऑटो में डाला और अस्पताल के लिए रवाना हो गए मैंने कुछ आवश्यक निर्देश दिए कुछ पैसे अरविंद को दिए और उनके पीछे अस्पताल पहुंचा।
भाग्य से जो डॉक्टर था वो मेरा छात्र निकला मुझे देख कर बोला।
*सर मेरे अहोभाग्य आज गुरुपूर्णिमा पर आप मेरे पास*
मैंने उसे पूरी कहानी बताई वह बोला *सर आपको चिंता करने की जरूरत नही हैं उनकी पूरी देखभाल और खर्च की जिम्मेदारी मेरी है आप निश्चिन्त होकर जाइये।*

मैंने सभी बच्चों की बारी बारी से ड्यूटी लगा दी और सब ने सहर्ष उसको पूरा किया।
जब मैं अस्पताल से जाने लगा तो सोमेश के पास पहुंचा उसकी आँखों में कृतज्ञता के आंसू थे।सोमेश ने मेरे पैर पकड़ लिए बोला *सर आज आप नही होते तो मेरी माँ बचती नहीं।*

*ऐसी बात नही करते सोमेश आज गुरुपूर्णिमा के दिन गुरु का आशीष तुम्हे मिला है सर कक्षा छोड़ कर तुम्हारी सहायता के लिए आये है।*
अरविंद ने सोमेश जिसके निरंतर आंसू झर रहे थे को गले लगाते हुए कहा।
 तभी डॉ प्रिय रंजन आये उन्होंने मेरे हाथ में फूलों का एक गुलदस्ता एवम श्रीफल दिया उन्हें देख कर सभी बच्चों ने उसी गुलदस्ते में से फूल निकाल कर मुझे दिए मेरे मेरे चरणस्पर्श किये।
आज मुझे लग रहा था कि मेरे गुरु द्वारा दी गई शिक्षा का एक अंश मैंने ग्रहण किया।
 मेरे और उन सभी बच्चों के चेहरों पर भी आत्म संतुष्टि के भाव थे जो शायद विद्यालय के कक्ष में गुरु पूर्णिमा मनाते तो नही होते।


सुशील शर्मा

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