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शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

होशियार बनो : मंजू श्रीवास्तव की बालकथा


शाम होने लगी थी | धीरे धीरे सूर्य अस्त होने लगे थे | अंधेरा बढ़ता जा रहा था | पशु पक्षी अपने अपने घर वापस लौटने लगे थे |

जल्दी चलने वाले पशु अपने घर पहुँच चुके थे | कुछ धीरे चल रहेथे| वो अभी रास्ते मे ही थे | अंधेरा बढ़ता जा रहा था |

   लोमड़ी आज कुछ ज्यादा ही जोश मे थी | सोच रही थी कि अंधेरा हो गया तो क्या |  मै तो पहुंच ही जाउँगी | मुझे किस बात का डर|
अपनी धुन मे चली जा रही थी | सामने एक गड्ढा आया | वह देख नहीं पाई और उसमे गिर पड़ी | बहुत हाथ पैर मारे पर वह बाहर नहीं निकल पाई | रात भर उसी मे पड़ी रही |
  दूसरे दिन सवेरे एक बकरी उधर से गुजर रही थी | उसे लगी प्यास | गड्ढा देखकर उसने सोचा शायद यहाँ पानी मिल जाय |उसमे झाँककर देखा तो लोमड़ी  दिखाई दी |
      बकरी ने लोमड़ी से पूछा, बहन,  पीने के लिये थोड़ा पानी मिल जायगा?  लोमड़ी बोली हाँ हाँ जरूर मिल जायगा| लेकिन तुम्हें नीचे आना पड़ेगा |
      लोमड़ी तो इसी ताक़ मे थी  | बकरी ने भी आगा पीछा कुछ न सोचा और लोमड़ी की बातों मे आकर झट से गड्ढे मे कूद गई |
दोनो ने पानी पीकर प्यास बुझाई | दोनो सोचने लगी कि अब ऊपर कैसे चढ़ा जाय?
लोमड़ी ने बकरी से कहा एक उपाय है | तुम अपने दो पैर उठा कर दीवार के सहारे टिक जाओ | मै तुम्हारी पीठ पर पैर रखकर चढ़ जाऊंगी और बाहर निकल जाऊँगी |  बाहर निकलकर तुम्हे बाहर निकालने की कोशिश करूँगी |
बकरी को बात समझ आ गई |
     बकरी दीवार के सहारे खड़ी हो गई और लोमड़ी उसकी पीठ पर पैर रखकर चढ़के बाहर कूद गई |
बाहर जाकर लोमड़ी बहुत खुश हुई |और बकरी को गड्ढे मे छोड़कर अपने घर चली गई|
बच्चों, कहानी से ये शिक्षा मिलती है कि बिना सोचे समझे कोई कदम नहीं उठाना चाहिये|

मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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