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मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

मेढक और मीनार : मंजू श्रीवास्तव की बालकथा



एक बड़े जंगल मे कई  पशु- पक्षी आराम से रहते थे |
        एक बार नन्हे मेढकों मे शर्त लगी कि देखें सामने की मीनार की चोटी पर सबसे पहले कौन चढता
है?  सभी ने शर्त मान ली |
      दूसरे दिन मुकाबला होने वाला था | ऐन वक्त पर सब हिम्मत हारने लगे | लेकिन बुज़ुर्ग मेढकों ने हौसला बढ़ाया तो सब मुकाबले के लिये तैयार हो गये |
      बारिश हो चुकी थी | इसलिये दीवारें फिसलनी सी हो गई थी | लेकिन मेढकों के जोश मे कोई कमी नहीं थी | बुज़ुर्ग सोच रहे थे कि  बच्चे मेढक मीनार पर चढ़ भी पायेंगे या नहीं |
        मुकाबला आरम्भ हुआ |चढ़ाई शुरू ही हुई थी कि एक मेढक गिर गया | फिर कुछ ऊपर चले जहां से एक मेढक गिर पड़ा | आधा रास्ता  पार करते करते कई मेढक नीचे आ चुके थे |
     बुज़ुर्ग मेढकों ने सोचा कि शायद  अब  कोई ऊपर नहीं चढ़ पायगा |
      लेकिन लोगों ने देखा कि एक बच्चा मेढक अपनी  धुन मे जल्दी जल्दी ऊपर चढ़ता जा रहा है |
      आखिर मे जब लोगों ने ऊपर देखा तो मेंढक मीनार पर पहुंच चुका था |
     मेढकों की बिरादरी मे खलबली मच गई कि इतना छोटा बच्चा मेढक इतनी ऊँची मंजिल तक कैसे पहुँच गया?
बचचों क्या तुम समझ पाये कि वह इतने ऊपर कैसे पहुँच गया?.
वास्तव मे वह बहरा था | उसका ध्यान तो सिर्फ अपनी मंजिल पर पहुँचने पर था |इधर उधर ध्यान दिये बिना वह अपनी मंज़िल तक पहुँचने में सफल हो पाया |

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    बच्चों इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि कोई कार्य आरम्भ करने के पहले अपने मन से नकारात्मक विचार निकाल दो | सिर्फ सकारात्मक विचार रखो मन में | यह काम मैं कर सकती हूँ या कर सकता हूँ |
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                               मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

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