ब्लॉग आर्काइव

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

नटखट लल्ला : शादाब आलम





हाथ झटके, पैर उछाले
रोते-रोते आँख सुजा ले
न अम्मा से न नानी से
चुप होता न आसानी से
भरी दूध की शीशी पाकर
पीता है मुस्का-मुस्काकर
शीशी खाली फिर से हल्ला
करने लगता नटखट लल्ला।






                           - शादाब आलम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें