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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

पहियों के अविष्कार की कहानी. : शरद कुमार श्रीवास्तव




नाना जी के साथ चीकू भइया पार्क से लौट रहे थे । चीकू एक नर्सरी की पोयम गुन गुना रहा था ।. सूरज गोल चन्दा गोल, मम्मी जी की रोटी गोल, पापा जी का पैसा गोल फिर  कुछ सोचने लगा. कुछ रुक कर अपने भोले पन के साथ पूछा ,अच्छा नाना जी,पापा की कार के पहिये भी तो गोल होते हैं । नाना जी बोले हाँ बेटाजी वे भी गोल होते हैंं लेकिन ये मशीन का हिस्सा होते हैं तुम्हारे पापा का पैसा, तुम्हारी मम्मीजी की रोटी, सुरज, चन्द्रमा भी गोल होते हैं परन्तु यह मशीन नहीं होते हैं।  पहिये एक तरह की मशीन होते है जो एक धुरी पर घूमते हैं तभी तो तुम्हारी कार चलती है। 
अच्छा नाना जी, मैने तो सुना है कि पेट्रोल से गाडी चलती है चीकू की तीव्र बुद्धि के सामने एक बार नाना जी सकपका गये । वे बोले तुमने ठीक ही सुना है। पेट्रोल से कार का इन्जन चलता है, फिर यह इंजन ताकत लगा कर पहियों को तेजी से घुमाता है तो पहिया गोल घूमता हुआ गाड़ी को आगे बढाता है । अच्छा बताओ ऐसे कौन कौन से पहिये तुम जानते हो जो धुरी पर चलते हैं. चीकू बोला कार ,साइकिल,मोटरसाइकिल के पहिये. नाना जी बोले पौटर्स व्हील, ड्राइवर की स्टेरिग और सभी मशीने आदि बहुत सी चीजो मे पहिये या पहिये जैसी चीजों का उपयोग होता है ।
जानते हो  पहिये का इस्तेमाल पहली बार लगभग ५५०० वर्ष पहले किया गया था ।    चीकू ने पूछा, वह कैसे ? तब नानाजी बोले, कहा जाता है कि सबसे पहले कुम्हार का चाक् बना जिस पर आदि काल मे बर्तनों को बनाया होगा । फिर बड़े- बड़े लकड़ी के लट्ठो को लकड़ी के पहिया नुमा दो चीजो को बीच मे एक डन्डे से जोड कर लुढ़काया जाता रहा होगा । यही आगे चलकर, जाने अनजाने ट्रान्सपोर्ट और आज की मशीनो के बनाने की पहल रही होगी
नानाजी के पहियों के अविष्कार के रहस्योदघाटन सुनकर, चीकू अवाक रह गया था।




                                 शरद कुमार श्रीवास्तव 

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