इशिता स्कूल से आकर अपने कमरे में गुडिया खेल रही थी तभी उसके दादा जी उसके कमरे में पहुंचे । उन्हें देखकर इशिता बहुत खुश हुई । इशिता के पापा मम्मी तो ऑफिस चले जाते हैं बस एक दादा जी ही घर में रहते हैं वही उसके दोस्त भी हैं । दादा जी अक्सर उसे चाकलेट लाकर देते हैं । इशिता भी सबसे छुपा कर चाकलेट दादा जी से साझा भी करती है । दादा जी को अपने कमरे मे आया देख कर वह खुश होकर बोली, दादू आओ हम लोग स्कूल - स्कूल खेलते हैं ।
दादा जी को छोटी बेबी की बात माननी ही थी। इशिता ऊँची सीट पर बैठ गई और दादा जी खाट पर बैठ गए । इशिता ने कहा आप बच्चे बन जाओ मै टीचर बनूंगी । दादा जी उसकी बात को मान गये और स्कूल- स्कूल का खेल शुरू हो गया । टीचर जी बनी इशिता बोली "मोबाइल फोन हटाइये कापी निकाल कर लिखिये ।" टीचर जी ने आगे कहा साफ साफ लिखिये और लाइन मे लिखिये, पूरा पेज भरना तभी पूरे नम्बर मिलेंगे ।
दादा जी मुस्करा रहे थे और टीचर जी का दिया काम करते जा रहे थे । थोड़ी देर बाद उन्होंने कापी टीचर (इशिता) जी को दे दी । टीचर इशिता खुश हो गई और उसने तुरंत कापी पर सही तथा स्टार निशान बनाकर 100/100 नम्बर दिया । यह देखकर दादा जी खुश हो गए। वह समझे कि क्लास खत्म हो गई है इसलिए वे मोबाइल से कहीं बात करने लगे । यह देखकर टीचर जी ने कापी दादा जी से छीन कर ले लिया । उसने पहले के दिये नम्बर स्टार और सही का चिन्ह सब काट कर अब उन्हें एक बड़ा जीरो दे दिया। उसके बाद इशिता टीचर जी ने दादा जी से कहा आपने कहना नहीं माना है , अपनी सीट पर खड़े हो जाइये ।
दादा जी को इशिता के साथ इस खेल में मजा आ रहा था । उन्होंने अपनी सीट यानी इशिता के कमरे मे पड़े बेड पर खड़े होने की कोशिश की लेकिन लड़खड़ा कर नीचे फर्श पर गिर पड़े । दादा जी को पैर में चोट लगी थी वे उठ कर खड़े नहीं हो पा रहे थे । उन्हें लगा कि उनका पैर टूट गया है । इशिता पहले तो दादा जी को गिरता देखकर हँसी । परन्तु दादा जी को ज्यादा देर से नहीं उठ पाने पर उसे लगा उन्हें ज्यादा चोट लगी है और वह उठ नहीं पा रहे हैं।. यह देखकर वह रोने लगी । तभी यह देखकर दादा जी एक एकदम से उठ खड़े हुए और हंसने लगे। इशिका के चेहरे पर यह देखकर मुस्कुराहट आ गई और वह दादू से लिपट गई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें