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शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

सबसे अच्छी अपनी हिंदी : शरद कुमार श्रीवास्तव

 


हिन्दी दिवस पर विशेष 







राघव ने  अपने दोस्तों को बताया कि गाँव से उनकी दादी जी आई हुई हैं।  उन्हे न्यूज पेपर पढने का बड़ा शौक है ।   इसलिये उसके घर मे हिन्दी का न्यूज पेपर आना शुरू हुआ है ।   कहानी की किताबे और हिन्दी के अखबार दादी जी पढ़ती रहती है।   पेपर का एक एक कोना चाट डालती है तब जाकर उन्हे चैन मिलता है।   कृष्णा बोला पर तुम तो पेपर कम पढ़ते हो तुम्हे इससे क्या मतलब है।   हाँ भाई हमे तो अपनी पढ़ाई से ही फुरसत नहीं है हमे तो पेपर पढ़ने के लिये समय ही नहीं मिलता है  लेकिन आज मैने हिन्दी के पेपर मे एक अजीब समाचार पढ़ा है इसी लिये लोकल  एडमिनिस्ट्रेशन पर मेरे मन में सवाल उठ रहे हैं कि वह ऐसा कैसे कर सकते हैं . उसने जेब से मुड़े हुए अखबार का टुकड़ा निकाला जिस पर लिखा था "रामपुर मे रामस्वरूप ने चोरी की, फलस्वरूप पकड़ा गया"।  यह कैसी नाइन्साफी है चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाये।  राघव के मित्र कृष्णा ने भी इस बात पर बहुत आश्चर्य जताया और उसने भी राघव की हाँ मे हाँ मिलाई ।   वह बोला हाँ यार यह तो बड़ी खराब बात है ।  उनके एक मित्र पत्रकार थे न्यूज पेपर मे उनके लेख छपते थे वे दोनो उसके पास गये उन्हें भी अखबार वह  कोना दिखाया।  वह मित्र बोला यार कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ किया होगा तभी फलस्वरूप पकड़ा गया है।  लेकिन तुम्हे इससे क्या लेना देना है ? राघव को वाकई कुछ लेना देना नही था।

राघव ने घर लौट कर दादी जी से कहा दादी जी आप यह कैसा अखबार पढ़ती हैं उसमे तो सब उल्टा- सीधा लिखा रहता है। उसने फिर कहा, दादी जी आपके पेपर मे तो लिखा है रामस्वरूप ने चोरी की फलस्वरूप पकड़ा गया।   दादी जी बोली ठीक तो है इसमे गलत बात क्या है ? राघव बोंला, गलत् नहीं है तो क्या है ,चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाये।  नहीं बेटा,  दादी जी बोलीं, रामस्वरूप ने चोरी की इसके फल मे वह पकड़ा गया यह मतलब है।   राघव दादी की बातों को सुन आश्चर्य से उन्हे देखता रहा . दादी बोली तुम्हारी अंग्रेजी शिक्षा का कमाल है जिसका तुम लोग बहुत ख्याल रखते हो परन्तु अपनी मातृभाषा के प्रति बहुत उदासीन हो जाते हो।  अभी दो चार दिन पहले तुम्हारा दोस्त चित्त रंजन गुप्ता आया था।  तुम्हारी छोटी बेटी से बोला कि कह दो सी आर गुप्ता आये है. तुम्हारी बेटी ने तोतली आवाज मे चिल्लांकर तुम्हे बताया था कोई सियार कुत्ता आये हैं तब गुप्ता जी का चेहरा देखने लायक था।।




शरद कुमार श्रीवास्तव

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