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शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

"नदी की दुर्दशा" रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"



कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।
कभी खुशी की बातें करते, गम भी कभी सुनाते थे।।

कलकल-कलकल बहती रहती, दिखती सुंदर हरियाली।
फूल खिले जब रंग-बिरंगे, झूमे पीपल की डाली।।
जामुन अमुआ अमरुद इमली, तोड़-तोड़ ले जाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।

मछली मेंढक सर्प केंचुआ, मस्त मजे से रहते थे।
उछल-कूद करते थे मिलकर, भाषा अपनी कहते थे।
स्वच्छ नीर की निर्मल धारा, अपनी प्यास बुझाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।

मानव जब भी गम में होते, शांत सभी को करती थी।
ठंडी ठंडी पवन चले जब, तन में आहें भरती थी।
बैठ किनारे बातें करते, हँसते और हँसाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।

सूखी-सूखी पड़ी अकेली, अब मानव भी  मुख मोड़े।
नीर बहाती रहती हूँ मैं, जीव-जंतु  मुझको छोड़े।।
पहले जैसी नहीं रही मैं, आकर गले लगाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।







प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


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