ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 26 सितंबर 2022

मजेदार वीडियोज का आनन्द लीजिये

 


एक मजेदार  वीडियो कुत्तों की पाठशाला


इस पाठशाला का एक और वीडियो



मजेदार चुटकुले

 


१. रामू (मैथ के सर से)- सर इंगलिश के सर अंग्रजी मे बात करते हैं आप क्या मैैथ मे बात नही कर सकते हैं?
मैथ के सर- रामू ज्यादा तीन पाँच नहीं करो, फौरन नौ दो ग्यारह हो जाओ वरना कान के नीचे पाँच रसीद करूंगा कि छठी का दूध याद आ जायगा
२. कमरे मे मच्छर काट रहे थे मम्मी ने मच्छरदानी लगा कर लाइट बुझा दिया. एक जुगनू किसी तरह मच्छरदानी मे घुस आया तो आशी बोली मम्मी मच्छर यहाँ हमे टार्च लेकर ढूढने आया है़
३. बच्चो को पढाने के लिए रखे जाने वाले टीचरों का इन्टरव्यू चल रहा था एक प्रत्याशी से पूछा गया बच्चों के साथ का आपको क्या अनुभव है ?
प्रत्याशी बोला, जी अच्छा अनुभव है ,कल तक मै भी बच्चा था.

४ चीबू भैया सुबह से भगवान की प्रतिमा के सामने खड़े खड़े बुदबुदा रहे थे हे भगवान इन्डिया की कैपिटल लखनऊ कर दो
माँ ने सुना तो बोली कि अरे भारत की राजधानी अच्छी
खासी अपनी दिल्ली है नानी के घर लखनऊ क्यों करवा रहा है
माँ परीक्षा में वही लिखकर आया हूँ।

५  छोटी रिकी पहली बार दिल्ली आयी उसके पापा के किसी माल मे लिफ्ट में उसे ऊपर ले जाना चाहते थे तो वह भागती थी अच्छा तमाशा बन गया था
घर लौटने पर पूछने पर बोली उस जादू के डिब्बे में ऐक लड़की गई थी फिर वह डिब्बा जब दुबारा खुला तो उसमें से बुढ़िया निकली मुझे बकरी या बिल्ली बना देता तो



संकलन शरद कुमार श्रीवास्तव 

नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मे क्या है :एक प्रेरणादायक गीत

 नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मे क्या है 



फिल्म  बूट पालिश

गायन  आशा भोंसले और  मोहम्मद  रफी

"बारिश की विदाई" प्रिया देवांगन प्रियू की रचना

 





बारिश की अब हुई विदाई।

ठंडी रानी घर-घर आई।।


कम्बल चादर और रजाई।

निकले अलमीरा से भाई।।


सूरज दादू जल्दी आना।

धूप साथ में अपने लाना।।


देह सभी सेकेंगे बच्चे।

हृष्ट पुष्ट अरु होंगे अच्छे।।


किट-किट सब के दाँत करेंगे।

ठंडे पानी सभी डरेंगे।।


आलस से तुम लो अँगड़ाई।

देखो ठंडी रानी आई।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़


Priyadewangan1997@gmail.com



"माता रानी" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना



जोत जलत हे जगमग जगमग, गूँजत हे किलकारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।

लाल लाल चूरी पहिरे अउ, लाली महुर रचाये।
लाली चुनरी ओढ़े माता, मुच मुच ले मुस्काये।।
सरग उपर ले दुर्गा दाई, बघवा करे सवारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।

महाकाल अउ राम चंद्र जी, हर दुर्गा स्तुति गावै।
नारद मुनि सँग सबो देवता, माथा अपन नवावै।।
कुष्मांडा अउ गौरी मइया, सब के हवै दुलारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।

कतको धरती संकट आथे, तुरते ओला टारे।
रूप धरे काली माता के, दानव मन ला मारे।।
करे पाप कलयुग मा मानव, ओखर लाये पारी।
नव दिन बर माता रानी हर, आये हमर दुवारी।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

दादा दादी और नानी दिवस पर एक और वीडिओ

 नानी तेरी मोरनी को मोर ले गये


हिन्दी है सबसे अनमोल : अंजू जैन गुप्ता






 

दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ : ग्रैंड पेरेंट्स दिवस पर यह गीत

 


दादा दादी और नाना नानी दिवस 2022 पर

फिल्म  घराना के इस मशहूर गीत का आनन्द  लें



ऐसा होता है प्यारा बचपन : प्रस्तुति श्रीमती स्तुति श्रीवास्तव

 




ऐसा ही होता है बचपन 



प्रस्तुतिकरण  स्तुति श्रीवास्तव 

"सिद्धि विनायक" : रचना प्रिया देवांगन "प्रियू"



हे गणपति गणराज जी, आओ हमरे द्वार।
विनती मेरी आपसे, कर दो नैया पार।।
करते मिलकर प्रार्थना, और झुकाये माथ।
दे दो आशीर्वाद जी, अपने चारों हाथ।।

सेवा प्रतिदिन मैं करूँ, और लगाऊँ भोग।
स्वस्थ रहे अब देह भी, निकट न आये रोग।।
भर दो मुझमें ज्ञान जी, रोशन हो जग नाम।
रहे न कंटक राह में, नेक करूँ हर काम।।

भेदभाव है बढ़ रहा, होता अत्याचार।
लालच में आकर यहाँ, करते भ्रष्टाचार।।
आओ हे गणराज जी, मेरी सुनो पुकार।
मिट जाये सब क्लेश भी, विनती बारम्बार।।

सिद्धि विनायक आप हो, करते मंगल काज।
कलयुग दानव नाश हो, बचे हमारी लाज।।
निशदिन पूजापाठ हो, और लगाये ध्यान।
सेवा हो माँ बाप की, दे दो ऐसा ज्ञान।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


"नदी की दुर्दशा" रचनाकार प्रिया देवांगन "प्रियू"



कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।
कभी खुशी की बातें करते, गम भी कभी सुनाते थे।।

कलकल-कलकल बहती रहती, दिखती सुंदर हरियाली।
फूल खिले जब रंग-बिरंगे, झूमे पीपल की डाली।।
जामुन अमुआ अमरुद इमली, तोड़-तोड़ ले जाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।

मछली मेंढक सर्प केंचुआ, मस्त मजे से रहते थे।
उछल-कूद करते थे मिलकर, भाषा अपनी कहते थे।
स्वच्छ नीर की निर्मल धारा, अपनी प्यास बुझाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।

मानव जब भी गम में होते, शांत सभी को करती थी।
ठंडी ठंडी पवन चले जब, तन में आहें भरती थी।
बैठ किनारे बातें करते, हँसते और हँसाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।

सूखी-सूखी पड़ी अकेली, अब मानव भी  मुख मोड़े।
नीर बहाती रहती हूँ मैं, जीव-जंतु  मुझको छोड़े।।
पहले जैसी नहीं रही मैं, आकर गले लगाते थे।
कहाँ गये वो दिन अब सारे, पास सभी जब आते थे।।







प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com


"श्राद्ध पक्ष" प्रिया देवांगन "प्रियू" की रचना


पितर पक्ष


क्ष आया है जब से, घर घर सभी मनाते हैं।
बड़ा खीर अरु सब्जी पूड़ी, मन भर  सब खाते हैं।।
मात-पिता जीवित थे जब तो, पानी नहीं पिलाते थे।
पास बैठने को कहते थे, दूर दूर तुम जाते थे।।

त्याग दिये हैं देह यहाँ से, मिले आज वे माटी में।
नजर देखने को तरसे अब, दिखे नहीं परिपाटी में।।
माह पितर आया है जब से, नदिया पोखर जाते हैं।
अक्षत जौं हाथों में लेकर, पानी देकर आते हैं।।

हलुवा पूरी खाते थे तुम, माँ को भी तरसाते थे।
भूखी बैठी रोती रहती, तरस नहीं दिखलाते थे।।
श्राद्ध पक्ष में मानव तुम तो,  ब्राह्मण भोज कराते हो।
रखे आज तस्वीर सामने, छप्पन भोग लगाते हो।।

किसे दिखावा करते मानव, समय तुम्हारा आयेगा।
देख रहे हैं ऊपर वाले, बेटा भी तरसायेगा।।
कर्म करोगे जैसे तुम जी, वैसे फल को पाओगे।
बोया तूने तरु बबूल का, आम कहाँ से खाओगे।।



प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com

सबसे अच्छी अपनी हिंदी : शरद कुमार श्रीवास्तव

 


हिन्दी दिवस पर विशेष 







राघव ने  अपने दोस्तों को बताया कि गाँव से उनकी दादी जी आई हुई हैं।  उन्हे न्यूज पेपर पढने का बड़ा शौक है ।   इसलिये उसके घर मे हिन्दी का न्यूज पेपर आना शुरू हुआ है ।   कहानी की किताबे और हिन्दी के अखबार दादी जी पढ़ती रहती है।   पेपर का एक एक कोना चाट डालती है तब जाकर उन्हे चैन मिलता है।   कृष्णा बोला पर तुम तो पेपर कम पढ़ते हो तुम्हे इससे क्या मतलब है।   हाँ भाई हमे तो अपनी पढ़ाई से ही फुरसत नहीं है हमे तो पेपर पढ़ने के लिये समय ही नहीं मिलता है  लेकिन आज मैने हिन्दी के पेपर मे एक अजीब समाचार पढ़ा है इसी लिये लोकल  एडमिनिस्ट्रेशन पर मेरे मन में सवाल उठ रहे हैं कि वह ऐसा कैसे कर सकते हैं . उसने जेब से मुड़े हुए अखबार का टुकड़ा निकाला जिस पर लिखा था "रामपुर मे रामस्वरूप ने चोरी की, फलस्वरूप पकड़ा गया"।  यह कैसी नाइन्साफी है चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाये।  राघव के मित्र कृष्णा ने भी इस बात पर बहुत आश्चर्य जताया और उसने भी राघव की हाँ मे हाँ मिलाई ।   वह बोला हाँ यार यह तो बड़ी खराब बात है ।  उनके एक मित्र पत्रकार थे न्यूज पेपर मे उनके लेख छपते थे वे दोनो उसके पास गये उन्हें भी अखबार वह  कोना दिखाया।  वह मित्र बोला यार कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ किया होगा तभी फलस्वरूप पकड़ा गया है।  लेकिन तुम्हे इससे क्या लेना देना है ? राघव को वाकई कुछ लेना देना नही था।

राघव ने घर लौट कर दादी जी से कहा दादी जी आप यह कैसा अखबार पढ़ती हैं उसमे तो सब उल्टा- सीधा लिखा रहता है। उसने फिर कहा, दादी जी आपके पेपर मे तो लिखा है रामस्वरूप ने चोरी की फलस्वरूप पकड़ा गया।   दादी जी बोली ठीक तो है इसमे गलत बात क्या है ? राघव बोंला, गलत् नहीं है तो क्या है ,चोरी कोई करे और पकड़ा कोई और जाये।  नहीं बेटा,  दादी जी बोलीं, रामस्वरूप ने चोरी की इसके फल मे वह पकड़ा गया यह मतलब है।   राघव दादी की बातों को सुन आश्चर्य से उन्हे देखता रहा . दादी बोली तुम्हारी अंग्रेजी शिक्षा का कमाल है जिसका तुम लोग बहुत ख्याल रखते हो परन्तु अपनी मातृभाषा के प्रति बहुत उदासीन हो जाते हो।  अभी दो चार दिन पहले तुम्हारा दोस्त चित्त रंजन गुप्ता आया था।  तुम्हारी छोटी बेटी से बोला कि कह दो सी आर गुप्ता आये है. तुम्हारी बेटी ने तोतली आवाज मे चिल्लांकर तुम्हे बताया था कोई सियार कुत्ता आये हैं तब गुप्ता जी का चेहरा देखने लायक था।।




शरद कुमार श्रीवास्तव

नन्ही चुनमुन और नन्हा कबूतर

 



बहुत  गरमी पड़ रही थी ।  पशुपक्षी पानी और छाया की तलाश  मे बदहवास और बदहाल  हो चले थे । नन्हा कबूतर अपने घोसले मे अपनी माँ का इंतजार  कर  रहा था।  उसकी मम्मी उसे नहीं दिखाई  दे रही थी।  इसलिए  कबूतर  के बच्चे ने सोंचा कि मै थोड़ा बाहर निकल  कर  देखूं कि कहाँ क्या हो रहा है और  उसकी मां कहाँ रह गई  है।  

नन्हे कबूतर  के बच्चे ने जैसे ही अपने घोसले से पैर बाहर निकाला वह नन्ही चुनमुन  की बालकनी के छज्जे पर आकर गिर पड़ा ।  नन्ही चुनमुन उस समय  अपनी बालकनी के पौधों मे पानी डाल रही थी ।  उसके कानो मे कबूतर के उस बच्चे की चूँ चूँ की आवाज सुनाई  पड़ी ।  

नन्ही चुनमुन ने कौतुहल वश उस कबूतर के बच्चे से पूछा तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो और  यहाँ पर आये कैसे ?  नन्ही चुनमुन ने उससे पूछा तुम्हारे मम्मी पापा कहाँ हैं ।  कबूतर का बच्चा चूँ चूँ कर नन्ही चुनमुन को समझाने की कोशिश  कर  रहा था कि वह भी अपनी मम्मी की तलाश  मे अपने घोंसले से बाहर निकला ही था कि वह ऊपर से नीचे लुढ़क  कर तुम्हारी बालकनी मे आ गिरा ।   

यद्यपि नन्ही चुनमुन को चूँ चूँ की महीन आवाज  सुनाई  नहीं दे रही थी पर उसके इशारे से समझ गई थी कि कबूतर के उस बच्चे का घर नन्ही चुनमुन की बालकनी के ऊपर  बने घोंसले मे है । नन्ही चुनमुन  अपनी मम्मी को बुला लाई और  उनकी मदद  से चुनमुन  ने कबूतर  के उस बच्चे को उसे घोंसले  के बाहर पंहुचा दिया ।   कबूतर  के बच्चे ने नन्ही चुनमुन  को चूँ चूँ कर धन्यवाद  दिया।



शरद कुमार श्रीवास्तव 



 

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

 मेरी नातिन नाव्या कुमार  जी द्वारा प्रस्तुत  एक मधुरिम राष्ट्र प्रेम का गीत 


कुमारी नाव्या को ढ़ेरों बधाई और आशीर्वाद 

शरद कुमार श्रीवास्तव 


 श्रीमती सर्वेश  पुंडीर ,

पल्लवपुरम फेज 1

मोदीपुरम द्वारा प्रेषित  एक लुभावना वीडियो 




 एक  मजेदार  वीडियो

अमर-अकबर और ब्रूनो : उपासना बेहार

 



अमर और अकबर दोनों 9 क्लास में पढ़ते थे. दोनों रोज शाम में क्रिकेट खेलने जाते थे. एक दिन जब अकबर मैदान के बाउंड्रीवाल के पास फ्ल्डिंग कर रहा था तो उसे बाउंड्रीवाल के उस पार से कुछ लोगों की आवाज सुनाई दी जिसमें लड़की का किडनैप शब्द सुन कर वो चौक गया. उसे लगा मामला कुछ गड़बड़ है. वह बाउंड्रीवाल से सट कर ध्यान से उनकी बात सुनने लगा. उनकी बातों से अकबर को समझ आया कि इन बदमाशों ने शहर के राजेश वर्मा नाम के किसी व्यक्ति की बेटी का अपहरण किया है और उनसे फिरौती मांगने वाले हैं, उसी की प्लानिग कर रहे हैं कि कैसे और कहां फिरौती की रकम लेकर आने को कहें. अकबर उनकी प्लानिग सुन पाता इससे पहले ही बैट्समेन ने इतनी जोरदार शाट मारा कि बॉल हवा में उड़ती हुई तेजी से उन अपहरणकर्ताओं के ऊपर जा गिरी. अकबर तुरंत बाउंड्रीवाल पर चढ़ कर दूसरी तरफ झाँक कर बोला सॉरी अंकल, हम मैदान में क्रिकेट खेल रहे है तो गलती से बॉल आप लोगों को लग गयी. अकबर उन लोगों से बात जरुर कर रहा था लेकिन बहुत ध्यान से उन अपहरणकर्ताओं के चेहरों को देख लेना चाहता था. अपहरणकर्ताओं ने गुस्से से अकबर को देखा और बॉल उसकी तरफ उछाल कर सभी ने आखों ही आखों में इशारा किया और वहाँ से चले गए.

अकबर तुरंत अमर के पास गया और अपहरणकर्ताओं से सुनी बात बताई. अमर ने कहा हमें जल्दी ही पुलिस थाने चलना चाहिए. वहाँ पहुँच कर इंस्पेक्टर अंकल को पूरी बात बताई. इंस्पेक्टर अंकल ने कहा तुम दोनों ने ये सब बता कर बहुत अच्छा किया. अकबर बेटा ये बताओ कि तुमने तो उन अपहरणकर्ताओं को देखा है, तो क्या तुम्हें उनमें से किसी का चेहरा याद है ताकि हम उनका स्कैच बना कर उन्हें पकड़ने की कोशिश करेगें. तबतक मैं पता करता हूँ कि राजीव वर्मा कौन है और क्या सच में उनकी बेटी का अपहरण हुआ है. अंकल वो 5 लोग थे लेकिन मुझे सब का चेहरा तो याद नहीं है पर दो लोगों का चेहरा मैं कभी भूल नहीं सकता हूँ. अकबर ने चित्रकार को बताया कि एक व्यक्ति के माथे पर एक लम्बा निशान है जबकि दूसरे आदमी के बाए हाथ में मगरमच्छ का टेटू था और उसके सारे बाल एकदम सफ़ेद थे.

इंस्पेक्टर अंकल ने हैडआफिस से पता किया तो उन्हें जानकारी मिली कि शहर के बिजनेसमैन राजीव वर्मा की बेटी का अपहरण हुआ है और अपहरणकर्ताओं ने फिरौती में एक करोड़ रूपए मांगें हैं जो उन्हें 5 दिन के अन्दर देने हैं. इंस्पेक्टर अंकल ने दोनों अपहरणकर्ताओं के स्कैच को शहर के सभी थानों में भेज दिया. इंस्पेक्टर अंकल ने अकबर से कहा बेटा तुम मुझे उस जगह ले चलो जहाँ तुमने अपहरणकर्ताओं को बात करते हुये सुना था.

अकबर ने इंस्पेक्टर अंकल वो जगह दिखायी. इंस्पेक्टर अंकल ने दोनों बच्चों से कहा तुम दोनों घर चले जाओ, आगे की खोजबीन हम करेगें. पुलिस अपने साथ उनका ट्रेंड किया हुआ खोजी कुत्ता लेकर आई थी. खोजी कुत्ते ब्रूनो ने जगह को सूंघा और पास की बस्ती की और चल पड़ा. फिर एक बंद मकान के पास जा कर ब्रूनो रुक गया. पुलिस ने घर की खुली खिड़की से अंदर झाँक कर देखा तो लगा कि वहाँ कोई रहता है. इंस्पेक्टर अंकल ने सादी वर्दी में कुछ पुलिस वालों को उस घर के आसपास निगरानी रखने को कहा. उसी दिन रात को एक व्यक्ति उस घर में आया. आसपास तैनात पुलिस ने उसे पकड़ लिया. इस व्यक्ति का चेहरा दोनों स्कैच में से एक अपहरणकर्ता के चेहरे से बिलकुल मिल रहा था. इसके भी माथे पर एक लम्बा निशान था. उस व्यक्ति को लेकर पुलिस थाने आ गयी. जब इंस्पेक्टर अंकल ने उससे पूछताछ की तो उस व्यक्ति ने कबूल किया कि उसने और उसके साथियों ने मिल कर बिजनेसमैन राजीव वर्मा की बच्ची का अपहरण किया है और उनसे 1 करोड़ की फिरौती मांगी है. फिर उस अपहरणकर्ता ने उस जगह का पता भी बता दिया जहाँ बच्ची को रखा गया था. बाद में पुलिस ने बाकी अपहरणकर्ताओं को भी पकड़ लिया और बच्ची को छुड़ा कर उनके माँ-पापा को सौप दिया.

इंस्पेक्टर अंकल ने अमर और अकबर को थाने बुला कर बहादुर बच्चों का ख़िताब दिया, वही बिजनेसमैन राजीव वर्मा ने बच्चों को बहुत सारी किताबें और एक-एक साइकिल गिफ्ट की.





उपासना बेहार

भोपाल 

ई मेल – upasanabehar@gmail.com

 

इशिता और दादा जी शिक्षक दिवस के अवसर पर स्पेशल


























इशिता  स्कूल  से आकर  अपने  कमरे  में  गुडिया  खेल  रही  थी  तभी उसके  दादा  जी   उसके  कमरे  में  पहुंचे  ।  उन्हें  देखकर  इशिता  बहुत  खुश  हुई  ।    इशिता के पापा  मम्मी  तो  ऑफिस  चले  जाते  हैं बस एक  दादा जी  ही घर  में  रहते हैं  वही उसके  दोस्त  भी  हैं ।   दादा  जी अक्सर उसे  चाकलेट  लाकर  देते  हैं  ।   इशिता  भी  सबसे  छुपा  कर  चाकलेट  दादा  जी से  साझा   भी  करती  है  ।  दादा जी  को   अपने कमरे मे  आया देख कर  वह खुश  होकर   बोली,  दादू आओ हम लोग स्कूल - स्कूल  खेलते  हैं ।

 दादा जी  को  छोटी बेबी  की  बात  माननी ही  थी।   इशिता ऊँची  सीट पर बैठ  गई  और  दादा जी  खाट पर बैठ  गए  । इशिता  ने  कहा   आप बच्चे  बन जाओ मै  टीचर  बनूंगी  ।   दादा  जी  उसकी  बात  को  मान  गये और  स्कूल- स्कूल  का  खेल  शुरू  हो  गया ।   टीचर  जी  बनी इशिता बोली  "मोबाइल  फोन  हटाइये कापी निकाल  कर  लिखिये ।"   टीचर  जी ने आगे  कहा   साफ साफ  लिखिये और   लाइन  मे लिखिये,  पूरा पेज भरना   तभी पूरे नम्बर  मिलेंगे ।

 दादा जी मुस्करा  रहे  थे  और टीचर जी का दिया  काम करते  जा  रहे  थे ।  थोड़ी  देर  बाद  उन्होंने   कापी टीचर (इशिता)  जी को दे दी ।   टीचर  इशिता  खुश  हो  गई  और  उसने  तुरंत कापी  पर सही  तथा  स्टार  निशान  बनाकर  100/100  नम्बर  दिया ।   यह देखकर दादा जी  खुश  हो  गए।  वह समझे कि क्लास खत्म हो गई है इसलिए वे मोबाइल  से  कहीं  बात  करने  लगे  ।  यह देखकर  टीचर  जी ने  कापी  दादा  जी  से  छीन  कर  ले लिया ।     उसने  पहले के   दिये नम्बर स्टार  और सही का चिन्ह सब काट कर  अब उन्हें  एक  बड़ा  जीरो  दे दिया।   उसके  बाद इशिता    टीचर  जी ने दादा  जी  से   कहा  आपने  कहना  नहीं  माना  है , अपनी  सीट  पर  खड़े  हो  जाइये  ।  

 दादा   जी  को  इशिता  के साथ  इस  खेल  में  मजा  आ   रहा था ।    उन्होंने   अपनी  सीट  यानी  इशिता   के  कमरे  मे पड़े  बेड  पर खड़े  होने की  कोशिश की लेकिन    लड़खड़ा  कर नीचे  फर्श  पर   गिर  पड़े ।     दादा जी  को  पैर  में  चोट  लगी  थी  वे उठ कर  खड़े   नहीं हो  पा रहे  थे ।   उन्हें  लगा  कि  उनका  पैर टूट  गया  है  ।  इशिता  पहले तो दादा  जी को  गिरता  देखकर    हँसी ।   परन्तु दादा  जी  को  ज्यादा देर से नहीं उठ पाने पर उसे लगा उन्हें ज्यादा चोट लगी है और वह उठ  नहीं  पा रहे हैं।. यह देखकर वह रोने लगी ।  तभी यह देखकर दादा जी एक एकदम से उठ खड़े हुए और हंसने लगे।   इशिका के चेहरे पर यह देखकर मुस्कुराहट आ गई और वह दादू से लिपट गई। 




























शरद कुमार श्रीवास्तव    

आदर्श शिक्षक डाक्टर राधा कृष्णन रचना डॉक्टर पशुपति पाण्डेय


डॉक्टर  पशुपति पाण्डेय  की वर्ष 2017 मे इस पत्रिका मे एक पूर्व  प्रकाशित  रचना






प्रख्यात दर्शनशास्त्री, अध्यापक एवं राजनेता डा. राधाकृष्णन का जन्म पाँच सितम्बर 1888 को ग्राम प्रागानाडु (जिला चित्तूर, तमिलनाडु) में हुआ था। इनके पिता वीरस्वामी एक आदर्श शिक्षक तथा पुरोहित थे। अतः इनके मन में बचपन से ही हिन्दू धर्म एवं दर्शन के प्रति भारी रुचि जाग्रत हो गयी।

उनकी सारी शिक्षा तिरुपति, बंगलौर और चेन्नई के ईसाई विद्यालयों में ही हुई। उन्होंने सदा सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण कीं। 1909 में दर्शनशास्त्र में एम.ए कर वे चेन्नई के प्रेसिडेन्सी कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हो गये। 1918 में अपनी योग्यता के कारण केवल 30 वर्ष की अवस्था में वे मैसूर विश्वविद्यालय में आचार्य बना दिये गये। 1921 में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति के आग्रह पर इन्हें मैसूर के किंग जार्ज महाविद्यालय में नैतिक दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक पद पर नियुक्त किया गया।

1926 में डा. राधाकृष्णन ने विश्वविख्यात हार्वर्ड विश्वविद्यालय में आयोजित दर्शनशास्त्र सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उस प्रवास में अन्य अनेक स्थानों पर भी उनके व्याख्यान हुए। उन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म, परम्परा एवं दर्शन की जो आधुनिक एवं विज्ञानसम्मत व्याख्याएँ कीं, उससे विश्व भर के दर्शनशास्त्री भारतीय विचार की श्रेष्ठता का लोहा मान गये। भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इर्विन की संस्तुति पर इन्हें 1931 में ‘नाइट’ उपाधि से विभूषित किया गया।

1936 में वे विश्वविख्यात अ१क्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने। वे पहले भारतीय थे, जिन्हें विदेश में दर्शनशास्त्र पढ़ाने का अवसर मिला था। डा. राधाकृष्णन संस्कृत के तो विद्वान् तो थे ही; पर अंग्रेजी पर भी उनका उतना ही अधिकार था। यहाँ तक कि जब वे अंग्रेजी में व्याख्यान देते थे, तो विदेश में रहने वाले अंग्रेजीभाषी छात्र और अध्यापक भी शब्दकोश खोलने लगते थे। 1937 से 1939 तक वे आन्ध्र विश्वद्यिालय तथा महामना मदनमोहन मालवीय जी के आग्रह पर 1939 से 1948 तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।

उनकी योग्यता तथा कार्य के प्रति निष्ठा देखकर उन्हें यूनेस्को के अधिशासी मण्डल का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के नाते उन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति में सुधार के सम्बन्ध में ठोस सुझाव दिये। 1946 में उन्हें संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। डा. राधाकृष्णन ने अपने पहले ही भाषण में ‘स्वराज्य’ शब्द की दार्शनिक व्याख्या कर सबको प्रभावित कर लिया।

1949 में वे सोवियत संघ में भारत के राजदूत बनाकर भेजे गये। वहाँ के बड़े अधिकारी अपने देश में नियुक्त राजदूतों में से केवल डा0 राधाकृष्णन से ही मिलते थे। इस दौरान उन्होंने भारत और सोवियत संघ के बीच मैत्री की दृढ़ आधारशिला रखी। 1952 में उन्हें भारतीय गणतन्त्र का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। 1954 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। 13 मई, 1962 को उन्होंने भारत के दूसरे राष्ट्रपति का कार्यभार सँभाला।

देश-विदेश के अनेक सम्मानों से अलंकृत डा. राधाकृष्णन स्वयं को सदा एक शिक्षक ही मानते थे। इसलिए उनका जन्म-दिवस ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं। राष्ट्रपति पद से अवकाश लेकर वे चेन्नई चले गये और वहीं अध्ययन और लेखन में लग गये। 16 अपै्रल, 1976 को तीव्र हृदयाघात से उनका निधन हुआ।





डा. पशुपति पाण्डेय
गोमती नगर, लखनऊ ।




"शिक्षक की शिक्षा" प्रिया देवांगन "प्रियू का बालगीत"






शिक्षक शिक्षा देते हम को, जीवन ज्योति जलाते।
अज्ञानी को राह दिखाते, आगे उसे बढ़ाते।।

इधर उधर की बातें छोड़ो, ईश्वर से मिलवाते।
उज्ज्वल भविष्य बनता सब का, ऊँचाई चढ़ जाते।।
एक सभी बच्चों को रखते, ऐनक आँख लगाते।
ओजस्वी जीवन में लाते, अवसर भी दिलवाते।।

अंकुर से वो वृक्ष बनाते, अहम कभी ना पाले।
दीपक बन कर जलते रहते, जग में करे उजाले।।
कर्तव्यों का पालन करते, खुशियाँ भी फैलाते।
गगन चूमते जब भी बच्चे, घी के दीप जलाते।।

चंचल मन रखते हैं शिक्षक, छल को दूर भगाते।
जीव जंतु से प्रेम सिखाते, झगड़ा शांत कराते।।
टूट टूट कर खुद ही बिखरे, ठोकर भी वो खाते।
डटे रहे बच्चों के खातिर, शिक्षक वो कहलाते।।

ढूँढ ढूँढकर देते उत्तर, पल में फल दिखलाते।।
तोड़ भेद की सभी बेड़ियाँ, थोड़ा कष्ट उठाते।।
दान धर्म है बहुत जरूरी, स्वर्ग नरक को जानें।
प्रतिदिन मिलकर करो प्रार्थना, मानव को पहचानें।।

फल की चिंता कभी न करना, समय बहुत है होते।
भटक राह में हम हैं जाते, मंजिल पाने रोते।।
यश को पाओ रौद्र छोड़ दो, लक्ष्य अगर है जाना।
वैभवशाली मानव बनना, अच्छी शिक्षा पाना।।

षडयंत्रों को दूर भगाना, साहस भी दिखलाना।
हार कभी मन में जागे तो, क्षति कभी न पहुँचाना।।
त्रस्त नहीं होते हैं शिक्षक, गुरू मंत्र दे जाते।
ऋषि मुनि सा तप करते रहते, नैया पार लगाते।।





प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़