मेरा बचपन मेरा गाँव
कच्ची मिट्टी नंगे पाँव
बोरे पर चलता स्कूल
बच्चे करते काँव-काँव ।
सुबह प्रार्थना करते मीत
गाते मिलजुल कर गीत,
सामान्य ज्ञान और फुटहरा
दोहराते ककहरा सप्रीत ।
फिर आती पुस्तक की बारी
बोल- बोलकर पढ़ते सारी
घंटी बजते टिफिन हो गई
खिले फूल ज्यों क्यारी-क्यारी
आड़ी तिरछी टेढ़ी मिर्ची
चित्रकला की घंटी प्यारी
आलू जैसे गोल मटोल
तस्वीर हमारी कितनी न्यारी ।
जब आई खेलों की बारी
जोश जगा औ कमरा खाली,
थैले से उत्साह बिखरता
धरती पग चूम हुई मतवाली ।
छुट्टी में उल्लास बह रहा
गलियाँ उमंग से पूरी भरी
ममता का आँचल सींच रही
अटपटे बोल से रस-गगरी ।
डाॅ प्रभास्क ।
9430365767/
राँची , झारखंड
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