ब्लॉग आर्काइव

रविवार, 26 मार्च 2017

डाॅ प्रभास्क पाठक की रचना : मेरा बचपन मेरा गाँव






मेरा बचपन मेरा गाँव 
कच्ची मिट्टी नंगे पाँव
बोरे पर चलता स्कूल
बच्चे करते काँव-काँव ।

सुबह प्रार्थना करते मीत
गाते मिलजुल कर गीत,
सामान्य ज्ञान और फुटहरा
दोहराते ककहरा सप्रीत । 







फिर आती पुस्तक की बारी
बोल- बोलकर पढ़ते सारी
घंटी बजते टिफिन हो गई
 खिले फूल ज्यों क्यारी-क्यारी

आड़ी तिरछी टेढ़ी मिर्ची
चित्रकला की घंटी प्यारी
आलू जैसे गोल मटोल
तस्वीर हमारी कितनी न्यारी ।

जब आई खेलों की बारी
जोश जगा औ कमरा खाली,
थैले से उत्साह  बिखरता
धरती पग चूम हुई मतवाली ।

छुट्टी में उल्लास बह रहा
गलियाँ उमंग से पूरी भरी
ममता का आँचल सींच रही 
अटपटे बोल से रस-गगरी ।

                               डाॅ प्रभास्क ।
                              9430365767/ 
                               राँची , झारखंड





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें