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रविवार, 26 मार्च 2017

प्रभुदयाल श्रीवास्तव  की रचना : हिंदी दादी अमर रहेगी




हिंदी दादी अमर रहेगी  अंग्रेजी चाची ने हिंदी, दादी पर हमला बोला| डर के मारे दादी जी का, सिंहासन  थर थर डोला| धीरे धीरे दादी अम्मा, घर में से बाहर आई| “मैं वेदों की महरानी हूँ,” जोरों से थी चिल्लाई|
“बड़े बुजुर्गों ने  तो मुझको ,  धर्म करम में ढाला था|  बहुत प्यार से बड़े लाड़ से ,  स्मृतियों ने पाला था|  मेरे पुरखों दादों ने ही,   जग को जीना सिखलाया|  सत्य अहिंसा दया धर्म का,   मार्ग जहाँ को दिखलाया|
 तुम सब नाती पोते, दादी ,  हिंदी को क्या पहचानों|  तुम अधकचरे मात पिता की,  हो अधकच‌री संतानो|  दादी का अस्तित्व अभी तक,   कोई मिटा न पाया है|  नहीं मिटेगी किसी तरह भी ,  अमर हो चुकी काया है|
हिंदी दादी अमर रहेगी , इंग्लिश चाची के घर में| गूंजेगी आवाज़ हमेशा , थल में जल में अंबर में|
प्रभु दयाल श्रीवास्तव छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश

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