जंगल में होली
जब से फागुन माह आया है , जंगल में मस्ती छा गई थी चिंटू बन्दर इस डाल से उस डाल पर कूदकर खेल कूद कर रहा है । कोयल के मीठे गीतों से जंगल संगीतमय हो गया है । पेडों पर नये पत्ते आ गये हैं । इसी संगीतमय वातावरण में कौवे राम ने अपना संगीत घोलना प्रारंभ कर दिया । होली में तो सब चलता है । किसी ने भी कौवे के कर्कश गाने का बुरा नही माना । किसी बात की परवाह किये बगैर, बिना किसी रोक टोक के, शेर महाराज के मांद के ठीक ऊपर वाले पेड़ पर, शेर के सोने के समय, कौवे ने अपना बेसुरा गाना शुरू कर दिया । शेर के महासचिव गीदड़ लाल ने जब कौवे को डाँट लगाई , तो कौवे ने ढिठाई से कहा " होली है भाई होली है बुरा न मानो होली है " और यह कह कर गीदड के सिर पर बीट कर दिया । गीदड़ ने नाराज होकर, महाराजा शेर सिंह को एक बात की चार बात लगाकर कौवे की शिकायत कर दी । महाराजा शेर सिंह बहुत नाराज हुए । उन्होंने एक बार जोर से गर्जना की कि यह कैसी गन्दी सन्दी होली खेली जा रही है । अब से कोई होली नहीं खेलेगा ।
बन्नी खरगोश तो अपनी पिचकारी में रंग भरकर हिरन के ऊपर रंग डालने वाला था । भेड़िया और भालू गुलाल लेकर एक दूसरे के मुँह पर मलने वाले
थे उसी समय महाराजा शेर सिंह ने होली नहीं खेलने का आदेश जारी कर दिया ।
अब क्या था जंगल में खलबली मच गई थी । साल भर के त्यौहार मनाना भी आवश्यक था । सब लोगों ने जब कौवे को भला बुरा कहा तब उसे समझ में आया कि उसने क्या गलती की है । उसने सब जानवरों से माफी मांगी । जंगल के जानवरों की एक बैठक हुई । बैठक में निर्णय लिया गया कि पहले कौवा, महासचिव गीदड़ लाल से क्षमा मांगे फिर गीदड़ से ही महाराजा शेर सिंह के कोप को कम करने का उपाय भी पूछा जाए । जानवरो की एक टीम महासचिव गीदड़ लाल के पास कौवे को अपने साथ लेकर गई । वहाँ जाते ही कौवे ने पहले अपनी भूल स्वीकार की और महासचिव गीदड़ लाल जी से माफी मांगी । गीदड़ लाल ने कहा कि कौवे की टांय टांय के कारण महाराज सो नहीं पाया रहे हैं । आपलोग कुछ ऐसा करो कि महाराज को नींद आ जाय तब महाराज खुशीखुशी सब लोगों को होली खेलने की इजाजत दे देगें, एक बात और है कि किसी को भी गन्दी तरह होली नही खेलने दी जाएगी । फिर क्या था सब जानवर खुश हो गए । कोयल ने खूब सुरीला राग छेडा , धीरे धीरे मतवाली हवा चलने लगी कि महाराज शेर सिंह को नींद आ गई । सोकर उठते ही उन्होंने खुशी खुशी सब जानवरों को होली खेलने की अनुमति दे दी और जंगल में फिर खुशियाँ वापस आ गई
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