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शुक्रवार, 26 मई 2017

सियाराम शर्मा की रचना : अक्षय घट




अक्षय घट

           एक नगर में  चंदर नाम का लड़का अपनी बूढ़ी माँ के साथ रहता था । गरीब होने के कारण बह बहुत दुखी रहता, पर आलस के कारण कोई भी मेेहनत का काम नहीं करना चाहता था । माँ हमेशा उसे समझाती की बह' हाथ  पर हाथ धरे 'क्यों  बैठा रहता है?  कोई काम करने की कोशिश क्यों नहीं करता । बह बस अपने भाग्य को कोसता कि मुझे ऐसे घर में क्यों जन्म दिया जहाँ जीवन की कोई सुख -सुविधा नहीं है ।

एक दिन दुखी होकर उसने  अपना जीवन समाप्त करने की सोची । बह घर से बहुत दूर निकल गया, चलते चलते एक आश्रम के पास पहुँच कर रूक गया । भूख के मारे 'पेट में चूहे कूद रहे थे !' बेहाल होकर गिर गया । निरंजनी साधु ' चरण दास ' जी उस स्थान पर साधना करते थे । उन्होंने उसे बेसुध देख कर उठाया, और अपने आश्रम में रहने की जगह दी । उसकी सारी कहानी सुन कर उन्होंने कहा, 'अरे!  मूर्ख,  मरना तो बड़ा आसान है, पर जीना ही तो सबसे बड़ी तपस्या है । जीवन परमात्मा का उपहार है, इसे नाश करना सबसे बड़ा पाप है  ।' उस लड़के ने कहा में अपनी माँ को कुछ भी सुख नहीं दे पाया, अब मुझसे यह सब सहा नहीं जाता । इसलिए में अपना जीवन खत्म करना चाहता हूँ । 
   साधु ने उसे समझाते हुए कहा कि "ठीक है, मेरे पास एक ऐसा  'घट ' है जो इंसान की सब जरूरत पूरी कर देता है!  पर यदि बह टूट-फूट जाए बह जो उससे मिला है बह सब भी  खत्म हो जाएगा । मैंने इस घड़े को बनाने की विद्या अपने गुरूजी की  सेवा से पायी है । तुम्हें मेरे पास  कुछ दिन रहकर सेवाएं देनी होंगी ।

अगले  तुम मेरे पास रहो तो  में तुम्हें "अक्षय घट " बनाने की कला भी   सिखा दुंगा!  पर इसके लिए तुम्हें यहाँ पाँच साल रहना होगा ।
  लड़के ने कहा कि मुझे तो आप बह 'अक्षय घट' ही दे दें । में  बहुत  सम्हाल कर रखूंगा । जरा भी  ठेस नहीं  लगने  पायेगी ।  कुछ समय के बाद बह "घट " लेकर लौटा! 
अब तो  कुछ दिनों में ही उसके सब साधन आगये । जो चाहिए बह घट से माँग लेता । धीरे -धीरे उसका आलस्य बढ़ता ही गया । "अक्षय घट " को बहुत सम्हाल कर रखता । धीरे -धीरे  विलासी हो गया । सभी दुर्गुणों में डूबता गया । एक दिन  नशे में ठोकर खाकर खुद "अक्षय घट"पर गिर गया । गिरते ही घट के टुकडे -टुकड़े हो गए । उसके साथ ही  जादूई दुनिया भी गायब हो गई । 
अब  तो बह बहुत पछताया कि काश में  "घट बनाने का कौशल सीख लेता तो  ,आज में इतना बेकार नहीं रहता । " 
जीवन में विद्या एवं कौशल का महत्व उसे समझ आचुका था ।

                            सियाराम  शर्मा  
                            डीडवाना जिला नागौर,
                            राजस्थान
                        

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : बेबी की चिड़िया







आई चिड़िया चूं चूं करती
बैठ पेड़ पे मेरा मन हरती
कंठ सुरीला मधुर है वानी
सुनाती सबको राम कहानी

दाना खाना उड फिर जाना
बेबी से मिलने वापस आना
बेबी चिड़िया खूब बतियाते
यहाँ-वहाँ की बातें करते जाते

बेबी बोली कल जल्दी आना
मेरे हाथ से तुम दाना खाना
चिडिया बोली बड़ी हो जाओ
फिर तुम एक पौधा उपजाओ

                           शरद  कुमार  श्रीवास्तव 

वीनम नामा का बालगीत : हमारे वृक्ष




वृक्ष हमारे  जीवनदाता
हमने उन्हें सदा है काटा
तब भी वे हमे प्यार करें
जैसे करती हमारी माता



वृक्ष हमारे  जीवनदाता
उन्हें सदा प्रदूषण बाटा
तब भी वे हमे प्यार करें 
जैसे करती हमारी माता


वृक्ष हमारे  जीवनदाता
हमारे ऑक्सीजन दाता 
वृक्ष पे हमने चोट किया 
पेड हमेशा सहता जाता 



वृक्ष हमारे  जीवनदाता
हमने लकड़ी हेतु काटा
तब भी वे हमे प्यार करें 
जैसे करती हमारी माता


                            वीनम नामा
                            कक्षा  सात,
                           रुक्मणी  देवी  पब्लिक  स्कूल 
                           पीतमपुरा,  नई  दिल्ली  














सुधा वर्मा की रचना : माँ मेरी माँ



खड़ी हूं माँ मैं नीम की छाँव में।

यादों की बरसात हो रही है माँ।

जब तक थी तेरी ममता की छाँव,

होता आभास 

 इस नीम की छाँव की तरह

 बरसात में तेरी आँचल 

 का रुमाल बना मुँह पोछा करती थी।

 काली मिर्च घी पीने दिया करती थी।

 चुल्हे के पास बैठा कर 

 अंगाकर खिलाया करती थी।

 ठंड में वही आँचल 

 बन जाया करता था

  एक गरम कपड़ा 

  रह रह कर तेरी साड़ी में 

  छुपा करती थी

 चाँदनी दिखा कर उनके बारे में 

 बताया करती

 कौन है ?किस तारे में बताया करती थी।

 छोटी छोटी कहानियों से,

 जीवन के दर्शन समझाया करती थी।

 जीवन होता नहीं नष्ट

 बस रुप बदल जाया करता है।

 पौधों में भी संवेदना और प्यार होता है

 माँ तू ने ही यह समझाया था।

 तपती गर्मी में भी 

 तेरे आँचल की छाँव ही थी

 आज नीम की छाँव में भी 

 वह ठंडक नहीं माँ 

 जो तेरी ममता में थी।

 जब होती स्कूल से आने में देरी।

 हाथ जोड़े खड़ी मिलती थी

 भगवान के सामने।

 तेरी दुवायें ही थी जिसने बचाया मुझे 

 इस दुनियां के थपेड़े से।

 मां याद आता है वह बिदाई का छण

 सिसकती दबी आवाज।

 दिल को जैसे निकाल कर

 दे रही हों किसी को।

 इतने सालों के प्यार को समेट कर

  बिदा कर दिया 

  दूसरे के चौखट पर।

  हर दिन जोहती बाट बेटी के आने की।

  माँ ,तूने कहाँ बिदा किया था?

  दिल में रखी थी उन यादों को

  बचपन की शैतानियों को

  उन खिलौनों को ,

  जो रखे थे अब भी आलमारी के 

  कुछ खानों में।

  जिस दिन आया अपूर्व 

  तो जैसे तूझमें भी जीवन आ गया।

  अपनी कृति की कृति को देखना 

  कितना रोमांचक था।

  पर साथ न था ज्यादा माँ तेरा

  कितने अरमान से लिया था तूने 

  कपड़े और खिलौने

  पर जन्मदिन के ग्यारह दिन पहले ही 

  तूने अपना धाम बदल दिया।

  आज भी याद है माँ जब तूने

  अस्पताल के बिस्तर पर भी धर्मयुग 

  और हिन्दूस्तान पढ़ने को मांगा था।

  चिंता थी तुझे अपनी तीन गायों की

  जिसे देखने मुझे भेजा करती थी।

  बार बार अपूर्व के गालों को छूकर 

  उसे देखने की ही बात करती थी।

  मातृत्व अब भी टपक रहा था

  चिंता नहीं थी अपने जाने की 

  बार बार कहती थी

   माँ मुझे बुला रही है,

   पर मुझे छु छुकर प्यार 

   किया करती थी।

   नह़ी है मलाल मुझे माँ ।

   मै थी तेरे साथ अंतिम छण तक।

   अंतिम विदाई ने तो तोड़ दिया

   पर माँ तूने जीना जो सिखाया था

   हर परिस्थिती से लड़ना सिखाया था।

   मै आज तक लड़ रही ह़ू 

   साथ तेरा हर पर महसूस कर रही हूं।

   यह नीम की छाँव की तरह तू मेरे साथ है।

   हर छड़ दुख तकलीफ को

   अपनी ममता की यादों की फुहार से

   शीतलता देती है।

   माँ मेरी माँ,

   आज भी तू मेरे साथ है।

   याद आती है तेरी तो तारों को

    देख लिया करती हूं।

    माँ मेरी माँ।

    


                     सुधा वर्मा 
                    प्लाट नम्बर 69,सुमन
                    सेक्टर -1,गीतांजली नगर,रायपुर ,छत्तीसगढ़
                    पिन,492001
                    sudhaverma55@gmail.com





सपना मांगलिक की रचना : चिडिया






चिड़िया पानी पीती है
मटकी उसकी रीती है 
चिड़िया उड़ उड़ जाती है 
चोंच  बीज भर लाती है
धरती में उगाती है
बीज वृक्ष बन जाता है 
बादल को बुलाता है
बादल बारिश लाते हैं 
पौधे फिर लहलहाते हैं
धरती हरित बनाते हैं 
सुंगंध पुष्प की फैली है 
चिड़िया देखो चहकी है।

                        सपना मांगलिक

यशिता गुप्ता की बालकथा : जादुई डिब्बा




एक  गांव  था  ।   उस गांव  में  चार लडके रहते थे ।  चारों  लडके बडे़  मेहनती  थे।   वे  अपने  माता पिता  के खेती  के  कामों  में  बहुत  मदद  करते थे ।  एक  दिन  उस  गांव  में  रंगीला  नाम का एक  आदमी  आया ।  उसके  पास  एक  अनमोल  जादुई  डिब्बा  था ।   वह गांव  के  लोगों  को  उस डिब्बे  से अजीबोगरीब  जादू दिखाया  करता था।  जिससे  लोग  आश्चर्य चकित  हो  जाते  थे ।   एक दिन  रंगीला  के  हाथ  से  वह  जादुई  डिब्बा छूट  कर गिर गया  जिससे उस गांव  में   बहुत  प्रदूषण  फैला ।   गांव  वालों  को बहुत  नुकसान  हुआ  ।   चार  साल  बीत  जाने  के  बाद  भी उस गांव  से    प्रदूषण  किसी  तरह  से  कम  नहीं  हो रहा था ।   गांव  के  लोग  बहुत परेशान  हो  रहे  थे ।    इस  पर  वे चारो   लड़के  जो शहर से  पढ़ाई  कर के  आये थे,  ने  बताया,  कि  गांव  के लोगों  को  और पेड़  लगाने  चाहिए  ।   पेड़ों  को  लगाने से  प्रदूषण  नियंत्रण  में  होता  है  ।   गांवालों  को  उनकी  बात  समझ  में  आई ।  उन्होंने उस    साल  खूब  पेड़  लगाए  ।  अब वहाँ  प्रदूषण  काफी  कम  हो  गया  है  और रंगीला  भी उस गांव  को छोड़कर  अन्य  किसी  स्थान  पर  चला गया  है ।


यशिता गुप्ता
कक्षा  6 एफ
प्रिसिडियम स्कूल
सेक्टर 57, में फील्ड गार्डन
गुरूग्राम, हरियाणा





मास्टर अद्वित कुमार की अंग्रेजी रचना ; The futuristic world




Once upon  a time there was child named Divyesh.  One day  he was walking in his society compound  .   A paper came and stuck on his face. He took that paper and was amused  to see what was written on that paper.  There were 3 magical keys displayed  in the paper for going  to the world of science.   He  thought  to adventure  the world of science and so  he decided to operate all  those 3 magical keys.   he followed the directions to the 1st  key and then he followed the directions to the 2nd key and then the 3rd key. Then on that paper, after finding all the 3 keys he saw a left , left  , right  , left  , right  , right , left  , left  , left , left  , left , arrows to  follow . Then he followed all  the directions but on the last directions 2 guards came and asked him for those 3 magical keys,  he gave the keys to the guards and then the guards  allowed him to cross the road. After his first step he came to the world of science. He saw futuristic vehicles like flying car  , 2 kilometres long  bikes which can take 50 people in one go  and many surprising  things of a future  world.  He saw the technology of the next generation.  He enjoyed very much over there and came back joyfully.

                                  Adwit Kumar
                                 class 5
                                 DAV  Public  School
                                 Pushpanjali enclave
                                 Pitampura, New  Delhi


मंगलवार, 16 मई 2017

बुशरा तब्बसुम का बालगीत: नहीं बनना घोड़ा




कल मैं खुश था थोड़ा थोड़ा
मैने सोचा मै हूँ घोड़ा
टकबक टकबक खूब चलूँगा
अब तो चारे पर ही पलूँगा
दूध वूध ना पीना पड़ेगा
कोई भी नही मुझसे लड़ेगा
लेकिन कोई चढ़ बैठा तो?
मेरे कानो को ऐंठा तो?
पीठ पे चाबुक दे मारेगा
जोश मेरा सारा हारेगा
झट से मैने सपना तोड़ा
मुझको तो नही बनना घोड़ा ।

                                                       बुशरा तब्बसुम

संपादकीय : शरद कुमार श्रीवास्तव


                                                           
                                                               मां सरस्वती जी  की जय


प्रिय  पाठकों


आप सभी  का अपनी  और  "नाना  की  पिटारी" की  ओर  से  हार्दिक  स्वागत  है।    4  फरवरी को आपकी पत्रिका ' नाना की पिटारी ' के अंतर्जाल  पर प्रकाशित  होते हुए 3 वर्ष पूरे हो गए थे      पिछले  तीन वर्षो की  यात्रा     में नाना की पिटारी  ने, लगभग  525 , पठन सामग्री प्रकाशित  किया था  ।   इनमे  बालगीत, बालकथाएँ ,चुटकुले ,पहेलियों के अलावा ज्ञानवर्धक और मनोरंजक अन्य सामग्रियां  भी सम्मिलित    रहीं हैं।    लेकिन जैसा कि आप सबको विदित है  किन्हीं तकनीकी​  कारण से वह सभी कृतियां​ अंतर्जाल से लुप्त हो गई थी।. हमने पीछे मुड़ कर नहीं देखा कि हमने क्या खोया और आप सबके प्यार के दम पर आगे चलते जा रहे हैं।

हमे आपको  यह बताते  हुए  खुशी  हो रही  है   बाल साहित्य  लेखन  में  राष्ट्रीय  स्तर  के  ख्याति  प्राप्त  रचनाकार   सर्वश्री  प्रभु दयाल श्रीवास्तव,  डॉ  प्रदीप  शुक्ला  भाई शादाब  आलम जी तथा उपासना  बेहार जी की रचनाएँ  हम लगातार  प्रकाशित  करते  रहे हैं  वही नये रचनाकारों श्रीमती मधु त्यागी जी, भाई महेंद्र देवांगन​ , कुमारी प्रिया देवांगन प्रियू,  भुवन बिष्ट जी आदि  की  रचनाओं  ने   नाना  की  पिटारी को सुशोभित  किया है हम सभी  रचना  कारो को   धन्यवाद ज्ञापित  करते  हैं  ।


हिन्दी लेखन की और हम संकल्पित हैं परन्तु  आजकल  बहुत  बच्चे  अंग्रेजी   माध्यम के स्कूलों में पढ़ते हैं उनकी  रचनात्मक  प्रतिभा  को  निखारने  के  लिए  उन्हें  भी  सुयोग  प्रदान  करना  है अतः हमने अंग्रेजी​ की अच्छी रचनाओं को भी इस पत्रिका  में सम्मिलित करने का निर्णय लिया है  ।    इस क्रम में हमारी पत्रिका में काफी समय से  लिखती रही कयियत्री श्रीमती सपना मांगलिक जी के सुपुत्र सारांश की कविता  Lucky​ Bamboo  से प्रारंभ कर रहे है।. 

अंत मे सभी पाठकों  और  शुभेक्षकों से निवेदन  है  कि  इस  पत्रिका के  लिंक   को ईमेल  , फेसबुक  और वाट्सएप  में  शेयर  करके  अधिक   से अधिक  लोगों  तक  पहुंचाएं ताकि  इस निशुल्क  पत्रिका  का  लाभ  अधिक  से  अधिक  लोगों  तक  पहुंच सके। 

धन्यवाद


                                                          शरद  कुमार  श्रीवास्तव

                                                          संपादक        

सीतारमन की बालकथा : शाही पत्थर

वयोवृद्ध  कवि सीतारमन जी  के  बारे में  उनका परिचय  उनके  द्वारा  दी  गई  जानकारी  के  अनुसार  निम्न लिखित  है

संस्कारी परिवार में जन्मे बालक को जन्म से ही अपनी संस्कृति को जीने का अवसर मिला । निम्न- मध्यम वर्ग की विषमताओं से रूबरू होने का अवसर मिला । इसी स्नेह को  समाज में बाँटने का प्रयास विचार ही लेखन कर्म में रूपांतरित हो रहा है ।
  व्याख्याता, प्राचार्य (पूजा इंटरनेशनल एकेडमी )
सेवानिवृत्ति 2003 !
राजस्थान, नागौर जिला, तहसील -डीडवाना
डीडवाना राजस्थान की तीन नमक झीलों में से एक  है


प्रस्तुत  है  सीतारमन जी की एक  बालकथा  "शाही पत्थर "

शाही  पत्थर

बहुत समय पहले बगदाद में एक सुलतान राज्य करता था । बह अपनी राजधानी में घूमने निकला । सड़कों पर घूमते घूमते बह राजमार्ग के पास सराय के निकट पहुंचा ही था, कि उसे एक गरीब आदमी दिखाई दिया । बह अपनी पीठ पर एक भारी पत्थर का बोझ लिए पसीने से तरबतर हो रहा था  । कमर टूटी जा रही थी, पर फिर  भी ढोए जा रहा था ।सुलतान ने  दया दिखाते हुए उससे कहा, "बाबा !  इस भारी पत्थर के बोझ को यहीं उतार दो ।पत्थर को नीचे  गिरा दो ।" शाही हुक्म की पालना करते हुए उसने उस पत्थर को बहीं गिरा दिया । 
  शाही  आज्ञा का तुरंत पालन हुआ । बह पत्थर सड़क के बीचों बीच पड़ा रहा । साल पर साल बीतते गए । पत्थर बहीं बीच सड़क पर पड़ा रहा  । सब निकलते रहे पर कोई भी उसे हटा न सका । वर्ष पे वर्ष बीत ते रहे । पत्थर राहगीरों को बाधा बन कर वर्षों पड़ा रहा । 
अब उसे कोई हटाए कैसे  ? सम्राट की  आज्ञा से जो गिराया गया था । जरूर कोई खास बात होगी । सम्राट के हुक्म से रखा पत्थर जरूर कोई राज होगा । अब तो जो निकले बह उस पत्थर को भी सलाम करे । शाही पत्थर जो ठहरा । पत्थर बहीं पड़ा रहा ।अब किसकी हिम्मत की  पत्थर बहाँ से उठाए । सम्राट की आज्ञा से रखा पत्थर सम्राट की आज्ञा से ही उठाया जा सकता था । सम्राट भी भूल गए । फिर लोग पहुँचे सम्राट के पास कि बहुत परेशानी हो रही है । आप का हुक्म हो तो पत्थर हटा दिया जाए। अब सुलतान ने सोचा कि हटाया जाए या नहीं । मंत्रियों से सलाह ली गयी । सबने कहा  ,"हजूर!  जब एक बार  शाही  हुक्म से  पत्थर रखवा दिया गया, तो अब वैसे  ही समान हुक्म से हटाया नहीं जा सकता  ।" सुलतान ने पूछा, " क्यों? " मंत्रिमंडल ने राय जाहिर की  ," इससे लोग सोचेंगे कि शाही  फरमान बस झक से प्रेरित होते हैं, इसलिए पत्थर बहीं रहेगा । "
   सम्राट मर गया, उसके बाद कई सम्राट आये गये पर पत्थर आज भी जस का तस बहीं है । उसके चारों ओर चबूतरा बन गया है और लोग सुबह शाम जाकर उसकी पूजा करते हैं । मन्नतें माँगते हैं । 




                            सियारमन (बोधि पैगाम  )

सपना मांगलिक की कविता जीवन





जीवन

कुछ भी जीवन में हो जाए
दुःख आ जाएँ,सुख खो जाए
नहीं तनिक उदासी लाओ
जीवन पथ पर बढ़ते जाओ

सब अपना न कुछ मेरा है
ये जग दो दिन का डेरा है
नाचो - गाओ ,हँसो-हँसाओ
हर पल तुम त्यौहार मनाओ

एक दूजे से क्योंकर लड़े हैं
जीवन छोटा काम बड़े हैं
रोते मुख मुस्कान खिलाओ
 सद्कर्मों में खुदको लगाओ 

जीवन होगा सफल तब बच्चे 
जब काम करोगे अच्छे - अच्छे
इंसा महान तुम कहलाओगे
मरकर भी जीवन पाओगे।



                        सपना मांगलिक
                       आगरा 

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : मेघराजा




मेघ-राजा


मेघ राजा जल्दी  तू आजा

पानी को जल्दी बरसाजा

धरती सारी सूखी पडी है

पानी तू जल्दी  बरसाजा


तू है सब मौसम का राजा

आजा अब तू जल्दी आजा

धरती सारी फिर झूम उठे

ऐसे तू अब जल बरसाजा



                      शरद  कुमार  श्रीवास्तव 

मधु त्यागी का बालगीत : मेला




मेला
राहुल, रिहा, पल्लवी, पारुल
और सुरभी, दामिनी
सब मिलकर पहुॅंचे मेले में।
वहाॅं बहुत दुकाने थीं।

भीड़ बहुत थी, शोर बहुत था
लेकिन मेला अच्छा था। 
राहुल रिहा बैठे झूले में,
झूला बहुत ही ऊॅंचा था।
ऊपर जाता, नीचे आता,
नीचे आता, ऊपर जाता,
मज़ा बहुत ही आता था।
पल्लवी, पारुल ने लिए खिलौने,

प्यारे- प्यारे और सलोने,
गाने वाली गुड़िया थी और 
चाबी वाला बंदर था।
सुरभी, दामिनी लाई मिठाई,
छोटे - छोटे रसगुल्ले थे और
रस में भीगी रसमलाई।
दोनों ने मिलकर खूब खाई।   

               


                             मधु त्यागी
                            ओ- 458 , जलवायु विहार
                            सैक्टर- 30 गुरूग्राम हरियाणा ।



सारांश मांगलिक की अंग्रेजी कविता Lucky Bamboo

हमारी पत्रिका  द्वारा  लिये एक निर्णय  के  तहत् हमारी टीम  की कवियत्री  श्रीमती  सपना  मांगलिक जी  के  सुपुत्र मास्टर  सारांश  मांगलिक   की अंग्रेजी  की  कविता   Lucky Bamboo  नाना  की  पिटारा में   प्रकाशित  की  जा  रही  है  ।   सारांश  को  ढेर  सारा  प्यार   और आशीर्वाद

शरद कुमार  श्रीवास्तव


                                       Lucky bamboo



my aunt  presented me 

a gift new

did you get it

or needs a clue?

its neither  a toy,  nor shampoo

it is my lucky bamboo

looks fresh . has  no odour 

it  has become  my friend 

never makes me bore

if you  water   it and

keeps  away from light

its leaves  will soon grow

glossy and bright

strong storm when arrive

bamboo fights  like hero 

   always survives .



                          poet _ saransh manglik
                          grade 2 h dps agra

संकलित पहेलियां




1  बिना ज्ञान के खाते हैं
    बाद में वे  पछताते  हैं।                                      धोखा

2 पीली नदी  में  पीले  अंडे
    आओ खाओ नहीं  पडेंगे डन्डे।                           कढ़ी

3 काली है पर नहीं  हूँ काग
    लम्बी सी पर नहीं रे नाग
    बलखाती  इठलाती हूँ  मैं
    उत्तर  दो या जाओ भाग।                                    चोटी

4  बीमार  नहीं  खाती है  गोली
    प्यारी नहीं है इसकी बोली।                                बन्दूक
   
5   हरी  टाँग पर  लाल झंगोला
     सी  सी करके  हर कोई  बोला।                         मिर्च

6  टार्च  भी और घड़ी  भी
     गीतों  की  लम्बी  लड़ी भी
     एल्बम  कितने  चित्र दिखाए
     सवालो के हल ढूंढ  के  लाए।                        मोबाइल



                                   शरद  कुमार  श्रीवास्तव
   


शनिवार, 6 मई 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत :गर्मी आई




गर्मी आई

आई गर्मी भाईआई गर्मी
लू उड़ाती भाई आई गर्मी
ऐ सी कूलर चलते जाते
पंखे कभी न रुकने पाते
हर पल यहाँ पसीना आता
गरमी से है दिल घबराता
कैसा कहर मचाती आई
बड़ी भयानक गर्मी आई


नानू आप बेकार डरवाते
गर्मी का मजा नहीं उठाते

आइस क्रीम गर्मी मे खाते
कुल्फीमलाई गर्मी में खाते
खरबूजा आम गर्मी मे आता
तरबूज लीची हैं हमे लुभाता
किताबों से छुटकारा पाते
स्कूल भी तो बन्द हो जाते

शरद  कुमार  श्रीवास्तव 

प्रभु दयाल श्रीवास्तव का बालगीत : चने और नाक

   

 
 अम्मा ने डाँटा टुल्ली को,
      तेवर कड़े दिखाए।
      अगर नहीं कहना माना तो,
      नाक चने चबवाये।

      टुल्ली बोली मुझे बनाय  
     क्यों इस तरह निकम्मा।
      चने नाक से चबते कैसे,
      नहीं जानती अम्मा।

      तुम्हीं नाक से चने चबाकर,
      मुझको जरा बताओ।
      नाक चने के इस प्रयोग को,
      दुनियां को समझाओ।

    अम्मा पर ही इस मुहावरे ,
   का प्रयोग अब भारी
  क्या जबाब दे इस कारण से,   
   है  चुप चाप बेचारी

प्रभु दयाल श्रीवास्तव
12 शिवम सुन्दरम नगर
छिन्दवाडा
मध्य  प्रदेश 

शादाब आलम की बालकविता : चोरी की आदत





चोरी की आदत

चुन्नू की थाली से बन्दर
लेकर भागा रोटी।
छत पे पहुंचा तो चींटी ने
काटी उसे चिकोटी।
बन्दर बोला भाग यहाँ से
ओ चींटी की बच्ची।
चींटी बोली चोरी करना
है आदत ना अच्छी।

                       शादाब  आलम
                       लखनऊ 

प्रिया देवांगन "प्रियू" का बालगीत : नाना की पिटारी में


नाना  की पिटारी में ( बालगीत )



बढ़िया बढ़िया खेल खिलौने, नाना की पिटारी में ।

आओ झूमे नाचे गाये  , नाना की पिटारी में ।

छुकछुक छुकछुक रेलगाड़ी, नाना की पिटारी में ।

सैर करे हम जंगल झाड़ी , नाना की पिटारी में ।

शेर भालू हिरण चीता,   नाना  की  पिटारी में ।

खेले कूदे नाचे सीता,   नाना की पिटारी में ।

गीत कहानी गजल कविता, नाना की पिटारी में। पहाड़ पर्वत झरना सरिता,  नाना की पिटारी में ।

कोयल गाये मोर  नाचे , नाना की पिटारी में ।

बंदर मामा पुस्तक बांचे, नाना की पिटारी में ।

धूम धड़ाका करते भालू, नाना की पिटारी में ।

डंडा लेकर दौड़े लालू, नाना की पिटारी में ।



                              प्रिया देवांगन "प्रियू"

                              पंडरिया छत्तीसगढ़