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शुक्रवार, 26 मई 2017

सुधा वर्मा की रचना : माँ मेरी माँ



खड़ी हूं माँ मैं नीम की छाँव में।

यादों की बरसात हो रही है माँ।

जब तक थी तेरी ममता की छाँव,

होता आभास 

 इस नीम की छाँव की तरह

 बरसात में तेरी आँचल 

 का रुमाल बना मुँह पोछा करती थी।

 काली मिर्च घी पीने दिया करती थी।

 चुल्हे के पास बैठा कर 

 अंगाकर खिलाया करती थी।

 ठंड में वही आँचल 

 बन जाया करता था

  एक गरम कपड़ा 

  रह रह कर तेरी साड़ी में 

  छुपा करती थी

 चाँदनी दिखा कर उनके बारे में 

 बताया करती

 कौन है ?किस तारे में बताया करती थी।

 छोटी छोटी कहानियों से,

 जीवन के दर्शन समझाया करती थी।

 जीवन होता नहीं नष्ट

 बस रुप बदल जाया करता है।

 पौधों में भी संवेदना और प्यार होता है

 माँ तू ने ही यह समझाया था।

 तपती गर्मी में भी 

 तेरे आँचल की छाँव ही थी

 आज नीम की छाँव में भी 

 वह ठंडक नहीं माँ 

 जो तेरी ममता में थी।

 जब होती स्कूल से आने में देरी।

 हाथ जोड़े खड़ी मिलती थी

 भगवान के सामने।

 तेरी दुवायें ही थी जिसने बचाया मुझे 

 इस दुनियां के थपेड़े से।

 मां याद आता है वह बिदाई का छण

 सिसकती दबी आवाज।

 दिल को जैसे निकाल कर

 दे रही हों किसी को।

 इतने सालों के प्यार को समेट कर

  बिदा कर दिया 

  दूसरे के चौखट पर।

  हर दिन जोहती बाट बेटी के आने की।

  माँ ,तूने कहाँ बिदा किया था?

  दिल में रखी थी उन यादों को

  बचपन की शैतानियों को

  उन खिलौनों को ,

  जो रखे थे अब भी आलमारी के 

  कुछ खानों में।

  जिस दिन आया अपूर्व 

  तो जैसे तूझमें भी जीवन आ गया।

  अपनी कृति की कृति को देखना 

  कितना रोमांचक था।

  पर साथ न था ज्यादा माँ तेरा

  कितने अरमान से लिया था तूने 

  कपड़े और खिलौने

  पर जन्मदिन के ग्यारह दिन पहले ही 

  तूने अपना धाम बदल दिया।

  आज भी याद है माँ जब तूने

  अस्पताल के बिस्तर पर भी धर्मयुग 

  और हिन्दूस्तान पढ़ने को मांगा था।

  चिंता थी तुझे अपनी तीन गायों की

  जिसे देखने मुझे भेजा करती थी।

  बार बार अपूर्व के गालों को छूकर 

  उसे देखने की ही बात करती थी।

  मातृत्व अब भी टपक रहा था

  चिंता नहीं थी अपने जाने की 

  बार बार कहती थी

   माँ मुझे बुला रही है,

   पर मुझे छु छुकर प्यार 

   किया करती थी।

   नह़ी है मलाल मुझे माँ ।

   मै थी तेरे साथ अंतिम छण तक।

   अंतिम विदाई ने तो तोड़ दिया

   पर माँ तूने जीना जो सिखाया था

   हर परिस्थिती से लड़ना सिखाया था।

   मै आज तक लड़ रही ह़ू 

   साथ तेरा हर पर महसूस कर रही हूं।

   यह नीम की छाँव की तरह तू मेरे साथ है।

   हर छड़ दुख तकलीफ को

   अपनी ममता की यादों की फुहार से

   शीतलता देती है।

   माँ मेरी माँ,

   आज भी तू मेरे साथ है।

   याद आती है तेरी तो तारों को

    देख लिया करती हूं।

    माँ मेरी माँ।

    


                     सुधा वर्मा 
                    प्लाट नम्बर 69,सुमन
                    सेक्टर -1,गीतांजली नगर,रायपुर ,छत्तीसगढ़
                    पिन,492001
                    sudhaverma55@gmail.com





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