वयोवृद्ध कवि सीतारमन जी के बारे में उनका परिचय उनके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार निम्न लिखित है
संस्कारी परिवार में जन्मे बालक को जन्म से ही अपनी संस्कृति को जीने का अवसर मिला । निम्न- मध्यम वर्ग की विषमताओं से रूबरू होने का अवसर मिला । इसी स्नेह को समाज में बाँटने का प्रयास विचार ही लेखन कर्म में रूपांतरित हो रहा है ।
व्याख्याता, प्राचार्य (पूजा इंटरनेशनल एकेडमी )
सेवानिवृत्ति 2003 !
राजस्थान, नागौर जिला, तहसील -डीडवाना
डीडवाना राजस्थान की तीन नमक झीलों में से एक है
प्रस्तुत है सीतारमन जी की एक बालकथा "शाही पत्थर "
शाही पत्थर
बहुत समय पहले बगदाद में एक सुलतान राज्य करता था । बह अपनी राजधानी में घूमने निकला । सड़कों पर घूमते घूमते बह राजमार्ग के पास सराय के निकट पहुंचा ही था, कि उसे एक गरीब आदमी दिखाई दिया । बह अपनी पीठ पर एक भारी पत्थर का बोझ लिए पसीने से तरबतर हो रहा था । कमर टूटी जा रही थी, पर फिर भी ढोए जा रहा था ।सुलतान ने दया दिखाते हुए उससे कहा, "बाबा ! इस भारी पत्थर के बोझ को यहीं उतार दो ।पत्थर को नीचे गिरा दो ।" शाही हुक्म की पालना करते हुए उसने उस पत्थर को बहीं गिरा दिया ।
शाही आज्ञा का तुरंत पालन हुआ । बह पत्थर सड़क के बीचों बीच पड़ा रहा । साल पर साल बीतते गए । पत्थर बहीं बीच सड़क पर पड़ा रहा । सब निकलते रहे पर कोई भी उसे हटा न सका । वर्ष पे वर्ष बीत ते रहे । पत्थर राहगीरों को बाधा बन कर वर्षों पड़ा रहा ।
अब उसे कोई हटाए कैसे ? सम्राट की आज्ञा से जो गिराया गया था । जरूर कोई खास बात होगी । सम्राट के हुक्म से रखा पत्थर जरूर कोई राज होगा । अब तो जो निकले बह उस पत्थर को भी सलाम करे । शाही पत्थर जो ठहरा । पत्थर बहीं पड़ा रहा ।अब किसकी हिम्मत की पत्थर बहाँ से उठाए । सम्राट की आज्ञा से रखा पत्थर सम्राट की आज्ञा से ही उठाया जा सकता था । सम्राट भी भूल गए । फिर लोग पहुँचे सम्राट के पास कि बहुत परेशानी हो रही है । आप का हुक्म हो तो पत्थर हटा दिया जाए। अब सुलतान ने सोचा कि हटाया जाए या नहीं । मंत्रियों से सलाह ली गयी । सबने कहा ,"हजूर! जब एक बार शाही हुक्म से पत्थर रखवा दिया गया, तो अब वैसे ही समान हुक्म से हटाया नहीं जा सकता ।" सुलतान ने पूछा, " क्यों? " मंत्रिमंडल ने राय जाहिर की ," इससे लोग सोचेंगे कि शाही फरमान बस झक से प्रेरित होते हैं, इसलिए पत्थर बहीं रहेगा । "
सम्राट मर गया, उसके बाद कई सम्राट आये गये पर पत्थर आज भी जस का तस बहीं है । उसके चारों ओर चबूतरा बन गया है और लोग सुबह शाम जाकर उसकी पूजा करते हैं । मन्नतें माँगते हैं ।
सियारमन (बोधि पैगाम )
संस्कारी परिवार में जन्मे बालक को जन्म से ही अपनी संस्कृति को जीने का अवसर मिला । निम्न- मध्यम वर्ग की विषमताओं से रूबरू होने का अवसर मिला । इसी स्नेह को समाज में बाँटने का प्रयास विचार ही लेखन कर्म में रूपांतरित हो रहा है ।
व्याख्याता, प्राचार्य (पूजा इंटरनेशनल एकेडमी )
सेवानिवृत्ति 2003 !
राजस्थान, नागौर जिला, तहसील -डीडवाना
डीडवाना राजस्थान की तीन नमक झीलों में से एक है
प्रस्तुत है सीतारमन जी की एक बालकथा "शाही पत्थर "
शाही पत्थर
बहुत समय पहले बगदाद में एक सुलतान राज्य करता था । बह अपनी राजधानी में घूमने निकला । सड़कों पर घूमते घूमते बह राजमार्ग के पास सराय के निकट पहुंचा ही था, कि उसे एक गरीब आदमी दिखाई दिया । बह अपनी पीठ पर एक भारी पत्थर का बोझ लिए पसीने से तरबतर हो रहा था । कमर टूटी जा रही थी, पर फिर भी ढोए जा रहा था ।सुलतान ने दया दिखाते हुए उससे कहा, "बाबा ! इस भारी पत्थर के बोझ को यहीं उतार दो ।पत्थर को नीचे गिरा दो ।" शाही हुक्म की पालना करते हुए उसने उस पत्थर को बहीं गिरा दिया ।
शाही आज्ञा का तुरंत पालन हुआ । बह पत्थर सड़क के बीचों बीच पड़ा रहा । साल पर साल बीतते गए । पत्थर बहीं बीच सड़क पर पड़ा रहा । सब निकलते रहे पर कोई भी उसे हटा न सका । वर्ष पे वर्ष बीत ते रहे । पत्थर राहगीरों को बाधा बन कर वर्षों पड़ा रहा ।
अब उसे कोई हटाए कैसे ? सम्राट की आज्ञा से जो गिराया गया था । जरूर कोई खास बात होगी । सम्राट के हुक्म से रखा पत्थर जरूर कोई राज होगा । अब तो जो निकले बह उस पत्थर को भी सलाम करे । शाही पत्थर जो ठहरा । पत्थर बहीं पड़ा रहा ।अब किसकी हिम्मत की पत्थर बहाँ से उठाए । सम्राट की आज्ञा से रखा पत्थर सम्राट की आज्ञा से ही उठाया जा सकता था । सम्राट भी भूल गए । फिर लोग पहुँचे सम्राट के पास कि बहुत परेशानी हो रही है । आप का हुक्म हो तो पत्थर हटा दिया जाए। अब सुलतान ने सोचा कि हटाया जाए या नहीं । मंत्रियों से सलाह ली गयी । सबने कहा ,"हजूर! जब एक बार शाही हुक्म से पत्थर रखवा दिया गया, तो अब वैसे ही समान हुक्म से हटाया नहीं जा सकता ।" सुलतान ने पूछा, " क्यों? " मंत्रिमंडल ने राय जाहिर की ," इससे लोग सोचेंगे कि शाही फरमान बस झक से प्रेरित होते हैं, इसलिए पत्थर बहीं रहेगा । "
सम्राट मर गया, उसके बाद कई सम्राट आये गये पर पत्थर आज भी जस का तस बहीं है । उसके चारों ओर चबूतरा बन गया है और लोग सुबह शाम जाकर उसकी पूजा करते हैं । मन्नतें माँगते हैं ।
सियारमन (बोधि पैगाम )
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