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मंगलवार, 26 सितंबर 2017

मंजू श्रीवास्तव की कसी : शेरू की समझदारी



निशु अपने माता पिता की इकलौती संतान  थी । आठवीं कक्षा मे पढ़ती थी। बहुत होशियार व नटखट थी।
अकेले होने के कारण वह उदास रहती थी। उसने पापा से एक डॉगी ( कुत्ता) लाने को कहा। उसके साथ खेलूँगी, मेरा दोस्त बन जायगा निशू ने कहा। दूसरे दिन ही उसकी फरमाइश पूरी हो गई।

अब तो निशू बहुत खुश थी।शेरू जो मिल गया था प्यारा सा दोस्त।
निशू ने एक दिन पापा से कहा  " पापा एक दिन हम शेरू को  भी घुमाने ले चलें"। बड़ा मजा आयगा।
पापा अपनी बेटी की कोई बात टालते नहीं थे।

दूसरे दिन रविवार था ही। जल्दी से सब लोग तैयार होकर  कार मे निकल पड़े। थोड़ी दूर जाने के बाद निशू की फरमाइश थी चॉकलेट खाने की। पापा ने रोड के किनारे कार रोकी ,निशू और शेरू को कार मे छोड़कर पापा मम्मी सामान लेने चले गये।
निशू थोड़ी शरारती थी। उसने कार मे चाभी लगी हुई  देखी।  उसे थोड़ी शरारत सूझी, कार मे चाभी  घुमा दी। ये क्या ! कार तो चल पड़ी। लेकिन  निशू बहुत खुश हो रही थी। लेकिन शेरू को आनेवाली दुर्घटना की आशंका हो गई थी।
  ,शेरू ने एक सेकंड की भी देरी किये बिना कार के गियर लिवर पर  कूद गया  जिससे  झटके  के साथ गाड़ी  रुक गई ।  इतने मे निशू के मम्मी पापा भी आ गये। दोनो ने कार का दरवाजा खोला और मम्मी ने निशू को जोर से चिपका लिया। पापा  शेरू को गले से लगाकर प्यार ही करते जा रहे थे।

मम्मी पापा के मन मे यही ख्याल आ रहा था  कि यदि शेरू नहीं होता तो कितना बड़ा हादसा हो जाता ।

बच्चों ये थी शेरू  की स्वामिभक्ति की कहानी ।



                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार

सपना मांगलिक का बालगीत :लूडो








आसमान की लूडो पर

गोटी चाँद सितारों की

पासा फ़ेंके कौन न जानूँ ?

लगी झड़ी सवालों की।




                                           सपना मांगलिक 

डाॅ अनुपमा गुप्ता की रचना : मेरी प्यारी दादी जी


एकादशी उपासी रहतीं
मेरी प्यारी दादी जी
छोटी सी थीं,दुबली-पतली
मेरी प्यारी दादी जी।

सुबह-सवेरे द्वार बुहारें
मेंरी प्यारी दादी जी
कभी न थकतीं,कभी न हारें
ऐसी मेरी दादी जी।

सुनतीं गीता और रामायण
बिना पढ़ी थीं दादी जी
तारों में वे घड़ी निहारें
समझदार थीं दादी जी।

दोपहरी भर सूप चलावें
मेहनतकश थीं दादी जी
कभी दुलारें,आँख तरेरें
ऐसी मेरी दादी जी।

ख़ुद से सारा काम सँभालें
हिम्मत वाली दादी जी
संग समय के कदम मिलातीं
देखीं हमने दादी जी।

कम खा कर ग़म खाना अच्छा
यह समझातीं दादी जी
कभी-कभी नैनों का जल बन
छा जातीं अब दादी जी।



                          डॉ अनुपमा गुप्ता

सपना मांगलिक का बालगीत : मकड़ी


















रखती दाने आले में

गटके एक निवाले में

फंसाती ,खुद नहीं फंसती

मकड़ी अपने जाले में।























सपना मांगलिक




शनिवार, 16 सितंबर 2017

शरद कुमार श्रीवास्तव का बालगीत : मौसी माॅल में





सजधज  कर निकली मौसी दिल्ली  के  एक माॅल
बाहर धूप  बहुत  तेज  थी , भूख से बुरा था  हाल
बिल्ली  के  आने की सुनकर,  चूहे  छुप गये भाई
अलबत्ता  पोस्टर में बन्दर मामा  थे  पडे दिखाई


अपना कोई देखके मौसी को आई बहुत  रुलाई
भइया  क्या  बतलाऊँ  परेशान  हो गई  हूँ  भाई
बाहर धूप  बहुत  तेज  है  चूहे भी न पड़े दिखाई
 बन्दर ग्राहक  देख के  बोला  ए-सी  ले लो ताई





                                शरद  कुमार  श्रीवास्तव





मंजू श्रीवास्तव की बालकथा: जंगल का राजा





एक बहुत बड़ा जंगल था। उसमे शेर और कई जानवर रहते थे।शेर जो जंगल का राजा कहलाता है, बड़ा ही आलसी था कुछ काम नहीं करता था। बस सारा दिन आराम से सोता रहता था।
उसका एक बेटा था, बहुत छोटा था पर अपने  पिता की  सेवा खूब करता था।  नाम भी छोटू था।
एक बार  शेर चाचा को भूख लगी। शेर ने छोटू को पुकारा और कुछ खाने को लाने के लिये कहा।
छोटू शिकार की तलाश मे निकला।  उसे सबसे पहले बिल्ली मौसी  मिली। वह उसे शेर चाचा के पास ले गया।  शेर चाचा  बहुत भूखा था।  उसने  एक ही झटके मे बिल्ली को दबोच लिया। यह देखकर छोटू बहुत दुखी हुआ। वह बिल्ली मौसी से बहुत प्यार करता था।
दूसरे दिन छोटू फिर शिकार के लिये निकला। लेकिन इस बार किसी जानवर को नहीं पकड़ा। हर जानवर के लिये उसके मन मे दया उमड़ पड़ी थी। 
शेर चाचा के पास न जाकर सब दोस्तों को बुलाकर सभा की और तय किया कि अब शेर चाचा के पास नहीं जायेंगे और अपना भोजन खुद पकाकर हम सब एक साथ खायेंगे और आराम से रहेंगे। बहुत हो चुका। अब शेर चाचा की मर्जी नहीं चलेगी।

उधर शेर इन्तज़ार कर रहा था छोटू का  पर वह नहीं आया। खाना न मिलने के कारण शेर चाचा की कमजोरी बढ़ती जा रही थी।  आलस की वजह  और  भूख की वजह से शेर की हालत बिगडती गई और एक दिन वह चल बसा।

बच्चों इस कहानी से यह सीख मिलती है कि़़़
१)आलस बहुत बुरी आदत है। सब काम समय से करो।
२)सब जीवों पर दया करनी चाहिये।



                            मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार
                            ३३ विवेकानन्द एन्क्लेव
                            जगजीतपुर, हरिद्वार

- हिना जैन, गुड़गांव की कविता : नीला-नीला आसमान



यह नीला-नीला आसमान

है कोई नहीं इसके समान

यहाँ परिंदे लेते ऊँची उड़ान

इसे जाति-धर्म की नहीं पहचान

कभी सूरज, कभी सितारे

और कभी खूबसूरत चाँद

इस आसमान की

हैं अनोखी शान

मौसम के बदलते रंग

दिखते चंदा के संग

कभी चाँदी सा कभी सुनहरा

होता जब सितारों का पहरा

और होते ही भोर

सूरज लाता उसमे उजाला है

तुम ही देखो इस आसमान का

ढंग कितना निराला है।


                                    हिना जैन, गुड़गांव



सपना मांगलिक की रचना : सोचो क्या हो जाता




जड़ ऊपर ,तना नीचे
सोचो अगर हो जाता 
आम ,अनार सेब ,अमरुद
खूब तोड़ - तोड़ मैं खाता।


                                          सपना मांगलिक

प्रभु दयाल श्रीवास्तव का देशप्रेम बालगीत एक देश हैं एक वतन हैं







  मिले हाथ से हाथ तो मिलकर,
 दृढ़ ताकत बन जाते।
 बड़े बड़े दुश्मन तक इसके,
 आगे ठहर न पाते।

  ईंट से ईंट जुडी तो कई,
  मंजिल का घर बन जाता।
  अंगुली का मुट्ठी बन जाना,
  किसे समझ न आता।

  मधु मक्खी के झुण्ड बड़े,
  शैतानों को डस लेते।
  तनको वाली रस्सी से ,
  शेरों को भी कस देते।

   टुकड़ों टुकड़ों बटे देश पर,
   परदेशी क्यों छाये।
  इसी फ़ूट के कारण वर्षों,
  कब्ज़ा रहे जमाये।

 जाति धर्म वर्गों का बटना,
 रहा देश को घातक।
 मिलकर रहने का फिर भी,
 कुछ मोल न समझा अब तक।

रहना है तो रहो देश में,
हिंदुस्तानी बनकर।
एक देश हैं एक वतन हैं,ऐ
कहो सभी से तनकर।



                   प्रभु दयाल श्रीवास्तव 
                  छिन्दवाड़ा


बुधवार, 6 सितंबर 2017

कृष्ण कुमार वर्मा का बालगीत : हमारा प्यारा स्कूल







सबसे प्यारा , सबसे न्यारा
है देखो स्कूल हमारा ,
पढ़ना भी है , खेलना भी है
नित प्रतिदिन सीखना भी है ...

रंग बिरंगे पुस्तके और हरे भरे मैदान
सुंदरता और स्वच्छता है इसकी पहचान ...
खेल- खेल में शिक्षक हमे सिखाते
गणित , विज्ञान के सवाल यू सुलझाते ...

अच्छा लगता है मुझको , जाना स्कूल
कभी ना करता छुट्टी मारने की भूल ...
जीवन में मुझको आगे बढ़ना है
पढ़ाई - लिखाई सच्चे मन से करना है ...

सबसे प्यारा , सबसे न्यारा
है देखो स्कूल हमारा ...




                                   कृष्ण कुमार वर्मा ,
                                   रायपुर [छत्तीसगढ़]

महेन्द्र देवांगन की रचना :खुशियाँ बाटो







चलो मनायें खुशियाँ प्यारे, सुख दुख सब बाँटे ।
दीन दुखियों को सहारा देकर, क्लेश उनका काटे ।
संकट में जो काम आये, वही सच्चा इंसान है ।
दुख में जो हाथ बटाये , मानव की पहचान है ।

व्यर्थ की बातें न करो , झगड़ा झंझट छोड़ो ।
गले लगाओ प्रेम से, मानव को मानव से जोड़ो।
चार दिन की जिंदगी है,  हंसकर जीना सीखो ।
काम कुछ ऐसा कर जाओ , इतिहास में नाम लिखो।

धन दौलत का घमंड तुम्हारा , काम नही आयेगा ।
माटी का जीवन है प्यारे , माटी में मिल जायेगा ।

                      महेन्द्र देवांगन माटी 
                      पंडरिया  (कवर्धा )
                      छत्तीसगढ़ 
                      8602407353

मंजू श्रीवास्तव की बालक : नकलची कौआ







एक घने जंगल मे बहुत बड़ा पेड़ था। तरह तरह के पक्षी अपना अपना घोंसला बनाकर आराम से रह रहे थे।
एक दिन पक्षियों की आम सभा हुई। उसमे सर्व सम्मति से तय हुआ कि  हम सब मिलकर सौन्दर्य प्रतियोगिता   का आरम्भ करें। जब इन्सान कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर सकते? 
दूसरे दिन सब पक्षी गण खूब सज धज कर एक जगह जमा हुए। कार्यक्रम आरम्भ हुआ। आपस मे विचार विमर्श के बाद मोर को विजयी घोषित किया गया। सब ने  इस घोषणा का स्वागत किया।
मोर गर्व से फूला नही समाया। खुशी से नाचने लगा।

    उधर कौए के मन मे जलन होने लगी मै क्यों नहीं जीत सका ये प्रतियोगिता?  उसने ठान लिया कि अगली बार वो ही जीतेगा ये प्रतियोगिता ।
अगली बार के लिये उसने तैयारी भी आरम्भ कर दी। इधर उधर से वह मोर  पंख के रंग जैसे पत्ते ढूंढ कर लाया। उसका लिबास बनाकर अपने ऊपर चिपका लिया बिल्कुल मोर की तरह। लिबास पहनकर मन ही मन फूला नहीं समा रहा था। उसे पूरा विश्वास हो गया था कि इस बार उसकी जीत निश्चित है।

अगली बार की प्रतियोगिता का दिन भी आ पहुंचा। कौआ पूरी तरह निश्चिन्त था अपनी तैयारी को लेकर।
  सब पक्षी आ चुके थे सज धज कर। एक एक का परीक्षण होता जा रहा था। अब कौए की बारी थी
  पर ये क्या ! उसके पैर मानो जम से गये थे। वो तो हिल भी नही पा रहा था। पत्ते से बना लिबास इतना भारी जो हो गया था।
    उधर सब साथी उसका मजाक उड़ा रहे थे,  नकलची कौआ, नकलची कौआ। 
कौआ बहुत हताश हो गया और वहां से चला गया। कई दिनों तक किसी के सामने नहीं आया।
              

बच्चों कहानी से सीख मिलती है कि कभी किसी की नकल नहीं करनी चाहिये। अपने हुनर को आगे बढ़ाओ और सफलता हासिल करो।



                           मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार ।
                          ३३ विवेका नन्द एन्क्लेव
                           जगजीतपुर, हरिद्वार

सपना मांगलिक का बालगीत : बादल







आसमान में थे बिखरे

कुछ पानी के भरे हुए

रुई से कतरे - वतरे

टकराये तो बरस पड़े।


                                           सपना मांगलिक