निशु अपने माता पिता की इकलौती संतान थी । आठवीं कक्षा मे पढ़ती थी। बहुत होशियार व नटखट थी।
अकेले होने के कारण वह उदास रहती थी। उसने पापा से एक डॉगी ( कुत्ता) लाने को कहा। उसके साथ खेलूँगी, मेरा दोस्त बन जायगा निशू ने कहा। दूसरे दिन ही उसकी फरमाइश पूरी हो गई।
अब तो निशू बहुत खुश थी।शेरू जो मिल गया था प्यारा सा दोस्त।
निशू ने एक दिन पापा से कहा " पापा एक दिन हम शेरू को भी घुमाने ले चलें"। बड़ा मजा आयगा।
पापा अपनी बेटी की कोई बात टालते नहीं थे।
दूसरे दिन रविवार था ही। जल्दी से सब लोग तैयार होकर कार मे निकल पड़े। थोड़ी दूर जाने के बाद निशू की फरमाइश थी चॉकलेट खाने की। पापा ने रोड के किनारे कार रोकी ,निशू और शेरू को कार मे छोड़कर पापा मम्मी सामान लेने चले गये।
निशू थोड़ी शरारती थी। उसने कार मे चाभी लगी हुई देखी। उसे थोड़ी शरारत सूझी, कार मे चाभी घुमा दी। ये क्या ! कार तो चल पड़ी। लेकिन निशू बहुत खुश हो रही थी। लेकिन शेरू को आनेवाली दुर्घटना की आशंका हो गई थी।
,शेरू ने एक सेकंड की भी देरी किये बिना कार के गियर लिवर पर कूद गया जिससे झटके के साथ गाड़ी रुक गई । इतने मे निशू के मम्मी पापा भी आ गये। दोनो ने कार का दरवाजा खोला और मम्मी ने निशू को जोर से चिपका लिया। पापा शेरू को गले से लगाकर प्यार ही करते जा रहे थे।
मम्मी पापा के मन मे यही ख्याल आ रहा था कि यदि शेरू नहीं होता तो कितना बड़ा हादसा हो जाता ।
बच्चों ये थी शेरू की स्वामिभक्ति की कहानी ।
मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार