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शनिवार, 16 सितंबर 2017

प्रभु दयाल श्रीवास्तव का देशप्रेम बालगीत एक देश हैं एक वतन हैं







  मिले हाथ से हाथ तो मिलकर,
 दृढ़ ताकत बन जाते।
 बड़े बड़े दुश्मन तक इसके,
 आगे ठहर न पाते।

  ईंट से ईंट जुडी तो कई,
  मंजिल का घर बन जाता।
  अंगुली का मुट्ठी बन जाना,
  किसे समझ न आता।

  मधु मक्खी के झुण्ड बड़े,
  शैतानों को डस लेते।
  तनको वाली रस्सी से ,
  शेरों को भी कस देते।

   टुकड़ों टुकड़ों बटे देश पर,
   परदेशी क्यों छाये।
  इसी फ़ूट के कारण वर्षों,
  कब्ज़ा रहे जमाये।

 जाति धर्म वर्गों का बटना,
 रहा देश को घातक।
 मिलकर रहने का फिर भी,
 कुछ मोल न समझा अब तक।

रहना है तो रहो देश में,
हिंदुस्तानी बनकर।
एक देश हैं एक वतन हैं,ऐ
कहो सभी से तनकर।



                   प्रभु दयाल श्रीवास्तव 
                  छिन्दवाड़ा


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