ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 6 सितंबर 2017

मंजू श्रीवास्तव की बालक : नकलची कौआ







एक घने जंगल मे बहुत बड़ा पेड़ था। तरह तरह के पक्षी अपना अपना घोंसला बनाकर आराम से रह रहे थे।
एक दिन पक्षियों की आम सभा हुई। उसमे सर्व सम्मति से तय हुआ कि  हम सब मिलकर सौन्दर्य प्रतियोगिता   का आरम्भ करें। जब इन्सान कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर सकते? 
दूसरे दिन सब पक्षी गण खूब सज धज कर एक जगह जमा हुए। कार्यक्रम आरम्भ हुआ। आपस मे विचार विमर्श के बाद मोर को विजयी घोषित किया गया। सब ने  इस घोषणा का स्वागत किया।
मोर गर्व से फूला नही समाया। खुशी से नाचने लगा।

    उधर कौए के मन मे जलन होने लगी मै क्यों नहीं जीत सका ये प्रतियोगिता?  उसने ठान लिया कि अगली बार वो ही जीतेगा ये प्रतियोगिता ।
अगली बार के लिये उसने तैयारी भी आरम्भ कर दी। इधर उधर से वह मोर  पंख के रंग जैसे पत्ते ढूंढ कर लाया। उसका लिबास बनाकर अपने ऊपर चिपका लिया बिल्कुल मोर की तरह। लिबास पहनकर मन ही मन फूला नहीं समा रहा था। उसे पूरा विश्वास हो गया था कि इस बार उसकी जीत निश्चित है।

अगली बार की प्रतियोगिता का दिन भी आ पहुंचा। कौआ पूरी तरह निश्चिन्त था अपनी तैयारी को लेकर।
  सब पक्षी आ चुके थे सज धज कर। एक एक का परीक्षण होता जा रहा था। अब कौए की बारी थी
  पर ये क्या ! उसके पैर मानो जम से गये थे। वो तो हिल भी नही पा रहा था। पत्ते से बना लिबास इतना भारी जो हो गया था।
    उधर सब साथी उसका मजाक उड़ा रहे थे,  नकलची कौआ, नकलची कौआ। 
कौआ बहुत हताश हो गया और वहां से चला गया। कई दिनों तक किसी के सामने नहीं आया।
              

बच्चों कहानी से सीख मिलती है कि कभी किसी की नकल नहीं करनी चाहिये। अपने हुनर को आगे बढ़ाओ और सफलता हासिल करो।



                           मंजू श्रीवास्तव हरिद्वार ।
                          ३३ विवेका नन्द एन्क्लेव
                           जगजीतपुर, हरिद्वार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें