28 मई, 2011 की रात्रि लखनऊ में एक भीषण आंधी आयी और बारिश हुई जिस कारण शहर की बिजली गुल हो गई तथा जगह-जगह पेड़ व होर्डिग गिर गये। आवागमन प्रभावित हुआ, रात भर अंधेरे में काटना पड़ा। रोज की तरह 29 मई, 2018 को सुबह मैं मार्निग वाक हेतु तैयार होकर इन्द्रा नगर, सेक्टर 25 स्थित स्वर्ण जायंती पार्क के लिये रवाना हुआ। रास्तें में कई पेड़ गिरे हुये दिखे एक दो बिजली के खम्भे भी गिर गये थे। पार्क में भी दो गुलमोहर व एक शीशम का पुराना पेड़ गिर गया था। मैने अभी पार्क में प्रवेष ही किया था कि मेरे एक मित्र ने बताया कि अभी आपको याद किया जा रहा था। मेरे पूछने पर बताया कि एक चिड़िया घायल होकर गिरी हुई है। मैं तुरन्त उस दिशा में पहुंचा तो दिखा कि कुछ कौवे शोर मचा रहे हैं और वही पर एक चिड़िया फड़-फड़ा रही है। पास जाकर देखा तो वह एक बाज(shikra) पक्षी था। वैसे तो बाज पक्षी से सभी चिड़िया डरती है, क्योंकि वह घायल था, तो कौवे यदा-कदा उस पर चोट कर रहे थे।
मैं उस पार्क में दैनिक आने वालो में से हूँ तथा पक्षी प्रेमी भी हूँ, तो जानता था कि इसका घोसला शीशम के पुराने पेड़ पर था। सम्भवतः शीशम के पेड़ के गिर जाने के कारण यह रात के अंधेरे में चोटिल हो गया था। मैंने उसे उठाया और देखा कि उसकी एक आंख बन्द थी तथा एक पंख के पास थोड़ी चोट लगी थी। मैंने उसे पार्क में बने एक कमरे में रखकर दरवाजा बन्द करवा दिया और अपनी वाक व व्यायाम पूरी करने के बाद अपने साथ बाज को घर ले गया। पहली मंजिल के कमरे में ले जाकर अब मैने उसे पूरी तरह से निरीक्षण किया तो देखा कि वो बाज का एक बड़ा बच्चा था जो कि सम्भवतः तेज आंधी के कारण पेड़ के गिरने से उड़कर गिर गया और उसे कौवों ने जख्मी कर दिया था। मैने तुरन्त सबसे पहले सिंरिज से पानी पिलाया थोड़ी देर बाद होम्योपैथिक दवाई उसे दर्द कम करने हेतु पिलाई। क्योंकि कौवो के प्रहार से वह काफी डरा हुआ था ऐसे में उसे आराम की जरूरत थी इसलिये मैने कमरा बन्द कर दिया और अपने आफिसे जाने की तैयारी करने लगा।
आफिस में भी मैने एक दो लोगो से जो कि चिड़ियो के संरक्षण हेतु कार्य करते हैं, जानने की कोशिश करी कि एक चिड़िया की मदद कैसे की जाय पर कोई सही जानकारी नहीं दे सका। शाम को वापस घर पहुचने पर मैने ऊपर जाकर उसे देखा कोई विशेष सुधार नहीं था हा जो उसकी धड़कने बढ़ी हुई थी वो सामान्य हो गयी थी। मैने पुनः उसे दर्द व सूजन कम करने की दवाई सिरिंज से पिलाई। आधे घण्टे बाद अण्डें की सफेदी को सिरिंज में भर कर थोड़ा सा पिलाने की कोशिश करीं कुछ मुह में गया कुछ बाहर गिर गया। उसके पंजे और चोंच बहुत धारदार थे। पंजो से मेरे हाथ पर निशान पड़ गये। एक रात कटी तो दुसरे दिन यानि कि 30.05.2011 की सुबह फिर वही दवायी और रात में वही दवाई और अण्डे की सफेदी पिलायी। इस रात को थोड़ा से उसके स्वास्थ्य में सुधार दिखा तथा वो अपनी जगह से चलने फिरने लगा। एक आंख बन्द होने के कारण उस तरफ को वह सही प्रकार से देख नहीं पाता था।
यह एक जंगली पक्षी है और इसका घर में पालना मेरे लिये सम्भव नहीं था तथा यह बीमार भी था तो मैं तलाशने लगा कोई ऐसी सुरक्षित जगह मिले जहाँ यह ठीक हो सके। एक बार फिर मैने कोशिश करी कि कोई एन.जी.ओं. जो कि चिड़ियों के संरक्षण हेतु कार्यरत हो और इसे बचा सके। लेकिन कोशिशों के बाद यह समझ में आया कि संरक्षण हेतु कार्यरत लोग वातानुकूलित कमरों में बैठकर सेमिनार या गोष्ठियां तो करते हैं पर वास्तविकता में कुछ और हैं फिर भी मै कोशिश करता रहा।
मुझे याद आया कि गौरिया दिवस पर मैने कुछ तस्वीरें स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड, उत्तर प्रदेश को भेजी थी तथा वहाँ से एक ई-मेल पर धन्यवाद का संदेश आया था। प्रेषक का नाम प्रतिभा सिंह था वह एक आई ए एस अधिकारी हैं। मैने उनको ई-मेल पर सारा वृतान्त बताया और घायल बाज की तस्वीरें भी भेजी। रात में उनका कोई जवाब नहीं आया। मैने अपने बेटे से कहा कि कल सुबह हम स्वयं इसको लखनऊ के जू में जाकर दे देगें वहां इसका इलाज भी हो जायेगा उसके बाद लोग इसे कहीं जंगल में छोड़ सकते है।
दूसरे दिन सुबह हम बाज को एक दफ्ती के डिब्बे में रख कर जू लेकर गये, डाक्टर राउन्ड पर थे हमने उनका इन्तजार किया। डाक्टर के आने पर मैं उनके कमरे में गया और सारा वृन्तान्त बताया उन्होने एक आदमी को बुलाकर कुछ निर्देश दिये। हमने डिब्बे से बाहर निकालकर बाज उस आदमी को दिया उसने एक दवाई लेकर बाज की बंद आंख को खोला और दूसरे व्यक्ति ने दवाई आंख में डाली फिर एक दवायी सिरिंज में भरकर उसे पिलायी। मुझसे यह कहा गया कि यहां पर इसको रखने की जगह नहीं है अतः अपने साथ लेकर वापस जायें। मैने डाक्टर से अनुरोध किया कि ये तो जंगली पक्षी है। मैं इसे घर पर देख रेख नहीं कर सकता हूं लेकिन व नही माने।
हम लोग उसे वापस लेकर जा रहे थे कि मेरे फोन की घंटी बजी। मैंने फोन पर देखा तो प्रतिभा सिंह जी का फोन था मैने बात करी तो सबसे पहले उन्होनें बोला मि. शैलेन्द्र तिवारी क्षमा चाहती हॅू मैने अपका ई-मेल कल रात में नहीं देखा। आप तुरन्त बाज को लेकर लखनऊ के जू ले जाइये मैने डाक्टर से बात कर ली है वह उसको वही भर्ती कर लेंगे और धन्यवाद आपने एक पक्षी की जान बचाने का प्रयास किया। इससे पहले कि मैं कुछ कहता वह आदमी जिसनें बाज को दवाई पिलाई थी दौड़ता हुआ आया और बोला कि डाक्टर साहब ने आपको बुलाया हैं मै अपने बेटे के साथ वापस डाक्टर के कमरें में गया तो वे बिगडे हुए अंदाज में बोले कि आप पक्षी प्रेमियों की इतनी ड्यटी होती है कि उसको यहाँ तक ले आये। मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया मैने बोला कि यह एक जंगली पक्षी है यदि कबूतर होता तो मैं अपने घर में रख लेता। इतना सुनकर उन्होंने आवाज दी और वही आदमी/कर्मचारी आया और मेरे बेटे के हाथ में पकड़ा हुआ डिब्बा लेकर जू के अस्पताल के अन्दर ले गया।
मैने वापस आते समय जब देखा तो उस आदमी ने बाज को डब्बे से निकाल कर चिड़िया घर के बड़े पिंजरे में डाल दिया। हम दोंनों संतुष्ट होकर वापस घर को लौट आये। अब यह संतुष्टि हो गयी थी कि उसका इलाज भी हो जायेगा और वह अपनी आगे की जिन्दगी वहीं स्थित जंगल में या आस-पास कही और जी लेगा।
एक बाज को नई जिन्दगी देने के लिए श्री शैलेंद्र तिवारी जी बधाई के पात्र हैं। साधुवाद!
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