ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 6 मार्च 2019







खेल दिखाते  बंदर मामा।
पहने कुरती और पजामा।

चढ़े मदारी के वो हाथ।
छोड़ा मामी ने भी साथ।
उन्हें मदारी रोज नचाता।
नए नए करतब करवाता।

भूखे पेट उन्हें है रखता।
और साथ में गाली बकता।
रस्सी पर वो उन्हें चलाता।
आग भरे गोले फिकवाता।

बंदर मामा रोते रहते।
अपना दर्द कौन से कहते।
रोज मदारी उन्हें सताता।
बना बंदरिया उन्हें नचाता।

आज मुझे भी गुस्सा आई।
तुरत पुलिस में रपट लिखाई।
देख पुलिस को भगा मदारी।
बंदर मामा खुश थे भारी।

सुशील शर्मा 

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