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रविवार, 26 अप्रैल 2020

ब्रह्मदेव शर्मा जीकी कविता : बच्चे की शिक्षक से प्रार्थना


नीचे दी गई पंक्तियां मेरे मित्र शिक्षक कवि विचारक  आदरणीय श्री ब्रह्मदेव शर्मा जी की है जो मुझे फेसबुक के उनके वाल से  मेरे अनुरोध पर मिली है।  इसमें बालक की भावनाओं को हूबहू दर्शाया गया है



मित्रो!
सादर प्रणाम।
#Mywritings_as_a_child
(जब हम कक्षा 4 में पढ़ते थे और एक लड़के की कॉपी के पन्ने को फाड़कर यह लिखा । उसने बड़े मास्साब से शिकायत कर दी कि हम उल्टा सीधा लिखते हैं । कागज बड़े मास्साब के हाथ में । कुछ देर बाद हमें बुलाया गया । बहुत दुखी हमें लगा आज पिटाई होगी ।पर हुआ उल्टा । बड़े मास्साब उठे अपनी अलमारी खोली दो सेंटिनल की कॉपियों और  चार रोशनाई की पुड़िया । )

प्रस्तुत है पहला लिखा जो कविता तो नहीं है पर बालसभा में बड़े मास्साब ने खुद पढ़ी फिर हमसे पढ़वाई।
आप बताइये यह क्या लिखा था ?

हे प्रभो !
वह जिसने मेरी तख्ती तोड़ी है,
उसकी तख्ती साबुत रखना ,
काका बीमार हैं,
वह दो तख्ती कैसे बनाएंगे ।
हाँ उसको सजा जरूर देना,
जैसे गुरुजी उसे खूब पीटें ।

हे प्रभो!
खड्डी की जगह ,
बुदक्के में मिट्टी घोलकर लिख लेंगे,
दो पुड़िया रोशनाई,
एक सेंटीनल कॉपी दिलवा दे ।
और हाँ एक निब जी का भी ।

हे प्रभो !
वह बच्चा जो रोज मेरा खाना,
चुरा कर खा लेता है,
उसको खाना जरूर देना।
आज माँ बीमार है,
और खाना मैं नहीं लाया हूँ ।
माँ को जल्दी ठीक कर दो न।

हे प्रभो!
वह लड़की नंगी रहती है,
उसे कपड़े सिलवा दे ।
नन्हे के पास चप्पल नहीं है,
उसे चप्पल दिलवा दो न ।
और हाँ
लड़कियां स्कूल में नहीं पढ़तीं,
उनका भी अलग स्कूल लगवा दे ।

हे प्रभो!
वह बड़ा लड़का जो छोटे बच्चों को मारता है,
उसके हाथ को बर्र से कटवा दे।
और हमें मल्लम दिलवा दे,
और फिर हम उसके हाथ पर लगायें ।

साथी के पिताजी बीमार हैं,
उन्हें ठीक कर दे ,
वह पढ़ने नहीं आ पाता है ।

गाँव में ,
चोर भैंस चुरा ले गये हैं,
भैंस दिलवा दे प्रभो ।

आज पिताजी घर पर नहीं हैं ,
उनके बिना डर लगता है ,
जल्दी छुट्टी करवा दे ।
और हाँ हर दिन बाल सभा करवा दे।
बस अभी इतना काम जल्दी करवा दे ।

और हाँ
हे प्रभो आनंद दाता में ,
आनंद कौन है ,
समझ नहीं आता।
माँ कहती है बड़ा हो जाऊँगा तब समझूँगा ।
और देखो मैं बड़ा हो गया हूँ,
बड़े भैया का नेकर मुझे आ जाता है ,
पर माँ है कि मानती ही नहीं।
कहती है अभी छोटा है।
मुझे बड़ा बना दे ।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
भ्रमदेव सरमा (ब्रह्मदेव शर्मा)
[तब ब्रह्मदेव शर्मा की जगह भ्रमदेव सरमा लिखता था ।]


                    ब्रह्मदेव शर्मा
                    नई दिल्ली 

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