आज जब नैना समुद्र तट पर पहुँची तो बचपन की कुछ यादें ताजा हो गईं । बीस वर्ष पहले ,शौर्य और नैना , माँ - बाबा के साथ मुम्बई घूमने आए थे हालाँकि वे मध्यम वर्गीय परिवार से थे , बाबा की आय इतनी नहीं थी कि वे कहीँ घूमने में पैसे बरबाद करें, फिर भी बाबा ,शौर्य और नैना को मुम्बई घुमाने लाए थे । नैना दस वर्ष की थी और शौर्य आठ वर्ष का। नैना , शौर्य से बड़ी थी पर शौर्य ने हमेशा स्वयं को नैना से बड़ा ही समझा और नैना ने उसके इस एहसास को स्वीकार भी किया । दोनों बाबा के साथ समुद्र के किनारे गए और दोनों ने वहाँ से बहुत से शंख और सीप इकट्ठे किए , शाम को बाबा के साथ लौटते वक्त, नैना का ध्यान सड़क के किनारे रखे रंग-बिरंगे सीप के बने खिलौनों और मोती की सुंदर मालाओं पर गया ,बाबा से जिद की ,माला पाने के सौ जतन भी किए पर बाबा ने एक ना सुनी। नैना को आज भी याद है कि उन खिलौनों और मालाओं के आकर्षण से निकल पाना उसके लिए असंभव हो रहा था । माँ -बाबा कब आगे निकल गए पता ही नहीं चला और नैना वहीँ खड़ी उन रंग-बिरंगी मालाओं को निहार रही थी , तभी शौर्य ने उसके हाथ पकड़ा और चलने के लिए कहने लगा पर नैना बिना माला के चलने के लिए तैयार ही नहीं थी । शौर्य , नैना को दुकान पर ले गया और उसकी पसंद की माला उठाने के लिए कहा , नैना ने खुशी खुशी सफेद रंग की गोल मोती वाली माला उठा ली । शौर्य ने माला की कीमत पूछी ,माला २० रूपये की थी , शौर्य के पास बाबा के दिए हुए ५ रूपये थे उसने जेब में हाथ डालकर रूपये निकाले और दुकानदार के सामने रखकर कहा - भईया मेरे पास इतने ही पैसे हैं और मेरी बहन को ये माला चाहिए । दुकानदार ने कहा - बाबु जेब में तो कुछ और भी है , निकालो सबकुछ । शौर्य ने जेब में हाथ डाला और जेब में से सारी सीपियाँ और शंख निकालकर दुकानदार के सामने रख दिए , दुकानदार ने बड़े प्यार से उन सीपियों में से गिनकर २० सीपियाँ और शंख निकालकर अपने गल्ले में डाल लिए और बाकि की सीपियाँ , शंख और ५ रूपये लौटते हुए कहा - बेटा ये रूपये तुम्हारे बाबा की कमाई के हैं, ये सीपियाँ और शंख तुम्हारी कमाई के हैं । शौर्य ने नैना का हाथ पकड़ा , नैना माला पहनने की नाकाम कोशिश कर रही थी , शौर्य ने माला पहनने में नैना की मदद की और माँ -बाबा के पास चलने को कहा ।
मधु त्यागी
गुड़गाँव
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