चिक-चिक करती पूंछ हिलाती
रोज़ गिलहरी आती है
खोज-खोज खाने की चीजें
तुरत उठा ले जाती है।
कुतर-कुतर कर सारा खाना
जल्दी - जल्दी खाती है
बड़े प्यार से बैठ के भोजन
करना हमें सिखाती है।
पत्तों के झुरमुट में छुपकर
आँख मूँद सो जाती है
बिल्ली, सांप, नेवले से वह
चौकन्नी हो जाती है।
हरी भरी सब्जी फल खाकर
सेहत रोज़ बनाती है
पेड़ों से फल कुतर-कुतर कर
नीचे खूब गिराती है।
गिरे बीज से फूटे अंकुर
देख - देख हर्षाती है
इसी तरह नित पेड़ उगाकर
पर्यावरण बचाती है।
खाली नहीं बैठती दिन भर
श्रम का साथ निभाती है
सक्रियता जीवन की पूंजी
सबको यह समझाती है।
नाज़ुक रेशों को ले जाकर
घर भी स्वयं बनाती है
साथ सुलाकर सब बच्चों को
जीवन का सुख पाती है।
बिस्कुट, रोटी, सेव, पपीता
आओ सब लेकर आएं
सुंदर धारीदार गिलहरी
के आगे रखकर आएं।
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
09/06/2020
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