अभी पूर्व से मुर्गा ऊगा ,
सूरज ने दे दी है बांग |
लल्लूजी कवितायें लिखते ,
ऐसी ही कुछ ऊँट पटांग |
कौआ भोंक रहा है भों- भों ,
शेर बोलता म्याऊँ- म्याऊँ |
चूहा हाथी से बोला है ,
जल्दी आजा तुझको खाऊँ |
बकरी चढ़ी पेड़ पर उलटी,
लाई तोड़कर मीठे आम |
चींटी ने झाड़ू पोंछा कर ,
कर डाले घर के सब काम |
ऐसी कविता लल्लूजी का ,
लिखने का उद्देश्य विशेष |
उन्हें देखना था बच्चों में,
कितना ज्ञान आज है शेष |
शोर मचाकर बच्चे बोले,
यह कविता बिलकुल बकवास |
लगता है कि लल्लू चाचा ,
रोज सुबह कहते हैं घास |
प्रभूदयाल श्रीवास्तव
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