गीदड़ को मिल गई बांसुरी,
लगा छेड़ने तानें,
मैं ही संगीतज्ञ बड़ा हूँ,
जानवर जानें।
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जो संगीत सीखना चाहे,
पास मेरे आ जाए,
ढोलक, ढपली और मंजीरा,
दिनभर खूब बजाए,
पैसा नहीं रोज़ मुर्गा ही,
फीस मेरी है जानें।
गीदड़ को-----------------
कान खोलकर सुन लो मेरी,
फीस नियम से आए,
दुबला -पतला नहीं चलेगा,
मोटा मुर्गा लाए,
गद्दारी करने की मन में,
तनिक न कोई ठानें।
गीदड़ को------------------
मैंने अपने गुरु "गधे" से,
कभी न की मनमानी,
ढेंचू - ढेंचू की तानों से,
सीखी बीन बजानी,
गुरु गुरु होता है उसकी,
महिमा को पहचानें।
गीदड़ को-------------------
सुबह दुपहरी से संध्या तक,
सबको लगा सिखाने,
मुर्गा, बत्तख, खरहा, कबूतर,
खुलकर लगा चबाने,
कहा शेर ने शोर कहाँ से
आया हम भी जानें।
गीदड़ को--------------------
पहुंच गया जंगल का राजा,
सूंघ सूंघकर राहें,
उड़ा रहा था दावत गीदड़,
सान सानकर बांहें,
देख शेर को थर-थर काँपा,
भूल गया सब तानें।
गीदड़ को---------------------
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वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
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