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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

गीदड़ को मिल गई बाँसुरी वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी की बाल रचना ,





गीदड़ को मिल गई बांसुरी,

लगा छेड़ने तानें,

मैं ही संगीतज्ञ बड़ा हूँ,

जानवर जानें।

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जो संगीत सीखना चाहे,

पास मेरे आ जाए,

ढोलक, ढपली और मंजीरा,

दिनभर खूब बजाए,

पैसा नहीं रोज़ मुर्गा ही,

फीस मेरी है जानें।

गीदड़ को-----------------


कान खोलकर सुन लो मेरी,

फीस नियम से आए,

दुबला -पतला नहीं चलेगा,

मोटा मुर्गा लाए,

गद्दारी करने की मन में,

तनिक न कोई ठानें।

गीदड़ को------------------


मैंने अपने गुरु "गधे" से,

कभी न की मनमानी,

ढेंचू - ढेंचू की तानों से,

सीखी बीन बजानी,

गुरु गुरु होता है उसकी,

महिमा को पहचानें।

गीदड़ को-------------------


सुबह दुपहरी से संध्या तक, 

सबको लगा सिखाने,

मुर्गा, बत्तख, खरहा, कबूतर,

खुलकर लगा चबाने,

कहा शेर ने शोर कहाँ से

आया हम भी जानें।

गीदड़ को--------------------


पहुंच गया जंगल का राजा,

सूंघ सूंघकर राहें,

उड़ा रहा था दावत गीदड़,

सान सानकर बांहें,

देख शेर को थर-थर काँपा,

भूल गया सब तानें।   

गीदड़ को---------------------


         --------💐--------


                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                   मुरादाबाद/उ,प्र,

         मो0- 9719275453

         

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